प्रणब ने संघ के कार्यक्रम में जाने पर तोड़ी चुप्पी, बोले- जो कहना है वो नागपुर में ही कहूंगा
By: Priyanka Maheshwari Sun, 03 June 2018 01:46:59
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस के कार्यक्रम में जाने को लेकर पहली बार चुप्पी तोड़ी है। प्रणब मुखर्जी ने कहा कि जो कहना है नागपुर में ही कहूंगा। पूर्व राष्ट्रपति ने बांग्ला के एक अखबार को दिए गए साक्षात्कार में कहा, मुझे कई तरह के पत्र और फोन कॉल आए हैं लेकिन मैंने किसी का भी जवाब नहीं दिया है। इससे पहले कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने पूर्व राष्ट्रपति को उनके आरएसएस के कार्यक्रम में जाने के फैसले पर फिर से विचार करने के लिए कहा था। जयराम रमेश ने कहा था कि उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति को लिखा कि उन जैसे विद्वान और सेक्युलर व्यक्ति को आरएसएस के साथ किसी तरह की नजदीकी नहीं दिखानी चाहिए। उनके संघ के कार्यक्रम में जाने से देश के धर्मनिरपेक्ष माहौल पर बुरा असर पड़ेगा। जयराम ने कहा कि प्रणब मुखर्जी ने हमारा मार्गदर्शन किया है। अब ऐसा क्या हो गया कि वह संघ के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनकर जाएंगे। प्रणब आरएसएस के शिक्षा वर्ग कार्यक्रम में 7 जून को हिस्सा लेने जा रहे हैं।
संदीप दीक्षित ने कहा था कि आरएसएस और पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के व्यक्तित्व में काफी अंतर है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि संघ के कार्यक्रम में प्रणब मुखर्जी क्या कहेंगे। दीक्षित नहीं पार्टी के दूसरे नेता भी प्रणब मुखर्जी के आरएसएस का निमंत्रण स्वीकार करने को लेकर अचंभित है। वह कहते हैं कि वर्ष 1976-77 और बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद आरएसएस पर पाबंदी लगाई गई, उस वक्त प्रणब मुखर्जी सरकार का हिस्सा थे। ऐेसे में वह किसी ऐसी संस्था के मुख्यालय कैसे जा सकते हैं, जिस संस्था पर उन्होंने दो बार पाबंदी लगाई हो।
हालांकि, पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने का कहना है कि उन्होंने निमंत्रण स्वीकार कर लिया है। लिहाजा, उन्हें कार्यक्रम में जाना ही चाहिए, लेकिन वहां जाकर संघ की विचारधारा में मौजूद खामियों के बारे में बताना चाहिए।
दरअसल, प्रणब मुखर्जी को नागपुर के संघ मुख्यालय में आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम के 7 जून को होने वाले समापन समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया है। इसी को लेकर कांग्रेस में उथल-पुथल मची है। इस पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि मुखर्जी का संघ का निमंत्रण स्वीकार करना अच्छी पहल है। राजनीतिक छुआछूत अच्छी बात नहीं है।