Janmashtami Special : द्वारका में इस जगह चावल का दान करना, दूर करता है कई जन्मों की गरीबी

By: Ankur Mon, 03 Sept 2018 09:24:27

Janmashtami Special : द्वारका में इस जगह चावल का दान करना, दूर करता है कई जन्मों की गरीबी

कृष्ण जन्माष्टमी का महोत्सव आ चूका हैं और सभी तरह इसकी रौनक देखी जा सकती हैं। खासतौर पर द्वारका में जहां स्वयं द्वारकाधीशजी का मंदिर है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि द्वारका को तीन भागों में बांटा गया है। मूल द्वारका, गोमती द्वारका और बेट द्वारका में। आपको जानकर हैरानी होगी कि बेट द्वारका में चावल का दान करने से कई जन्मों की गरीबी दूर होती हैं। आज हम आपको बेट द्वारका से जुडी इसके पीछे की प्रचलित कथा के बारे में ही बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इस कथा के बारे में।

भेट का मतलब मुलाकात और उपहार भी होता है। इस नगरी का नाम इन्हीं दो बातों के कारण भेट पड़ा। दरअसल ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण की अपने मित्र सुदामा से भेट हुई थी। गोमती द्वारका से यह स्थान 35 किलोमीटर दूर स्थित है। इस मंदिर में कृष्ण और सुदामा की प्रतिमाओं की पूजा होती है। मान्यता है कि द्वारका यात्रा का पूरा फल तभी मिलता है जब आप भेट द्वारका की यात्रा करते हैं।

मान्यता है कि द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण का महल यहीं पर हुआ करता था। द्वारका के न्यायाधीश भगवान कृष्ण ही थे। माना जाता है कि आज भी द्वारका नगरी इन्हीं की कस्टडी में है। इसलिए भगवान कृष्ण को यहां भक्तजन द्वारकाधीश के नाम से पुकारते हैं। मान्यता है कि सुदामा जी जब अपने मित्र से भेंट करने यहां आए थे तो एक छोटी सी पोटली में चावल भी लाए थे। इन्हीं चावलों को खाकर भगवान कृष्ण ने अपने मित्र की दरिद्रता दूर कर दी थी। इसलिए यहां आज भी चावल दान करने की परंपरा है। ऐसी मान्यता है कि मंदिर में चावल दान देने से भक्त कई जन्मों तक गरीब नहीं होते।

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माना जाता हैं कि एक बार संपूर्ण द्वारका नगरी समुद्र में डूब गई थी, लेकिन भेंट द्वारका बची रही द्वारका का यह हिस्सा एक टापू के रूप में मौजूद है। मंदिर का अपना अन्न क्षेत्र भी है। यहां मंदिर का निर्माण 500 साल पहले महाप्रभु संत वल्लभाचार्य ने करवाया था। मंदिर में मौजूद भगवान द्वारकाधीश की प्रतिमा के बारे में कहा जाता है कि इसे रानी रुक्मिणी ने स्वयं तैयार किया था।

मान्यता है कि भेंट द्वारका ही वह स्थान है जहां भगवान कृष्ण ने अपने परम भक्त नरसी की हुंडी भरी थी। पहले के जमाने में यह चलन था कि लोग पैदल यात्रा में अधिक धन अपने साथ नहीं ले जाते थे। इस डर से कि कोई चोर न चुरा ले। धन साथ ले जाने की बजाए वे किसी विश्वस्त और प्रसिद्ध व्यक्ति के पास रुपया जमा करके उससे दूसरे शहर के व्यक्ति के नाम हुंडी (धनादेश) लिखवा लेते थे। नरसिंह मेहता की गरीबी का उपहास करने के लिए कुछ शरारती लोगों ने द्वारका जाने वाले तीर्थ यात्रियों से उनके नाम हुंडी लिखवा ली, पर जब यात्री द्वारका पहुंचे तो भगवान कृष्ण ने नरसिंह की लाज रखने के लिए श्यामल शाह सेठ का रूप धारण किया और नरसिंह की हुंडी को भर दिया। इस हुंडी का धन तीर्थयात्रियों को दे दिया गया और इस तरह नरसिंह का यश बढ़ गया।

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