
वैश्विक मंच पर लगातार बदलते समीकरणों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को चीन के तियानजिन पहुंचे हैं। यहां वे शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। इस बहुपक्षीय बैठक में उनकी मुलाकात चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन समेत कई अन्य देशों के नेताओं से तय है। सात साल बाद हो रही मोदी की यह चीन यात्रा कूटनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
व्यापारिक तनाव के बीच मुलाकात
दुनिया इस समय अमेरिका के टैरिफ वार की मार झेल रही है। ऐसे माहौल में नरेंद्र मोदी और जिनपिंग की बैठक पर सबकी निगाहें टिकी हैं। पिछले एक साल से दोनों देश सीमा विवाद और अन्य मसलों पर संबंध सामान्य करने की कोशिश कर रहे हैं। कैलाश मानसरोवर यात्रा की बहाली और चीन की ओर से भारतीय नागरिकों को पर्यटक वीजा में दी गई ढील इस दिशा में उठाए गए कदमों का हिस्सा रहे हैं। अब उम्मीद की जा रही है कि यह मुलाकात रिश्तों में और सुधार लाने का मार्ग प्रशस्त करेगी।
पीएम मोदी ने तियानजिन पहुंचने के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा— “चीन के तियानजिन पहुंचा हूं। SCO समिट में सार्थक चर्चा और कई नेताओं से मुलाकात के लिए उत्साहित हूं।”
म्यांमार के नेताओं से भी संवाद
मोदी का कार्यक्रम सिर्फ शी जिनपिंग तक सीमित नहीं है। खबर है कि वे म्यांमार के कार्यवाहक राष्ट्रपति और सेना प्रमुख मिन आंग ह्लाइंग से भी मिल सकते हैं। 2021 में म्यांमार में सेना द्वारा सत्ता कब्जाने के बाद भारत और वहां की सैन्य सरकार के रिश्ते सहज नहीं रहे। हालांकि मोदी इस साल दूसरी बार म्यांमार के नेता से मिलेंगे। इससे पहले वे थाईलैंड में BIMSTEC सम्मेलन के दौरान आमने-सामने आए थे। म्यांमार में इसी साल के अंत तक चुनाव होने हैं और भारत चाहता है कि वहां लोकतांत्रिक प्रक्रिया जल्द से जल्द पटरी पर लौटे।
गौरतलब है कि पश्चिमी देशों ने म्यांमार पर सख्त आर्थिक और राजनीतिक पाबंदियां लगा रखी हैं, जबकि चीन और भारत दोनों के साथ उसके रिश्ते अपेक्षाकृत ठीक हैं। भारत के लिए यह इसलिए भी अहम है क्योंकि म्यांमार के साथ उसकी करीब 1600 किलोमीटर लंबी सीमा जुड़ी है। वहां की अस्थिरता सीधे तौर पर भारत की सुरक्षा और सीमा प्रबंधन को प्रभावित कर सकती है।
भारत-चीन रिश्तों में नए मोड़ की संभावना
विशेषज्ञों की मानें तो मोदी-जिनपिंग की यह मुलाकात भारत-चीन संबंधों को नई दिशा दे सकती है। दोनों देशों के बीच लंबे समय से व्यापारिक असंतुलन और सीमा तनाव रहा है, लेकिन अब कोशिश है कि सहयोग के नए रास्ते खुलें। सूत्रों का कहना है कि मोदी निष्पक्ष और टिकाऊ साझेदारी पर जोर देंगे। साथ ही वे दुर्लभ खनिज, खाद और औद्योगिक उपकरणों जैसे क्षेत्रों में भारत की ज़रूरतों को लेकर चीन से ठोस आश्वासन पाने की कोशिश करेंगे।
हाल ही में चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर को भरोसा दिलाया था कि बीजिंग कुछ अहम वस्तुओं पर लगे निर्यात प्रतिबंधों को हटाने पर विचार कर रहा है। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि बातचीत से ठोस नतीजे निकल सकते हैं।
सुरक्षा पर भी होगी चर्चा
व्यापारिक सहयोग के अलावा मोदी सीमा पार आतंकवाद का मुद्दा भी उठा सकते हैं। पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले के बाद भारत इस विषय को लेकर और भी गंभीर है। पीएम मोदी चाहेंगे कि चीन इस मसले पर भारत के दृष्टिकोण को समझे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समर्थन दे।














