उत्पन्ना एकादशी व्रत से दूर होती हैं जीवन की समस्याएं, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजन विधि

By: Ankur Tue, 30 Nov 2021 08:31:34

उत्पन्ना एकादशी व्रत से दूर होती हैं जीवन की समस्याएं, जानिए शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजन विधि

हिंदू धर्म में कई तिथियां ऐसी होती हैं जिनका बहुत महत्व माना जाता हैं। इन्हीं में से एक है एकादशी तिथि। आज 30 नवंबर 2021 को मार्गशीर्ष मास के कृष्‍ण पक्ष की एकादशी हैं जिसे उत्‍पन्‍ना एकादशी के रूप में जाना जाता हैं। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता हैं और आस्था रखते हुए व्रत किया जाता हैं। आज के दिन व्रत करने से जीवन की समस्याएं दूर होते हुए मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। इस द‍िन जो भी जातक भगवान व‍िष्‍णु का ध्‍यान, जप और पूजन करते हैं उनकी मनोवांछ‍ित सभी कामनाएं पूरी होती हैं। हम आपको उत्पन्ना एकादशी व्रत के शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजन विधि के बारे में बताने जा रहे हैं।

उत्पन्ना एकादशी शुभ मुहूर्त

मार्गशीर्ष एकादशी प्रारंभ- 30 नवंबर 2021 दिन, मंगलवार सुबह 04:13 मिनट से
मार्गशीर्ष एकादशी समाप्त- 01 दिसंबर 2021 दिन,बुधवार रात्रि 02:13 मिनट तक
द्वादशी को व्रत पारण का समय- 01 दिसंबर 2021 सुबह 07:34 मिनट से सुबह 09:01 मिनट तक

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उत्पन्ना एकादशी का महत्व

मान्यताओं अनुसार, इस दिन भगवान श्रीहरि ने उत्पन्न होकर राक्षस मुर का वध किया था। इसलिए इस दिन को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। वैसे तो हर एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित मानी जाती है। मगर फिर भी सभी एकादशियों का अलग-अलग महत्व माना जाता है। उत्पत्रा एकादशी का व्रत रखने से कठिन तप और तीर्थ स्थानों पर दान-स्नान करने के समान फल मिलता है। इस पावन व्रत को रखने से मन व हृदय दोनों शुद्ध होते हैं। जीवन की समस्याएं दूर होती है और संतान प्राप्ति होती है। इसके साथ ही भगवान श्रीहरि की असीम कृपा बरसती है।

न‍िर्जला व्रत और यह काम है जरूरी


ज्‍योत‍िषशास्‍त्र के अनुसार उत्‍पन्‍ना एकादशी के द‍िन न‍िर्जला व्रत यानी क‍ि ब‍िना अन्‍न-जल ग्रहण क‍िये हुए पूरे द‍िन व्रत करना चाह‍िए। इसके ल‍िए सुबह-सवेरे उठकर न‍ित्‍यकर्म से न‍िवृत्‍त होकर सबसे पहले भगवान व‍िष्‍णु के सामने जाकर हाथ जोड़कर प्रणाम करें। इसके बाद पूरे द‍िन न‍िर्जला व्रत रहने का संकल्‍प लें फ‍िर द्वादशी के द‍िन ही व्रत तोड़ें। व्रत के द‍िन सुहाग‍िन स्त्रियों को घर पर दावत दें और उन्‍हें फलाहार करवाएं। इसके बाद उन्‍हें व‍िदा करते समय सुहाग की सामग्री दान में दें।

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एकादशी व्रत पूजा विधि

- एकादशी का व्रत दशमी तिथि से आरंभ होकर द्वादशी पर पारण करने के बाद समाप्त होता है।
- धार्मिक मान्यताओं अनुसार, व्रती को दशमी तिथि पर सूर्यास्त से पहले ही भोजन खा लेना चाहिए। इसके साथ ही सात्विक भोजन ही खाना चाहिए।
- एकादशी के दिन सुहबह उठकर नहाकर साफ कपड़े पहनें और व्रत का संकल्प लें।
- अब भगवान श्रीहरि की प्रतिमा के सामने देसी घी का दीया जलाएं।
- अब विष्णु जी को तिलक लगाकर धूप, फल, फूल, अगरबत्ती आदि चढ़ाएं।
- फिर एकादशी का महातम्य पढ़े या सुने।
- आरती करके भगवान जी को तुलसी मिश्रित प्रसाद का भोग लगाएं।
- पूरा दिन व्रत रखें और भगवान विष्णु जी का स्मरण करते रहिए।
- अगली सुबह दोबारा स्नाव करके भगवान जी की पूजा करें।
- सात्विक भोजन बनाकर ब्राह्मण या किसी गरीब को खाना खिलाएं।
- उन्हें अपने सामर्थ्य अनुसार, दान, दक्षिणा देकर विदा करके व्रत का पारण करें।

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