सुप्रीम कोर्ट से वकीलों को मिली बड़ी राहत, वकील के खिलाफ नहीं किया जा सकता उपभोक्ता अदालत में केस
By: Rajesh Bhagtani Tue, 14 May 2024 4:07:01
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला देते हुए वकीलों को लेकर 2007 में आए राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग यानी NCDRC के फैसले को पलट दिया है। NCDRC ने कहा था कि वकील की अपने मुवक्किल को दी गई सेवा पैसों के बदले में होती है। इस कारण वह एक कॉन्ट्रैक्ट की तरह है। सेवा में कमी के लिए मुवक्किल अपने वकील के खिलाफ उपभोक्ता वाद दाखिल कर सकता है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे नहीं माना है।
जस्टिस बेला एम त्रवेदी और जस्टिस पंकज मित्तल की बेंच ने कहा कि फीस देकर कोई भी काम करवाने को कंज्यूमर प्रोटेक्शन ऐक्ट की 'सेवा' के दायरे में नहीं रखा जा सकता। अदालत ने कहा कि वकील जो भी सेवा देते हैं वह अपने आप में अलग तरह की है। ऐसे में इस कानून से उन्हें बाहर रखा जाना चाहिए।
बेंच ने कहा कि लीगल प्रोफेशन की तुलना बाकी किसी काम के साथ नहीं की जा सकती। किसी वकील और क्लाइंट के बीच सामंजस्य एक तरह की निजी अनुबंधित सेवा होती है। ऐसे में अगर कोई कमी होती है तो वकील को उपभोक्ता अदालत में नहीं खींचा जा सकता है। हालांकि अगर वकील गड़बड़ करते हैं तो उनके खिलाफ सामान्य अदालतों में मुकदमा चलाया जा सकता है।
बेंच ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि एक वकील अपने मुवक्किल के निर्देश पर काम करता है। वह अपनी तरफ से कोर्ट में कोई बयान नहीं देता या मुकदमे के निपटारे को लेकर कोई प्रस्ताव नहीं देता।
सुप्रीम कोर्ट ने 2007 के कंज्यूमर कमीशन का फैसला रद्द कर दिया। इस फैसले में कहा गया था कि उपभोक्ता के अधिकारों का ध्यान रखते हुए अगर वकील ठीक से सेवा नहीं देते तो उन्हें उपभोक्ता अदालत में लाया जा सकता है। इस कारण उसकी सेवा को उपभोक्ता संरक्षण कानून, 1986 की धारा 2(1)(o) में दी गई सर्विस की परिभाषा के तहत नहीं माना जा सकता। हालांकि अप्रैल 2009 में ही सुप्रीम कोर्ट ने उपभोक्ता आयोग के इस फैसले पर रोक लगा दी थी।
इसके साथ ही 2 जजों की बेंच ने 1995 में आए सुप्रीम कोर्ट के 'इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम वी पी शांता' फैसले पर भी दोबारा विचार की जरूरत बताई है। उन्होंने चीफ जस्टिस से सिफारिश की है कि तीन जजों की बेंच के उस फैसले को विचार के लिए बड़ी बेंच को सौंपा जाए। साल 1995 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल व्यवसाय को उपभोक्ता संरक्षण के तहत सर्विस करार दिया था।
ज्ञातव्य है कि इस समय बार काउंसिल ऑफ इंडिया के डेटा के मुताबिक देश में करीब 13 लाख वकील हैं। वकीलों की कई संस्थाओं ने कमीशन के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी थी। वकीलों का कहना है कि उन्हें अपना काम करने के लिए सुरक्षा और स्वतंत्रता की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ऐडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड्स असोसिएशन (SCAORA) का कहना था कि कानूनी सेवा किसी वकील के नियंत्रण में नहीं होती है। वकीलों को एक निर्धारित फ्रेमवर्क में काम करना होता है। फैसला भी वकीलों के अधीन नहीं होता है। ऐसे में किसी केस के रिजल्ट के लिए वकीलों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।