जालियांवाला बाग की 100वीं बरसी: शहीदों को श्रद्धांजलि देने पहुंचे राहुल गांधी
By: Priyanka Maheshwari Sat, 13 Apr 2019 08:01:49
अमृतसर के जलियांवाला बाग के नरसंहार कांड के आज यानी शनिवार 13 अप्रैल को 100 साल पूरे हो रहे हैं। साल 1919 का 13 अप्रैल का दिन था, जब जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा के लिए जमा हुए हजारों भारतीयों पर अंग्रेज हुक्मरान ने अंधाधुंध गोलियां बरसाई थीं। इस हत्याकांड के सबसे बड़े गुनहगार थे ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर और लेफ़्टिनेण्ट गवर्नर माइकल ओ डायर।
शनिवार को जलियांवाला बाग के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए शताब्दी समारोह का आयोजन किया जा रहा है। इस मौके पर शहीदों की याद में सिक्का और डाक टिकट भी जारी किया जाएगा। इस समारोह में उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू और पंजाब के राज्यपाल शहीदों को श्रदांजलि देंगे। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी अमृतसर पहुंच गए हैं। शनिवार सुबह 8 बजे राहुल शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे।
इससे पहले कल राहुल गांधी ने अमृतसर पहुंचकर स्वर्ण मंदिर में माथा भी टेका था। लोकसभा चुनाव की घोषणा होने के बाद राहुल गांधी की यह पहली पंजाब यात्रा है। पंजाब में मतदान 19 मई को होना है। इस दौरान उनके साथ पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी मौजूद रहे।
इससे पहले शुक्रवार शाम राज्यपाल वीपी सिंह बदनौर, मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कैंडल मार्च निकालकर शहीदों को श्रद्धांजलि दी। कैंडल मार्च में कैबिनेट मंत्री सुखबिंदर सिंह सुखसरकरिया, ओम प्रकाश सोनी, सुनील जाखड़, आशा कुमारी, गुरजीत औजला, सुनील दत्ती, इंदरबीर बुलारिया, राजकुमार वेरका के अलावा स्टूडेंट्स ने भी हिस्सा लिया।
Congress President @RahulGandhi offers prayers at the Golden Temple in Amritsar pic.twitter.com/SnQ2rn2wC5
— Congress (@INCIndia) April 12, 2019
Shared with Governor Shri @vpsbadnore ji & thousands others the humbling experience of being part of the candle light march on eve of #JallianwalaBaghCentenary. These candles are a grim reminder of the sacrifice of the martyrs whose memories still inspire generations of Indians. pic.twitter.com/3BtH0BMydD
— Capt.Amarinder Singh (@capt_amarinder) April 12, 2019
Sharing a few moments from my visit at Sri Akal Takht Sahib along with @RahulGandhi. pic.twitter.com/QMoqLhyPsj
— Capt.Amarinder Singh (@capt_amarinder) April 12, 2019
क्या है जलियांवाला बाग हत्याकांड
सौ साल पहले 13 अप्रैल 1819 की बात है। उस दिन बैसाखी थी। एक बाग़ में करीब 15 से बीस हज़ार हिंदुस्तानी इकट्ठा थे। सब बेहद शांति के साथ सभा कर रहे थे। ये सभा पंजाब के दो लोकप्रिय नेताओं की गिरफ्तारी और रोलेट एक्ट के विरोध में रखी गई थी। पर इससे दो दिन पहले अमृतसर और पंजाब में ऐसा कुछ हुआ था, जिससे ब्रिटिश सरकार गुस्से में थी।
इसी गुस्से में ब्रिटिश सरकार ने अपने जल्लाद अफसर जनरल डायर को अमृतसर भेज दिय़ा। जनरल डायर 90 सैनिकों को लेकर शाम करीब चार बजे जलियांवाला बाग पहुंचता है। डायर ने सभा कर रहे लोगों पर गोली चलवा दी।
बताते हैं कि 120 लाशें तो सिर्फ उस कुएं से बाहर निकाली गई थी जिस कुएं में लोग जान बचाने के लिए कूदे थे। कहते ये भी हैं कि करीब दस मिनट में 1650 राउंड गोलियां चलाने के बाद जनरल डायर इसलिए रुक गया था क्योंकि उसके सैनिकों की गोलियां खत्म हो गई थीं। अंग्रेजों के आंकड़े बताते हैं कि जलियांवाला बाग कांड में 379 लोग मारे गए थे।
जबकि हकीकत ये है कि उस दिन एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे और करीब दो हजार गोलियों से जख्मी हुए थे। इस नरसंहार के बाद पूरे देश में ऐसा गुस्सा फूटा कि ब्रिटिश हुकूमत की जड़े हिल गईं, लेकिन इतना सब होने के बाद भी ब्रिटिश हुकूमत ने आजतक इस नरसंहार के लिए माफी नहीं मांगी है।
21 साल बाद उधम सिंह ने लंदन में जनरल डायर को मारकर लिया था का बदला
जब यह हत्याकांड हुआ तब शहीद उधम सिंह की उम्र 20 साल थी। शहीद उधम सिंह ने कसम खा ली थी इस हत्याकांड के जिम्मेदार लोगों से बदला लेने की। जनरल डायर को तो उनकी बीमारी के चलते 1927 में मौत हो गई लेकिन माइकल ओ डायर अब तक जिंदा था। वो रिटायर होने के बाद हिंदुस्तान छोड़कर लंदन में बस गया था। इस बात से अंजान कि उसकी मौत उसके पीछे-पीछे आ रही है। माइकल ओ डायर से बदला लेने के लिए शहीद उधम सिंह 1934 में लंदन पहुंचे। वहां उन्होंने एक कार और एक रिवाल्वर खरीदी तथा सही मौके का इंतजार करने लगे और ये मौका आया 13 मार्च 1940 को, जलियांवाला बाग कांड के 21 साल बाद। 13 मार्च 1940 को लंदन के कैक्सटन हॉल में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की एक बैठक चल रही थी। जहां वो भी पहुंचे और उनके साथ एक किताब भी थी। इस किताब में पन्नों को काटकर एक बंदूक रखी हुई थी। इस बैठक के खत्म होने पर उधम सिंह ने किताब से बंदूक निकाली और माइकल ओ डायर पर फायर कर दिया। माइकल ओ डायर को दो गोलियां लगीं और पंजाब के इस पूर्व गवर्नर की मौके पर ही मौत हो गई। अपनी 21 साल पुरानी कसम पूरी करने के बाद उधम सिंह ने भागने की कोई कोशिश नहीं की। उधम सिंह को अंग्रेज पुलिस गिऱफ्तार कर लिया लेकिन उस वक्त भी आज़ादी का ये मतवाला मुस्कुरा रहा था। लंदन की अदालत में भी शहीद उधम सिंह ने भारत माता का पूरा मान रखा और सर तान कर कहा, 'मैंने माइकल ओ डायर को इसलिए मारा क्योंकि वो इसी लायक था। वो मेरे वतन के हजारों लोगों की मौत का दोषी था। वो हमारे लोगों को कुचलना चाहता था और मैंने उसे ही कुचल दिया। पूरे 21 साल से मैं इस दिन का इंतज़ार कर रहा था। मैंने जो किया मुझे उस पर गर्व है। मुझे मौत का कोई खौफ नहीं क्योंकि मैं अपने वतन के लिए बलिदान दे रहा हूं।' 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में उधम सिंह को हंसते-हंसते फांसी को चूम लिया। जब तक हिंदुस्तान रहेगा अमर शहीद उधम सिंह की इस वीरगाथा को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा।