निर्जला एकादशी का व्रत दिलाता हैं वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य, जानें इसकी कथा और महत्व के बारे में

By: Ankur Thu, 13 June 2019 08:31:16

निर्जला एकादशी का व्रत दिलाता हैं वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य, जानें इसकी कथा और महत्व के बारे में

हिन्धू धर्म को अपने व्रत और त्यौंहार के लिए जाना जाता हैं। जी हाँ, हिन्दू धर्म में शायद ही ऐसा कोई दिन होगा जिस दिन व्रत नहीं रखा जाता हो। आज ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की ग्यारस हैं जिसे निर्जला एकादशी के रूप में जाना जाता हैं। वैसे तो हर हिन्दू मास में दो एकादशी आती हैं और सभी का अपना विशेष महत्व होता हैं। लेकिन निर्जला एकादशी का महत्व अधिक माना जाता हैं और इस दिन रखे जाने वाले व्रत से वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता हैं। आज हम आपको निर्जला एकादशी की व्रत कथा और इसके महत्व की जानकारी देने जा रहे हैं।

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निर्जला एकादशी व्रत कथा

एक बार जब महर्षि वेदव्यास पांडवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प करा रहे थे। तब महाबली भीम ने उनसे कहा- पितामह। आपने प्रति पक्ष एक दिन के उपवास की बात कही है। मैं तो एक दिन क्या, एक समय भी भोजन के बगैर नहीं रह सकता- मेरे पेट में वृक नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है। तो क्या अपनी उस भूख के कारण मैं एकादशी जैसे पुण्य व्रत से वंचित रह जाऊंगा?

तब महर्षि वेदव्यास ने भीम से कहा- कुंतीनंदन भीम ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला नाम की एक ही एकादशी का व्रत करो और तुम्हें वर्ष की समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। नि:संदेह तुम इस लोक में सुख, यश और मोक्ष प्राप्त करोगे। यह सुनकर भीमसेन भी निर्जला एकादशी का विधिवत व्रत करने को सहमत हो गए और समय आने पर यह व्रत पूर्ण भी किया। इसलिए वर्ष भर की एकादशियों का पुण्य लाभ देने वाली इस श्रेष्ठ निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

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निर्जला एकादशी का महत्व

- निर्जला एकादशी के व्रत से साल की सभी 24 एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होता है।
- एकादशी व्रत से मिलने वाला पुण्य सभी तीर्थों और दानों से ज्यादा है। मात्र एक दिन बिना पानी के रहने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश हो जाता है।
- व्रती (व्रत करने वाला) मृत्यु के बाद यमलोक न जाकर भगवान के पुष्पक विमान से स्वर्ग को जाता है।
- व्रती को स्वर्ण दान का फल मिलता है। हवन, यज्ञ करने पर अनगिनत फल पाता है। व्रती विष्णुधाम यानी वैकुण्ठ पाता है।
- व्रती चारों पुरुषार्थ यानी धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष को प्राप्त करता है।
- व्रत भंग दोष- शास्त्रों के मुताबिक अगर निर्जला एकादशी करने वाला व्रती, व्रत रखने पर भी भोजन में अन्न खाए, तो उसे चांडाल दोष लगता है और वह मृत्यु के बाद नरक में जाता है।

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