'लिंचिंग' शब्द पश्चिमी देशों से हमारे यहां आया है, स्वयंसेवकों का ऐसी घटनाओं से कोई संबंध नहीं : मोहन भागवत

By: Pinki Tue, 08 Oct 2019 1:18:20

'लिंचिंग' शब्द पश्चिमी देशों से हमारे यहां आया है, स्वयंसेवकों का ऐसी घटनाओं से कोई संबंध नहीं : मोहन भागवत

विजयादशमी के मौके पर मंगलवार को नागपुर स्थित संघ मुख्यालय में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने देश में बढ़ती मॉब लिंचिंग की घटनाओं को लेकर एक बड़ा बयान दिया है। ‘भीड़ हत्या' (लिंचिंग) को लेकर उन्होंने कहा कि यह पश्चिमी देशों से हमारे यहां आया है और हम पर थोपा जा रहा है। इसे लेकर भारत को दुनिया में बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। संघ का नाम लिंचिंग की घटनाओं से जोड़ा गया, जबकि संघ के स्वयंसेवकों का ऐसी घटनाओं से कोई संबंध नहीं होता। बता दें कि रेशमीबाग मैदान में ‘शस्त्र पूजा' के बाद स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि 'लिंचिंग' शब्द की उत्पत्ति भारतीय लोकाचार से नहीं हुई, ऐसे शब्द को भारतीयों पर ना थोपा जाए। इस मौके पर मुख्य अतिथि के तौर पर एचसीएल के संस्थापक शिव नाडर, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस मौजूद रहे।

इस दौरान संघ प्रमुख ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री शाह ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 (Article 370) हटाकर यह साबित कर दिया है कि वह कठोर निर्णय लेने के लिए प्रतिबद्ध है।

भागवत ने सवयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत का चुनाव दुनिया में सबके लिए रुचि का विषय है कि कैसे इतने बड़े चुनाव संपन्न कराए जा सकते हैं। 2014 में जो परिवर्तन आया था, वो क्या पिछली सरकार के लिए निगेटिव फॉलआउट था या फिर लोग खुद ही बदलाव चाहते थे। उन्होंने कहा कि इस देश की जनता ने प्रत्यक्ष चुनाव के निर्णय लिए, इसके चलते वह परिपक्व हुई है। जनता ने 2014 की अपेक्षा इस बार सरकार को ज्यादा बहुमत दिया। यह भी साबित हुआ है कि सरकार अनुच्छेद 370 हटाने जैसा कठोर निर्णय लेने के लिए प्रतिबद्ध है। सरकार ने यह फैसला लोकसभा और राज्यसभा में आमचर्चा के माध्यम से किया। सभी दलों ने इसे जो समर्थन दिया, प्रधानमंत्री का यह कार्य अभिनंदनीय है।

कुछ सालों में भारत की सोच की दिशा में परिवर्तन आया है- भागवत

भागवत ने कहा कि पिछले कुछ सालों में भारत की सोच की दिशा में एक परिवर्तन आया है। उसको न चाहने वाले व्यक्ति दुनिया में भी हैं और भारत में भी। भारत को बढ़ता हुआ देखना जिनके स्वार्थों के लिए भय पैदा करता है, ऐसी शक्तियां भी भारत को दृढ़ता व शक्ति से संपन्न होने नहीं देना चाहती। समाज के विभिन्न वर्गों को आपस में सद्भावना, संवाद और सहयोग बढ़ाने की कोशिश करते रहनी चाहिए। समाज के सभी वर्गों का सद्भाव, समरसता व सहयोग और कानून संविधान की मर्यादा में ही अपने मतों की अभिव्यक्ति यह आज की स्थिति में नितांत आवश्यक है।

भागवत ने कहा कि हमारी स्थल सीमा और जल सीमाओं पर सुरक्षा सतर्कता पहले से बेहतर है। केवल स्थल सीमा पर रक्षक व चौकियों की संख्या व जल सीमा पर (द्वीपों वाले टापुओं की) निगरानी अधिक बढ़ानी पड़ेगी। देश के अंदर भी उग्रवादी हिंसा में कमी आई है। उग्रवादियों के आत्मसमर्पण की संख्या भी बढ़ी है।

भागवत ने कहा, 'संघ की दृष्टि में हिंदू शब्द केवल अपने आप को हिंदू कहने वालों के लिए नहीं है। जो भारत के हैं, भारतीय पूर्वजों के वंशज है तथा सभी विविधताओं का स्वीकार सम्मान व स्वागत करते हुए आपस में मिलजुल कर देश का वैभव तथा मानवता में शांति बढ़ाने में जुट जाते हैं वे सभी भारतीय हिंदू हैं। संघ की अपने राष्ट्र के पहचान के बारे में, हमारे देश के स्वभाव की पहचान के बारे में स्पष्ट दृष्टि व घोषणा है, कि भारत हिंदुस्थान, हिंदू राष्ट्र है।'

भागवत ने कहा, 'हिंदू समाज, हिंदुत्व इनके बारे में अनेक प्रमाणहीन, विकृत आरोप लगाकर उनको भी बदनाम करने का प्रयास चलता ही आया है। इन सब कुचक्रों के पीछे हमारे समाज का निरंतर विघटन होता रहे, उसका उपयोग अपने स्वार्थलाभ के लिए हों, यह सोच काम कर रही है। संघ हिंदू समाज का संगठन करता है, इसका अर्थ वह अपने आप को हिंदू न कहने वाले समाज के वर्गों, विशेषकर मुस्लिम और ईसाइयों से शत्रुता रखता है, यह नितांत असत्य है। इसी बात का लगातार प्रयास चलता रहता है। संघ नौ दशकों से समाज में एकात्मता, सद्भावना, सदाचरण और राष्ट्र के प्रति स्पष्ट दृष्टि और भक्ति उत्पन्न करने का कार्य कर रहा है।'

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