कौरव-पांडवों के वंशज रहते हैं उत्तराखंड के इस गांव में, मनाया जाता है कर्ण उत्सव

By: Priyanka Maheshwari Wed, 20 July 2022 10:31:18

कौरव-पांडवों के वंशज रहते हैं उत्तराखंड के इस गांव में, मनाया जाता है कर्ण उत्सव

उत्तराखंड में न केवल हिमालय की खूबसूरती देखने को मिलती है, बल्कि यहां कई सांस्कृतिक सभ्यता भी देखी जा सकती है। जिसके चलते हर उम्र के लोगों के लिए एक पसंदीदा पर्यटन स्थल उभरा है। यहां आप परिवार और दोस्तों के साथ घूमने के अलावा पार्टनर के संग भी कुछ रोमांटिक पल बिता सकते हैं। हर साल हजारों की संख्या में पर्यटक यहां घूमने आते हैं। इस खूबसूरती के बीच उत्तराखंड में एक ऐसी जगह है कलाप गांव (kalap village)। यह गांव रूपिन नदी के किनारे 7800 फीट की ऊंचाई पर बसा हुआ है। उत्तराखंड के ऊपरी गढ़वाल क्षेत्र में यह गांव कई इलाकों से कटा हुआ है और यहां की जिदंगी भी काफी मुश्किल भरी है। यहां के निवासियों की आमदनी का मुख्य सहारा खेती ही है। इसके अलावा वे भेड़-बकरी पालते हैं। ज्यादातर लोगों को इस जगह के बारे में मालूम नहीं है। यहां की आबादी भी बेहद कम है।

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रहते है कौरव और पांडवों के वंशज

कलाप, उत्तराखंड की टन्स घाटी में स्थित है और इस पूरी घाटी को महाभारत की जन्मभूमि माना जाता है। इस जगह के बारे में कहा जाता है कि यहां से रामायण और महाभारत का इतिहास जुड़ा हुआ है। इसी वजह से यहां के लोग खुद को कौरव और पांडवों को वंशज बताते हैं। कलाप में मुख्य मंदिर पांडव भाइयों में से एक कर्ण को समर्पित है। इस गांव की अद्भुत खूबसूरती और रामायण, महाभारत से खास कनेक्शन के चलते इसे डिवेलप किया जा रहा है। जनवरी में यहां पांडव नृत्य किया जाता है, जिसमें महाभारत की विभिन्न कथाओं को प्रदर्शित किया जाता है। यहां कर्ण का मंदिर भी है और कर्ण महाराज उत्सव भी मनाया जाता है। यह उत्सव 10 साल के अंतराल पर मनाया जाता है। चूंकि यह जगह काफी दुर्गम है, इसलिए जो कुछ भी खाया-पिया या ओढ़ा-पहना जाता है, वह सब कलाप में बनता है।

गांव का मुख्य आकर्षण लंबे और घने देवदार के पेड़ हैं। यहां पहुंचकर बंदरपूंछ पीक पर कुछ खूबसूरत नजारे देखने को मिलते हैं। गांव में प्राथमिक व्यवसाय कृषि है। इसके अलावा यहां सामुदायिक पर्यटन भी होता है। इसी नाम का एक एनजीओ कलाप में स्थानीय समुदाय को पर्यटन कारोबार में मदद करता है, जिसमें होम स्टे, ट्रेक और अन्य गतिविधियां शामिल हैं। यहां खाने के लिए लिंगुड़ा से लेकप पपरा, बिच्छू घास और जंगली मशरूम है। वहीं खसखस, गुड़ और गेंहू के आटे के साथ एक खास डिश भी बनाई जाती है। कलाप गांव में सर्दियों के दिनों में बर्फबारी का दृश्य देखने लायक होता है। बर्फबारी इस जगह की खूबसूरती में चार चांद लगाने का काम करती है।

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यहां कैसे पहुंचें

सड़क मार्ग- कलाप गांव, देहरादून से 210 किलोमीटर और दिल्ली से 450 किलोमीटर की दूरी पर है। इसके अलावा गर्मी और सर्दी में इस गांव तक पहुंचने में अलग-अलग रूट हैं।

रेल मार्ग - देहरादून यहां से सबसे नजदीक रेलवे स्टेशन है। यहां से कलाप गांव तक पहुंचने में 6-8 घंटे का समय लगता है।

हवाई मार्ग - देहरादून स्थित जौली ग्रांट एयरपोर्ट सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। यहां से किसी भी साधन से कलाप गांव तक पहुंच सकते हैं।

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