
सावन के पवित्र महीने में आयोजित होने वाली कांवड़ यात्रा एक बार फिर विवादों के केंद्र में रही, जब उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा यात्रा मार्ग पर दुकानों और ढाबों में क्यूआर कोड लगाने के आदेश को चुनौती दी गई। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए यूपी सरकार के आदेश को बरकरार रखा और याचिकाकर्ताओं की आपत्तियों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि कांवड़ मार्ग पर दुकान चलाने वाले सभी व्यापारी वैधानिक नियमों के तहत लाइसेंस और पंजीकरण प्रमाणपत्र अनिवार्य रूप से प्रदर्शित करें।
क्या था यूपी सरकार का आदेश?
हर साल लाखों शिव भक्तों द्वारा की जाने वाली कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार ने यात्रा मार्ग पर स्थित सभी ढाबों, भोजनालयों और दुकानों को क्यूआर कोड लगाने का निर्देश दिया था। इन क्यूआर कोड को स्कैन करने पर दुकान मालिक की पहचान, धर्म और अन्य विवरण सामने आते हैं। सरकार का कहना था कि यह कदम खाद्य सुरक्षा, दुकान की स्वच्छता और तीर्थयात्रियों की सुविधा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से उठाया गया है। इससे यह भी सुनिश्चित होगा कि सभी दुकानदार वैध रूप से पंजीकृत हैं।
याचिकाकर्ताओं की आपत्ति और तर्क
इस आदेश को चुनौती देने वालों में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद झा, सामाजिक कार्यकर्ता आकार पटेल, टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा और ‘एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स’ नामक एनजीओ शामिल थे। याचिका में कहा गया कि यह आदेश न केवल निजता के अधिकार का उल्लंघन है, बल्कि यह धर्म के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देने वाला है। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णय में स्पष्ट कहा था कि दुकानदारों को अपनी पहचान उजागर करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार, यह क्यूआर कोड प्रणाली उसी नीति को डिजिटल रूप में लागू करने की कोशिश है, जिससे कुछ समुदायों को निशाना बनाया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का रुख और फैसला
मंगलवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इन तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि कांवड़ यात्रा जैसे बड़े सार्वजनिक आयोजन के दौरान राज्य सरकार को कानून-व्यवस्था और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ऐसे कदम उठाने का पूरा अधिकार है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इस समय केवल क्यूआर कोड और वैध लाइसेंस से संबंधित आदेश पर विचार कर रहा है, न कि अन्य संवेदनशील या विवादास्पद मुद्दों पर। कोर्ट ने कहा कि यह एक प्रशासनिक निर्णय है, जिससे तीर्थयात्रियों को सुविधा और सुरक्षा दोनों मिलती है।
पिछले साल का संदर्भ और इस बार की भिन्नता
गौरतलब है कि 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकारों के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें दुकानदारों से अपने और कर्मचारियों के नाम सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करने को कहा गया था। कोर्ट ने तब कहा था कि दुकान पर केवल यह जानकारी होनी चाहिए कि वहां क्या परोसा जा रहा है। याचिकाकर्ताओं का मानना था कि इस वर्ष क्यूआर कोड के जरिए उसी तरह की पहचान उजागर करने की कोशिश हो रही है। लेकिन इस बार कोर्ट ने इसे प्रशासनिक और सुरक्षा हित में उठाया गया तकनीकी कदम मानते हुए वैध करार दिया।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रियाएं
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। जहां सरकार और उसके समर्थकों ने इसे तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए जरूरी और तकनीकी रूप से आधुनिक निर्णय बताया है, वहीं विरोधियों का कहना है कि यह कदम धार्मिक भेदभाव को तकनीकी जामा पहनाने जैसा है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यह स्पष्ट है कि कानूनी रूप से इस व्यवस्था को चुनौती नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट के ताजा निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक यात्राओं के दौरान सरकार सुरक्षा और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए तकनीकी साधनों का प्रयोग कर सकती है, बशर्ते वे वैधानिक दायरे में हों। कांवड़ यात्रा जैसे विशाल आयोजन में व्यवस्थाओं की निगरानी और नियंत्रण के लिए क्यूआर कोड जैसी डिजिटल व्यवस्था अब न्यायिक समर्थन के साथ लागू की जाएगी। यह फैसला न केवल प्रशासनिक कार्यों को मजबूती देता है, बल्कि देश में तकनीक और निजता के संतुलन पर भी एक नई बहस को जन्म देता है।














