हिंदू पंचांग के अनुसार, इस वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा 11 जून 2025 को मनाई जाएगी। यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से विशेष है, बल्कि तांत्रिक और लौकिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत फलदायी माना गया है। मान्यता है कि पूर्णिमा के दिन विष्णु और लक्ष्मी की आराधना करने से जीवन में सुख, धन और सौभाग्य का आगमन होता है। साथ ही यह दिन व्रत, स्नान, दान और दीपदान के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
कब है ज्येष्ठ पूर्णिमा 2025?
ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि की शुरुआत—10 जून 2025 को प्रात: 11:35 बजे से
तिथि समाप्ति—11 जून 2025 को दोपहर 1:13 बजे तक
उदयातिथि अनुसार पूजन और व्रत 11 जून को किया जाएगा।
पूर्णिमा पर दीपक जलाना क्यों है शुभ?
शास्त्रों में कहा गया है कि पूर्णिमा की रात्रि को अगर विशेष स्थानों पर दीपक जलाया जाए, तो देवी लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में धन-संपत्ति की वृद्धि होती है। इन स्थानों पर दीप जलाना विशेष फलदायी होता है:
मुख्य द्वार पर — घर के प्रवेश द्वार पर दीपक जलाने से नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं कर पाती।
तुलसी के पौधे के पास — यह स्थान लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय माना गया है।
पूजा स्थान पर — देसी घी का दीपक जलाकर विष्णु-लक्ष्मी की आरती करें।
पवित्र नदी के किनारे — गंगा या किसी अन्य पवित्र जलधारा में दीपदान करने से पितृदोष समाप्त होता है।
कैसे करें ज्येष्ठ पूर्णिमा का पूजन?
—ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान करें। यदि संभव हो तो गंगा स्नान या फिर स्नान जल में गंगाजल मिलाएं।
—विष्णु भगवान और देवी लक्ष्मी को पीले पुष्प, चंदन, धूप-दीप से पूजन करें।
—ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें।
—रात के समय दीप जलाकर मां लक्ष्मी से समृद्धि की प्रार्थना करें।
देसी घी का दीपक क्यों है विशेष?
देसी गाय के घी से बना दीपक नकारात्मक शक्तियों को समाप्त करता है। ऐसा दीपक देवी लक्ष्मी को अर्पित करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और आर्थिक स्थिति में सुधार होता है। तुलसी के पास जलाया गया यह दीपक विशेष रूप से फलदायी होता है।
किन चीजों का करें दान?
पूर्णिमा के दिन स्नान और पूजन के बाद निम्न वस्तुओं का दान अत्यंत शुभ माना गया है:
कौड़ी – समुद्री समृद्धि का प्रतीक, मां लक्ष्मी को प्रिय
अक्षत (चावल) – शुद्धता और संपन्नता का प्रतीक
कमल का फूल – देवी लक्ष्मी का आसन और प्रतीक
शंख – विष्णु प्रिय वस्तु, जिससे लक्ष्मीजी प्रसन्न होती हैं
इन चीजों का दान करने से जीवन में स्थायी सुख और धन का आगमन होता है।
वट सावित्री व्रत का भी है विशेष संयोग
कुछ क्षेत्रों में ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन ही वट सावित्री व्रत भी रखा जाता है। विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए वटवृक्ष की पूजा करती हैं। व्रत रखने के साथ-साथ महिलाएं कथा सुनती हैं और वटवृक्ष की परिक्रमा करती हैं।
ज्येष्ठ पूर्णिमा का दिन भक्ति, पूजन और पुण्य अर्जन का दिन है। यदि श्रद्धा से इस दिन दीपदान, व्रत और दान किया जाए, तो देवी लक्ष्मी की कृपा अवश्य प्राप्त होती है। यह दिन आर्थिक समस्याओं से मुक्ति, पितृदोष निवारण और आत्मिक शांति के लिए अत्यंत फलदायक माना गया है।
नोट: यह लेख धार्मिक मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है। व्यक्तिगत जीवन में इन बातों को अपनाने से पहले किसी योग्य पंडित या विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य करें।