नवरात्रि व्रत की यह लोककथा, देती है कार्य के प्रति निष्ठा की शिक्षा

By: Ankur Mon, 08 Oct 2018 12:55:29

नवरात्रि व्रत की यह लोककथा, देती है कार्य के प्रति निष्ठा की शिक्षा

नवरात्रि का त्योहार आने को हैं और सभी मातारानी के इन विशेष दिनों की तैयारियों में लगे हुए हैं। मातारानी के इन नौ दिनों में सभी भक्तगण पूजा-अर्चना करते हैं और कामना करते हैं कि मातारानी हमेशा उनपर अपनी कृपा बनाए रखें। इसके लिए लोग नवरात्रि व्रत रखते हैं और पूजन करते हैं। आज हम आपके लिए नवरात्रि व्रत की एक लोककथा लेकर आए हैं जो काफी प्रचलित हैं और नवरात्रि व्रत के दौरान सुनी जाती हैं। यह कथा हमें जीवन की कई शिक्षा देती हैं। तो आइये जानते हैं इस कथा के बारे में।

कौशल देश में सुशील नामक का एक निर्धन ब्राह्मण रहता था। प्रतिदिन मिलने वाली भिक्षा से वह अपने परिवार का भरण-पोषण करता था। उसके कई बच्चे थे। प्रातःकाल वह भिक्षा लेने घर से निकलता और सायंकाल लौट आता था। देवताओं, पितरों और अतिथियों की पूजा करने के बाद आश्रितजन को खिलाकर ही वह स्वयं भोजन ग्रहण करता था। इस प्रकार भिक्षा को वह भगवान का प्रसाद समझकर स्वीकार करता था।

इतना दुःखी होने पर भी वह दूसरों की सहायता के लिए सदैव तत्पर रहता था। यद्यपि उसके मन में अपार चिंता रहती थी, तथापि वह सदैव धर्म-कर्म में लगा रहता था। अपनी इन्द्रियों पर उसका पूर्ण नियंत्रण था। वह सदाचारी, धर्मात्मा और सत्यवादी था। उसके हृदय में कभी क्रोध, अहंकार और ईर्ष्या जैसे तुच्छ विकार उत्पन्न नहीं होते थे।
एक बार उसके घर के निकट सत्यव्रत नामक एक तेजस्वी ऋषि आकर ठहरे। वे एक प्रसिद्ध तपस्वी थे। मंत्रों और विद्याओं का ज्ञाता उनके समान आस-पास दूसरा कोई नहीं था। शीघ्र ही अनेक व्यक्ति उनके दर्शनों को आने लगे। सुशील के हृदय में भी उनसे मिलने की इच्छा जागृत हुई और वह उनकी सेवा में उपस्थित हुआ।

astrology tips,navratri,navratri katha,navratri special,folk tale ,नवरात्री, नवरात्रि कथा, नवरात्रि स्पेशल, मातारानी की कथा, ज्योतिष टिप्स, लोककथा

सत्यव्रत को प्रणाम कर वह बोला-“ऋषिवर! आपकी बुद्धि अत्यंत विलक्षण है। आप अनेक शास्त्रों, विद्याओं और मंत्रों के ज्ञाता हैं। मैं एक निर्धन, दरिद्र और असहाय ब्राह्मण हूँ। कृपया मुझे बताएं कि मेरी दरिद्रता किस प्रकार समाप्त हो सकती है?”सत्यव्रत ने आगे कहा कि, “मुनिवर! आपसे यह पूछने का केवल इतना ही अभिप्राय है कि मुझ में कुटुम्ब का भरण-पोषण करने की शक्ति आ जाए। धनाभाव के कारण मैं उन्हें समुचित सुविधाएं और अन्य सुख नहीं दे पा रहा हूं। दयानिधान! तप, दान, व्रत, मंत्र अथवा जप-आप कोई ऐसा उपाय बताने का कष्ट करें, जिससे कि मैं अपने परिवार का यथोचित भरण-पोषण कर सकूं। मुझे केवल इतने ही धन का अभिलाषा है, जिससे कि मेरा परिवार सुखी हो जाए।”

सत्यव्रत ने सुशील को भगवती दुर्गा की महिमा बताते हुए नवरात्रि व्रत करने का परामर्श दिया। सुशील ने सत्यव्रत को अपना गुरु बनाकर उनसे मायाबीज नामक भुवनेश्वरी मंत्र की दीक्षा ली। तत्पश्चात नवरात्रि व्रत रखकर उस मंत्र का नियमित जप आरंभ कर दिया। उसने भगवती दुर्गा की श्रद्धा और भक्तिपूर्वक आराधना की।

नौ वर्षों तक प्रत्येक नवरात्रि में वह भगवती दुर्गा के मायाबीज मंत्र का निरंतर जप करता रहा। सुशील की भक्ति से प्रसन्न होकर नवें वर्ष की नवरात्रि में, अष्टमी की आधी रात को देवी भगवती साक्षात प्रकट हुईं और सुशील को उसका अभीष्ट वर प्रदान करते हुए उसे संसार का समस्त वैभव, ऐश्वर्य और मोक्ष प्रदान किया।

इस प्रकार भगवती दुर्गा ने प्रसन्न होकर अपने भक्त सुशील के सभी कष्टों को दूर कर दिया और उसे अतुल धन-सम्पदा, मान-सम्मान और समृद्धि प्रदान की।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि किसी भी कार्य को श्रद्धा, भक्ति और निष्ठा से करने पर उसका फल सदैव अनुकूल ही प्राप्त होता है।

हम WhatsApp पर हैं। नवीनतम समाचार अपडेट पाने के लिए हमारे चैनल से जुड़ें... https://whatsapp.com/channel/0029Va4Cm0aEquiJSIeUiN2i

Home | About | Contact | Disclaimer| Privacy Policy

| | |

Copyright © 2024 lifeberrys.com