पुरातत्वविदों को दलदल में मिला 5,000 साल पुराना मानव कंकाल, बलि के मिले संकेत
By: Priyanka Maheshwari Thu, 29 Dec 2022 10:31:09
डेनमार्क (Denmark) में पुरातत्वविदों को करीब 5,000 साल पुराना मानव कंकाल मिला है। पुरातत्वविदों को यह कंकाल कोपेनहेगन के पास एक साइट पर खुदाई के दौरान दलदल में मिला है। डेनमार्क में 10 संग्रहालयों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था ROMU के शोधकर्ता क्रिश्चियन डेडेनरोथ-शौ (Christian Dedenroth-Schou) को कीचड़ में एक फीमर हड्डी मिली जिसके बाद मिट्टी में और खुदाई करने के बाद, उन्हें और उनके सहयोगियों को दोनों पैरों, पेल्विस और जबड़े की लगभग सभी हड्डियां मिल गईं। पुरातत्वविदों का मानना है कि इस कंकाल से बलि की प्रथा के संकेत मिलते हैं।शोधकर्ताओं ने इसे bog body कहा, यानी दलदल में पाई गई बॉडी। बता दे, डेनमार्क में दलदल से Tollund Man भी पाया गया था, जो अब तक की सबसे प्रसिद्ध बॉग बॉडी है।
Well-Preserved Bog Body Unearthed in Denmark Might Be Remains of an Ancient Ritual https://t.co/21Q78Agjwf
— ScienceAlert (@ScienceAlert) December 25, 2022
ROMU के मुताबिक, कंकाल पूरा नहीं है, और बलि के भी कोई प्रत्यक्ष निशान नहीं है, लेकिन पुरातत्वविदों का मानना है कि दलदल में मिला व्यक्ति केवल हत्या का शिकार नहीं था, बल्कि उसे एक सुनियोजित तरीके या अनुष्ठान के तहत मारा गया था।
डेनमार्क के राष्ट्रीय संग्रहालय के मुताबिक, माना जाता है कि दलदल उत्तरी यूरोप के प्राचीन लोगों के लिए काफी अहमियत रखते थे। इन्हें इंसानों की दुनिया और देवताओं की दुनिया के बीच का प्रवेश द्वार माना जाता था।दलदल में खोजे गए लोग 4,300 ईसा पूर्व और 600 ईसा पूर्व के बीच या नवपाषाण और लौह युग के बीच के थे, जिनकी देवताओं के लिए बलि दी गई थी।
आपको बता दे, इससे पहले भी यूरोप के दलदल से दर्जनों अवशेष मिले हैं। इन दलदल की खास बात यह होती है कि इसमें शरीर संरक्षित रहता है। हज़ारों साल पुराना शरीर होने के बावजूद, दलदल में ऑक्सीजन की कमी और अम्लीय वातावरण होने की वजह से वहां बैक्टीरिया जीवित नहीं रह पाते। इसी वजह से अवशेष सलामत रहते हैं।
जिस जगह कंकाल मिला है वहां से पाषाण युग की चकमक कुल्हाड़ी, जानवरों की हड्डियों के अवशेष, और चीनी मिट्टी की चीज़ें पाई गईं। इन चीजों के मिलने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि वस्तुओं को किसी अनुष्ठान के लिए वहां रखा गया होगा।पुरातत्वविद् एमिल विन्थर स्ट्रुवे (Emil Winther Struve) का कहना है कि जो कुल्हाड़ी वहां मिली थी, उसका कभी इस्तेमाल नहीं किया गया था। ये इसी तरफ इशारा करता है कि कुल्हाड़ी को हत्या के लिए इस्तेमाल नहीं किया गया था, बल्कि उसे चढ़ावे के तौर पर वहां रखा गया था।
शोधकर्ताओं का कहना है कि इस बात के सबूत मिलते हैं कि ये शरीर नियोलिथिक काल से था, क्योंकि मानव बलि की परंपरा तभी से चली आ रही है। पुरातत्वविदों ने बताया कि तब वस्तुओं, लोगों और जानवरों को औपचारिक तौर पर दफनाने की परंपरा थी। यह प्राचीन काल में ऐसा बहुत होता था और इस बात की सबसे ज्यादा संभावना है कि इस व्यक्ति के साथ भी यही हुआ होगा। पिछली खोजों से पता चलता है कि इस इलाके में इस तरह के अनुष्ठान हुआ करते थे।