'मणिकर्णिका': बड़ा सवाल, आखिर रानी झांसी के शहीद होने के बाद उनके बेटे 'दामोदर राव' का क्या हुआ!
By: Priyanka Maheshwari Tue, 18 Dec 2018 6:29:18
कंगना रनौत (Kangana Ranaut) की ड्रीम फिल्म ‘मणिकर्णिका: द क्वीन ऑफ झांसी’ का ट्रेलर जारी हो गया है। पूरे ट्रेलर में सिर्फ और सिर्फ कंगना ही नजर आ रही हैं। इस ट्रेलर को जारी होने के बाद से दर्शकों ने इसे 2019 की पहली ब्लॉकबस्टर फिल्म कहना शुरू कर दिया है। 3 मिनट 19 सेकंड के इस ट्रेलर में हर एक फ्रेम इतना शानदार है कि शायद ही कोई अपनी नजरें हटा पाए। बेहतरीन सिनेमेटोग्राफी से लेकर बैकग्राउंड म्यूजिक, धमाकेदार संवाद और बेमिसाल अदाकारी से भरा यह ट्रेलर खूबसूरत बन गया है। ट्रेलर देखने के बाद इस बात का शिद्दत से अहसास होता है कि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफलता का नया इतिहास लिखने जा रही है। ट्रेलर देखने के बाद यह कहा जा सकता है कि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर 250 करोड़ तक का कारोबार करने में सफल हो जाएगी। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को पीठ पर बांधकर युद्ध के मैदान में अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। जब झांसी के किले से उन्होंने अपने घोड़े बादल के साथ छलांग लगाई थी तब भी दत्तक पुत्र दामोदार राव उनकी पीठ पर सवार थे। 'मणिकर्णिका' फिल्म के ट्रेलर में भी एक सीन में रानी लक्ष्मीबाई को अपने दत्तक पुत्र के साथ युद्ध के मैदान में दिखाया गया है। इस संदर्भ में आइए दामोदर राव की जिंदगी पर डालते हैं एक नजर:
रानी लक्ष्मीबाई का विवाह झांसी स्टेट के महाराजा गंगाधर राव निवालकर के साथ मई, 1842 में हुआ था। 1851 में उन्होंने पुत्र दामोदर राव को जन्म दिया लेकिन चार महीने बाद ही उसका निधन हो गया। उसके बाद राजा गंगाधर राव ने अपने कजिन वासुदेव राव निवालकर के बेटे आनंद राव को गोद ले लिया। 15 नवंबर, 1849 को जन्मे आनंद का नया नाम दामोदर राव रखा गया। नवंबर, 1853 में महाराजा गंगाधर के निधन से एक दिन पहले दामोदर को दत्तक पुत्र घोषित किया गया। ब्रिटिश राजनीतिक अधिकारी की उपस्थिति में यह प्रक्रिया हुई थी। उसमें महाराजा ने यह आदेश दिया था कि बच्चे को वारिस माना जाएगा और रानी लक्ष्मीबाई के जीवनकाल में झांसी के प्रशासन की बागडोर उनके हाथ में होगी। लेकिन महाराजा के निधन के बाद गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी ने दामोदर राव के दावे को विलय की नीति (डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स) के तहत खारिज कर दिया।
लॉर्ड डलहौजी के दौर में अंग्रेजों की हस्तगत (विलय) नीति के तहत यह व्यवस्था थी कि यदि किसी शासक का निधन हो जाता है और उसका कोई पुरुष वारिस नहीं होता तो वह राज्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के पास चला जाएगा। यह नीति 1858 तक लागू रही। चूंकि दामोदर राव को गोद लिया गया था, इस आधार पर अंग्रेजों ने उनके दावे को खारिज कर दिया। मार्च, 1854 में रानी लक्ष्मीबाई को जब इस संबंध में बताया गया तो उन्होंने चीखते हुए कहा, 'मैं झांसी को नहीं दूंगी।' अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई को वार्षिक पेंशन देने का प्रस्ताव देते हुए महल और किला छोड़ने को कहा लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और 18 जून, 1858 को रानी लक्ष्मीबाई के शहीद होने के बाद युद्ध में बचे करीब उनके 60 विश्वस्तों के साथ दामोदर राव तकरीबन दो साल जंगलों में इधर-उधर शरण की तलाश में घूमते रहे। अंग्रेजों के खौफ के कारण किसी ने शुरू में उनको खुलकर शरण नहीं दी। आखिरकार पुराने विश्वस्तों की मदद से उनकी मुलाकात झालरापाटन के राजा प्रताप सिंह से हुई और उन्होंने आश्रय दिया। यह दौर उनके लिए बहुत कष्टकारी रहा।
इस बीच झांसी राजघराने के पुराने वफादारों ने ब्रिटिश राजनीतिक अफसर फ्लिंक से दामोदार राव के बारे में बात की। लिहाजा उनको इंदौर भेजा गया। वहां पर स्थानीय राजनीतिक एजेंट सर रिचर्ड शेक्सपियर ने उनकी मदद की। उनको 10 हजार वार्षिक पेंशन मुहैया कराई गई। एक कश्मीरी टीचर को उनका संरक्षक बनाया गया और सात अनुयायियों को साथ रखने की अनुमति दी गई। दामोदर राव इंदौर में ही बस गए। पहली पत्नी के निधन के बाद दूसरी पत्नी से बेटे लक्ष्मणराव का जन्म हुआ। 1906 में दामोदर राव निधन हो गया। आजादी के बाद 1857 के गदर के 100 साल पूरे होने पर रानी लक्ष्मीबाई के उल्लेखनीय योगदान के लिए लक्ष्मणराव को सरकार ने सनद और धनराशि देकर सम्मानित किया।
कंगना की ये फिल्म 25 जनवरी, 2019 को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है। इसी दिन बॉक्स ऑफिस पर ऋतिक रोशन की सुपर 30 और इमरान हाशमी की चीट इंडिया भी रिलीज होने वाली है। ऐसे में देखना होगा कि बॉक्स ऑफिस पर इन फिल्मों से कौन बाजी मारेगा।
(इनपुट जी न्यूज़)