Flashback 2018 : इस साल सुप्रीम कोर्ट के इन बड़े फैसलों पर रही देश की नजर, बदली समाज की दशा और दिशा
By: Pinki Sat, 22 Dec 2018 09:24:03
2019 के आने में अब कुछ ही दिन बाकी ऐसे में हम यहां बात करेंगे सुप्रीम कोर्ट के उन बड़े फैसलों की जो इस साल आए। सुप्रीम कोर्ट के लिहाज से यह साल ऐतिहासिक रहा। एक तरफ जहां सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को रद्द करते हुए समलैंगिकता पर ऐतिहासिक फैसला दिया और इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया वही 158 साल पुराने व्यभिचार-रोधी कानून को रद्द कर दिया है और कहा है कि व्यभिचार अपराध नहीं है। तो आइये हम नजर डालते है सुप्रीम कोर्ट के उन फैसलों पर जिनसे समाज की दशा और दिशा भी बदली।
धारा 377 रद्द, SC ने कहा- समलैंगिकता अपराध नहीं
6 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता पर ऐतिहासिक फैसला दिया और इसे अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। चीफ़ जस्टिस की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने एकमत से ये फ़ैसला सुनाया। करीब 55 मिनट में सुनाए इस फ़ैसले में धारा 377 को रद्द कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को अतार्किक और मनमानी बताते हुए कहा कि LGBT समुदाय को भी समान अधिकार है। धारा 377 के ज़रिए एलजीबीटी की यौन प्राथमिकताओं को निशाना बनाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सहमति से समलैंगिक संबंध बनाए जाने पर इसे अपराध नहीं माना जाएगा। अंतरंगता और निजता किसी की निजी च्वाइस है। इसमें राज्य को दख़ल नहीं देना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि किसी भी तरह का भेदभाव मौलिक अधिकारों का हनन है। धारा 377 संविधान के समानता के अधिकार आर्टिकल 14 का हनन करती है।
158 साल पुराने व्यभिचार कानून को किया खत्म
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में पांच जजों की संविधान पीठ ने 27 सितंबर को भारतीय आचार दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 व्यभिचार (Adultery) कानून को खत्म कर दिया। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आईपीसी की धारा 497 महिला के सम्मान के खिलाफ है। पति कभी भी पत्नी का मालिक नहीं हो सकता है। इस फैसले के बाद शादी के बाद संबंध अपराध नहीं हैं। धारा 497 मनमानी का अधिकार देती थी। सुप्रीम कोर्ट ने 158 साल पुराने व्यभिचार-रोधी कानून को रद्द कर दिया है और कहा है कि व्यभिचार अपराध नहीं है। कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं कि यह तलाक का आधार हो सकता है, लेकिन यह कानून महिला के जीने के अधिकार पर असर डालता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शादी के बाहर के संबंधों पर दोनों पर पति और पत्नी का बराबर अधिकार है। किसी पुरुष द्वारा विवाहित महिला से यौन संबंध बनाना अपराध नहीं है। इस धारा में दूसरे व्यक्ति की पत्नी के साथ विवाहेतर यौन संबंध बनाने पर सिर्फ पुरुष के लिए सजा का प्रावधान था, लेकिन महिलाओं को ऐसे अपराध में दंड से मुक्त रखा गया था। कोर्ट ने कहा, 'यह निजता का मामला है। पति, पत्नी का मालिक नहीं है। महिलाओं के साथ पुरुषों के समान ही व्यवहार किया जाना चाहिए।'
'आधार' की वैधानिकता पर अहम फैसला
आधार की अनिवार्यता को लेकर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आधार आम आदमी की पहचान है और कोर्ट ने कुछ बदलावों के साथ आधार की संवैधानिकता को बरकरार रखा। फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'आधार को मोबाइल नंबर और बैंक अकाउंट से जोड़ना जरूरी नहीं है। आधार को पैन कार्ड से जोड़ना जरूरी है। प्राइवेट कंपनियां आपकी पहचान के लिए आपसे आधार नहीं मांग सकती हैं। स्कूल एडमिशन के लिए आधार कार्ड को नहीं मांग सकते। उनको दूसरे डॉक्यूमेंट के आधार पर एडमिशन देना होगा। CBSE और NEET और UGC जैसी परीक्षाओं के लिए आधार को अनिवार्य नहीं है। छोटे बच्चों को आधार कार्ड नहीं होने पर सुविधाओं से वंचित नहीं किया जाएगा।' प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 38 दिनों तक चली लंबी सुनवाई के बाद 10 मई को मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसके बाद 26 सितंबर को फैसला सुनाया। कोर्ट ने आधार को बैंक खाते से लिंक करने के फैसले को भी रद्द कर दिया और आधार अधिनियम की धारा 57 हटा दी।
सभी महिलाओं के लिए खोला सबरीमाला मंदिर का दरवाजा
केरल के सबरीमाला मंदिर (Sabarimala Temple Case) में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने 28 सितंबर को अहम फैसला सुनाया। अदालत ने कहा कि महिलाओं का मंदिर में प्रवेश न मिलना उनके मौलिक और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। अदालत ने अपने फैसले में 10 से 50 वर्ष के हर आयुवर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश को लेकर हरी झंडी दिखा दी है। हालांकि श्रद्धालुओं के विरोध के अभी तक महिलाओं का मंदिर में प्रवेश संभव नहीं हो पाया है। फैसला सुनाते हुए जस्टिस चंद्रचूड ने कहा कि क्या संविधान महिलाओं के लिए अपमानजनक बात को स्वीकार कर सकता है ? पूजा से इनकार करना महिला गरिमा से इनकार करना। महिलाओं को भगवान की रचना के छोटे बच्चे की तरह बर्ताव संविधान से आंख मिचौली। वहीं जस्टिस नरीमन में ने कहा कि मंदिर में महिलाओं को भी पूजा का समान अधिकार। ये मौलिक अधिकार है।
राफेल पर मोदी सरकार को क्लीन चिट
सुप्रीम कोर्ट ने 14 दिसंबर को राफेल सौदे पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया और मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने क्लीन चिट दे दी है। सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों ने एकमत से अपने फैसले में राफेल सौदे को लेकर सभी याचिकाएं खारिज कर दी हैं और मोदी सरकार को पूरी तरह से क्लीन चिट दे दी है। बता दें कि राफेल पर मोदी सरकार काफी समय से घिरी थी और विपक्ष ने इसे चुनावी हथियार बनाया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस सौदे को लेकर कोई शक नहीं है और कोर्ट इस मामले में अब कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहती है। विमान खरीद प्रक्रिया पर भी कोई शक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि हमने राष्ट्रीय सुरक्षा और सौदे के नियम कायदे दोनों को जजमेंट लिखते समय ध्यान में रखा है। मूल्य और जरूरत भी हमारे ध्यान में हैं।