हिंदी सिनेमा के महान गीतकार आनंद बक्शी ने अपने लंबे करियर में अनगिनत यादगार गीत रचे, लेकिन एक गीत ऐसा भी था, जिसे लेकर उन्हें उम्रभर अफसोस रहा। मामला था एक मुस्लिम किरदार से 'राम' का नाम बुलवाने का, जो ना केवल स्क्रिप्ट से चूक थी, बल्कि धार्मिक संदर्भ में भी असंवेदनशीलता मानी गई।
आनंद बक्शी, जिनके लिखे गीत कई दशकों से दर्शकों के दिलों पर राज कर रहे हैं, उनसे एक बार ऐसी गलती हो गई जिसे वे खुद जीवन भर नहीं भूल सके। इस गलती का ज़िक्र खुद उनके बेटे राकेश आनंद बक्शी ने उनकी जीवनी ‘नगमे, किस्से, बातें, यादें: द लाइफ ऑफ लिरिक्स ऑफ आनंद बक्शी’ में किया है।
मामला 1983 में आई फिल्म अंधा कानून से जुड़ा है। इस फिल्म में हेमा मालिनी और रजनीकांत मुख्य भूमिकाओं में थे, लेकिन अमिताभ बच्चन की भी एक अहम भूमिका थी, जिसमें वे एक मुस्लिम किरदार जान निसार खान का रोल निभा रहे थे।
इस फिल्म में एक गीत था —
‘रोते रोते हंसना सीखो, हंसते हंसते रोना, जितनी चाबी भरी राम ने उतना चले खिलौना।’
यह गाना आज भी श्रोताओं के बीच लोकप्रिय है, लेकिन इस गाने में जब अमिताभ बच्चन जैसे मजबूत अभिनेता, जो फिल्म में मुस्लिम किरदार निभा रहे थे, उनके मुंह से 'राम' का नाम बुलवाया गया, तो वह एक सांस्कृतिक चूक बन गई।
राकेश बक्शी के मुताबिक, उनके पिता आनंद बक्शी को बाद में पता चला कि गाना एक मुस्लिम किरदार पर फिल्माया गया है और उन्होंने उसमें ‘राम’ का नाम डाल दिया है। ये गलती इसलिए हुई क्योंकि उन्होंने किरदार के धार्मिक बैकग्राउंड की जानकारी पहले नहीं ली थी।
आनंद बक्शी चाहते थे कि किरदार की धार्मिक पहचान को ध्यान में रखते हुए शब्दों का चयन हो, लेकिन इस गाने में यह संतुलन नहीं बन पाया। उन्होंने इस बात को अपने करियर की एक ऐसी गलती माना, जिसे वे सुधार नहीं सके।
हालांकि, दर्शकों ने इस गाने को दिल से स्वीकार किया और यह हिट भी हुआ। लेकिन रचनात्मक दृष्टि से यह एक उदाहरण बन गया कि फिल्मी लेखन में संदर्भ की सटीकता कितनी ज़रूरी होती है, खासकर जब बात धर्म या संवेदनशील विषयों की हो।
आनंद बक्शी जैसे अनुभवी और संवेदनशील गीतकार से भी यह चूक साबित करती है कि सिनेमा में हर शब्द का चयन पात्र की पृष्ठभूमि के अनुरूप होना चाहिए। आज भी यह प्रसंग फिल्म लेखन के विद्यार्थियों और पेशेवरों के लिए एक अहम सबक की तरह है।