
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने सियासी हलचल पैदा कर दी है, और अब कांग्रेस ने इसे भारतीय जनता पार्टी की आंतरिक राजनीति और 'यूज एंड थ्रो' की संस्कृति का उदाहरण करार दिया है। राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और इसे संविधान, किसानों और लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी बताया है। डोटासरा ने आरोप लगाया कि भाजपा अब उस मुकाम पर पहुंच चुकी है, जहां वह केवल 'काम निकालो और किनारे करो' की नीति पर चल रही है। उन्होंने कहा, "जगदीप धनखड़ साहब जैसे लोगों को जब तक जरूरत थी, तब तक इस्तेमाल किया गया। जैसे ही उन्होंने आत्मा की आवाज़ उठाई, उन्हें दरकिनार कर दिया गया।" यह बात ध्यान देने योग्य है कि धनखड़ पहले भी केंद्र सरकार के कई निर्णयों पर संयमित लेकिन स्पष्ट रुख रखते आए हैं। राष्ट्रपति चुनाव से पहले भी उन्होंने कहा था कि "संसदीय लोकतंत्र में विपक्ष की गरिमा बनी रहनी चाहिए", जिससे उन्हें पार्टी के भीतर नाराजगी झेलनी पड़ी थी।
किसान पुत्र का अपमान, राजस्थान में जाट वोट प्रभावित?
डोटासरा ने यह भी कहा कि "धनखड़ जैसे स्पष्टवक्ता, किसान पुत्र के साथ इस तरह का व्यवहार पूरे किसान समाज का अपमान है।" राजस्थान जैसे राज्य में, जहां जाट समुदाय का राजनीतिक प्रभाव काफी मजबूत है, वहां इस घटना का सीधा असर भाजपा के किसान वोट बैंक पर पड़ सकता है। विशेषज्ञों का मानना है कि राजस्थान में भाजपा की रणनीति में जाट-गुर्जर समीकरण हमेशा अहम भूमिका निभाते रहे हैं। ऐसे में धनखड़ जैसे प्रमुख जाट नेता का हटना राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकता है।
सतीश पूनिया जैसे उदाहरणों की भी चर्चा
डोटासरा ने नाम लिए बिना कहा कि “राजस्थान में भी भाजपा कई नेताओं के साथ यही करती आई है।” उन्होंने सतीश पूनिया का हवाला देते हुए कहा कि “भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष रहते उनसे खूब काम लिया, लेकिन चुनाव के बाद एकदम किनारे कर दिया।” भाजपा में अक्सर आंतरिक गुटबाजी और दिल्ली बनाम राज्य स्तर की नेतृत्व खींचतान को लेकर चर्चा होती रही है, जिससे नेताओं की भूमिका अस्थिर होती है।
धनखड़ के बयानों से मिला इस्तीफे का संकेत?
धनखड़ के कुछ हालिया बयान, जैसे "विपक्ष को दुश्मन नहीं, लोकतंत्र का साथी समझना चाहिए", पार्टी लाइन से हटकर माने गए। डोटासरा ने कहा कि यह कोई मेडिकल बुलेटिन नहीं है, बल्कि संवेदनशील नेता का पीड़ा-भरा संदेश है जो इस्तीफे की भाषा में सामने आया। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि धनखड़ का यह कदम अचानक नहीं बल्कि एक लंबे असंतोष का परिणाम हो सकता है, जो अब सार्वजनिक रूप से सामने आया है।
लोकतंत्र और संविधान के लिए खतरा?
डोटासरा ने कहा कि नई बीजेपी असहमति को कुचलना चाहती है। अब पार्टी में अंतरात्मा की कोई जगह नहीं। यह लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।” उन्होंने यह भी कहा कि "जो नेता सवाल पूछते हैं, उन्हें या तो सस्पेंड कर दिया जाता है या बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है।
क्या यह बदलाव की आहट है?
डोटासरा ने कहा, “धनखड़ का इस्तीफा कोई साधारण घटना नहीं है, यह राजनीतिक बदलाव की आहट है। अब बीजेपी की असलियत धीरे-धीरे जनता के सामने आएगी।” राजनीतिक पंडितों का मानना है कि यदि यह मामला और गहराता है तो यह आने वाले लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ माहौल बना सकता है।
राजस्थान में असर: कांग्रेस को मिल सकता है भावनात्मक समर्थन
धनखड़ का ताल्लुक राजस्थान के झुंझुनूं जिले से है और वे राज्य की राजनीति में एक मजबूत, साफ़-सुथरी छवि वाले नेता माने जाते हैं। ऐसे में कांग्रेस यह आशा कर रही है कि इस घटना के चलते जाट समुदाय और ग्रामीण क्षेत्रों में सहानुभूति की लहर उठ सकती है, जिसका राजनीतिक लाभ उठाया जा सके।














