क्या आप जानतें है आखिर केवल पुष्कर में ही क्यूँ है ब्रह्मा जी का मंदिर, जाने इसके पीछे की कहानी
By: Ankur Tue, 26 Dec 2017 2:36:41
हिन्दुओं में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को त्रिदेव कहा जाता हैं जो कि प्रधान देवता माने जाते हैं। ब्रह्मा ने संसार की रचना की, विष्णु इसके पालनहार हैं और महेश को सृष्टि का संहारक माना जाता हैं। दुनिया में कई देवताओं के कई मंदिर हैं लेकिन सृष्टि के रचनाकार होते हुए भी ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर हैं जो कि राजस्थान के विश्व प्रसिद्ध तीर्थ पुष्कर में स्थित है। लेकिन ब्रह्मा जी का केवल एक ही मंदिर क्यों हैं, क्या इसके पीछे का कारण जानते हैं आप? अगर नहीं जानते हैं तो आज हम बताएँगे आपको इसके पीछे का कारण। इसके पीछे का कारण है उनकी पत्नी सावित्री के द्वारा दिया गया उनको श्राप। आखिर क्यों दिया सावित्री ने अपने पति ब्रह्मा को ऐसा श्राप इसका वर्णन पद्म पुराण में मिलता है। आइये जानते हैं इस श्राप के पीछे की कहानी के बारे में।
हिन्दू धर्मग्रन्थ पद्म पुराण के मुताबिक एक समयधरती पर वज्रनाश नामक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। उसके बढ़ते अत्याचारों से तंग आकर ब्रह्मा जी ने उसका वध किया। लेकिन वध करते वक़्त उनके हाथों से तीन जगहों पर कमल का पुष्प गिरा, इन तीनों जगहों पर तीन झीलें बनी। इसी घटना के बाद इस स्थान का नाम पुष्कर पड़ा। इस घटना के बाद ब्रह्मा ने संसार की भलाई के लिए यहाँ एक यज्ञ करने का फैसला किया।
अब स्थान का चुनाव करने के बाद ब्रह्माजी यज्ञ के लिए ठीक उसी स्थान पहुंचे जहां पुष्प गिरा था। लेकिन उनकी पत्नी सावित्री वक्त पर नहीं पहुंच पाईं। ब्रह्माजी ने ध्यान दिया कि यज्ञ का समय तो निकल रहा है, यदि सही समय पर आरंभ नहीं किया तो इसका असर अच्छा कैसे होगा। परन्तु उन्हें यज्ञ के लिए एक स्त्री की आवश्यकता थी, इसलिए उन्होंने एक स्थानीय ग्वाल बाला से शादी कर ली और यज्ञ में बैठ गए। उसी दौरान देवी सावित्री वहां पहुंची और ब्रह्मा के बगल में दूसरी कन्या को बैठा देख क्रोधित हो गईं। उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि देवता होने के बावजूद कभी भी उनकी पूजा नहीं होगी। सावित्री के इस रुप को देखकर सभी देवता लोग डर गए। उन्होंने उनसे विनती की कि अपना शाप वापस ले लीजिए।
उन्होंने ब्रह्मा जी को श्राप दिया कि देवता होने के बावजूद कभी भी उनकी पूजा नहीं होगी। सावित्री के इस रुप को देखकर सभी देवता डर गए। सभी ने सावित्री जी से विनती की कि अपना श्राप वापस ले लीजिए, लेकिन उन्होंने किसा की न सुनी। जब गुस्सा ठंडा हुआ तो सावित्री ने कहा कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में ही आपकी पूजा होगी। कोई भी आपका मंदिर बनाएगा तो उसका विनाश हो जाएगा।
भगवान विष्णु ने भी इस काम में ब्रह्मा जी की मदद की थी। इसलिए देवी सरस्वती ने विष्णु जी को भी श्राप दिया था कि उन्हें पत्नी से विरह का कष्ट सहन करना पड़ेगा। इसी कारण भगवान विष्णु ने राम के रुप में मानव अवतार लिया और 14 साल के वनवास के दौरान उन्हें पत्नी से अलग रहना पड़ा था।
ब्रह्मा जी के मंदिर का निर्माण कब हुआ व किसने किया इसका कोई उल्लेख नहीं है। लेकिन ऐसा कहते है की आज से तकरीबन एक हजार दो सौ साल पहले अरण्व वंश के एक शासक को एक स्वप्न आया था कि इस जगह पर एक मंदिर है जिसके सही रख रखाव की जरूरत है। तब राजा ने इस मंदिर के पुराने ढांचे को दोबारा जीवित किया।