
यह कहा जाता है कि मानव जीवन प्राप्त करना बेहद दुर्लभ और सौभाग्य की बात है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, किसी भी जीव को मनुष्य जन्म तभी मिलता है जब वह 84 लाख योनियों का चक्र पूरा कर लेता है। कहा जाता है कि इन योनियों से गुजरने के बाद ही आत्मा को मनुष्य रूप मिलता है, ताकि वह मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ सके। हालांकि इस विश्वास को लेकर आज भी लोगों के मन में कई तरह के सवाल हैं — क्या यह सच है, और आखिर 84 लाख योनियों का यह सफर कब समाप्त होता है?
प्रेमानंद महाराज से पूछा गया यह सवाल
वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज से एक भक्त ने यही प्रश्न किया कि 84 लाख योनियों का यह चक्र आखिर कब समाप्त होता है? इस पर महाराज ने उत्तर दिया — “यह सब ईश्वर की माया है। सृष्टि में जितने भी जीव हैं, वे उसी माया का हिस्सा हैं। इस चक्र का कोई निश्चित समय या अवधि नहीं होती। कुछ आत्माएं एक योनि में केवल कुछ वर्षों तक रहती हैं, जबकि कुछ को उसी योनि में हजारों वर्षों तक रहना पड़ता है।”
सर्प योनि का उदाहरण देकर समझाया
महाराज ने आगे उदाहरण देते हुए कहा, “सर्प योनि ही ले लीजिए, इसमें अनगिनत प्रकार की प्रजातियां हैं। अगर किसी आत्मा को सर्प योनि मिलती है, तो वह लाखों वर्षों तक उसी रूप में रह सकती है। अब सोचिए, जब केवल एक योनि में इतनी विविधता है, तो 84 लाख योनियों में कितने असंख्य जीव होंगे — इसका अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता।”
उन्होंने कहा कि यह पूरा चक्र अनंत है और इसे समय के पैमाने से नहीं मापा जा सकता। यह केवल ईश्वर की इच्छा और कर्मों के आधार पर चलता है।
मानव जीवन को बताया सबसे श्रेष्ठ
प्रेमानंद महाराज ने आगे समझाया कि मनुष्य जन्म इन 84 लाख योनियों में सबसे श्रेष्ठ है। उन्होंने कहा — “अगर आपको मनुष्य रूप मिला है, तो यह भगवान का आशीर्वाद है। इसलिए इस जीवन को व्यर्थ मत जाने दो। भक्ति, सेवा और अच्छे कर्मों के माध्यम से इसे सार्थक बनाओ।”
उन्होंने कहा कि मनुष्य को रोज भगवान से यही प्रार्थना करनी चाहिए कि उसे अगले जन्म में भी मानव रूप मिले, ताकि वह ईश्वर की भक्ति और समाज की सेवा जारी रख सके।
दी यह प्रेरणा
महाराज ने कहा, “बाकी सभी योनियां दुखों से भरी हैं। केवल मानव जीवन ही ऐसा है, जिसमें आत्मा को सुख, चेतना और ईश्वर तक पहुंचने का अवसर मिलता है। इसलिए इस जीवन को 84 लाख योनियों की बातों में उलझाने के बजाय भजन, ध्यान और भक्ति में लगाना चाहिए।”














