रजोनिवृत्ति को लेकर जागरुक नहीं भारतीय महिलाएँ, ये धातुएं कम कर रहीं अंडों की संख्या, पोस्ट मीनोपॉज ब्लीडिंग हो सकती हैं खतरनाक

By: Varsha Sat, 27 Jan 2024 3:33:27

रजोनिवृत्ति को लेकर जागरुक नहीं भारतीय महिलाएँ, ये धातुएं कम कर रहीं अंडों की संख्या, पोस्ट मीनोपॉज ब्लीडिंग हो सकती हैं खतरनाक

पूर्ण विकसित देश की दौड़ में लगे भारत में आज भी स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरुकता बहुत कम है। इस मामले में महिलाएँ बहुत ज्यादा पीछे हैं। महिलाएं अक्‍सर अपनी बीमारियों को लेकर जागरुकता नहीं दिखातीं। वे या तो अपनी बीमारियों को हल्‍के में लेती हैं या फिर उनका समाधान महिलाओं की आपसी बातचीत में ढूंढती हैं। इसका असर यह होता है कि उनकी छोटी सी बीमारी जिसका इलाज आसान हो सकता था, एक गंभीर बीमारी में बदल जाती है। आजकल महिलाओं की ऐसी ही एक खास परेशानी के मामले काफी ज्‍यादा सामने आ रहे हैं। महिलाओं में पीरियड बंद होने या रजोनिवृत्ति (Menopause) के बाद अचानक फिर से ब्‍लीडिंग होने, कई महीने बाद खून आने या खून का धब्‍बा आने की समस्‍याएं सामने आ रही हैं, जिसे महिलाएं सामान्‍य बात मानकर टाल देती हैं, जबकि यह एक बड़ी परेशानी का संकेत हो सकता है।

रजोनिवृत्ति महिलाओं के जीवन का एक सामान्य हिस्सा है, जिस दौरान उनके मासिक चक्र बंद हो जाते हैं। रजोनिवृत्ति से पहले के कुछ सालों को मेनोपॉजल ट्रांजिशन कहा जाता है, इस दौरान महिलाओं को अपने मासिक चक्र में बदलाव, गर्म चमक या रात में पसीना आने जैसे लक्षण अनुभव हो सकते हैं। आमतौर पर, यह ट्रांजिशन 45 से 55 साल की उम्र के बीच शुरू होता है और लगभग सात साल तक चलता है।

menopause awareness in indian women,impact of metals on egg count,reducing eggs count in women,post-menopausal bleeding risks,menopause education for indian women,women health and menopause awareness,risks of low egg count in women,post-menopausal bleeding dangers,menopause information for indian females,health risks related to menopause,egg count and women reproductive health,menopause symptoms and risks,indian women reproductive awareness,importance of menopause education,addressing post-menopausal bleeding

महिलाओं के रजोनिवृत्ति के मामले में महिला स्वास्थ्य विशेषज्ञों (डॉक्टरों) का कहना है कि आज पोस्ट मीनोपॉज ब्लीडिंग के मामले महिलाओं में काफी ज्‍यादा सामने आ रहे हैं। ध्‍यान देने वाली बात है कि यह सामान्‍य चीज नहीं है बल्कि कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी का संकेत होता है। वर्तमान में 50-65 साल की ऐसी बड़ी संख्‍या में महिला मरीज सामने आ रही हैं जिन्‍हें मेनोपॉज के बाद ये समस्‍या हुई है लेकिन उन्‍होंने समय रहते न तो इसे गंभीरता से लिया और न ही चिकित्‍सकों से संपर्क किया, जिसके चलते उनकी बीमारी बढ़ती गई और कैंसर या अन्‍य क्रिटिकल हालात पैदा हो जाते हैं।

लंबे समय तक पीरियड होते रहने के कारण ये महिलाओं की आदत में आ जाता है। इस दौरान प्रेग्‍नेंसी और फिर बच्‍चे होने के बाद भी कई बार देखा जाता है कि महिलाओं में पीरियड कुछ समय के लिए टल जाता है और फिर शुरू हो जाता है। ऐसे में इन अनियमितताओं को देखते-देखते जब मेनोपॉज या रजोनिवृत्ति का समय आता है तो उस दौरान भी महिलाओं की ये मानसिकता काम करती है और वे इससे संबंधित किसी भी बदलाव को न तो किसी को बताती हैं और न ही इसे लेकर बहुत जागरुकता दिखाती हैं। ऐसे समय में कई चीजें ऐसी हो जाती हैं जो उनकी सेहत को नुकसान पहुंचाती हैं।

menopause awareness in indian women,impact of metals on egg count,reducing eggs count in women,post-menopausal bleeding risks,menopause education for indian women,women health and menopause awareness,risks of low egg count in women,post-menopausal bleeding dangers,menopause information for indian females,health risks related to menopause,egg count and women reproductive health,menopause symptoms and risks,indian women reproductive awareness,importance of menopause education,addressing post-menopausal bleeding

सामने आया नया शोध

एक नए शोध में पाया गया है कि रजोनिवृत्ति के करीब महिलाओं के शरीर में जहरीली धातुओं के पाए जाने से उनके अंडाशय में अंडों की संख्या कम हो सकती है। अंडाशय में अंडों की कमी को डिमिनिश्ड ओवेरियन रिजर्व कहा जाता है। शोधकर्ताओं के अनुसार, इस स्थिति से महिलाओं को कई स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं, जैसे कि गर्म चमक, कमजोर हड्डियां और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाना।

पिछले अध्ययनों में बताया गया है कि महिलाओं के पेशाब में पाए जाने वाले भारी धातु उनके प्रजनन स्वास्थ्य और अंडाशय में अंडों की संख्या से जुड़े होते हैं। आर्सेनिक, कैडमियम, पारा और सीसा जैसे भारी धातु आम तौर पर हमारे पीने के पानी, हवा के प्रदूषण और दूषित भोजन में पाए जाते हैं। इन्हें एंडोक्राइन-डिसरप्टिंग केमिकल्स भी कहा जाता है।

menopause awareness in indian women,impact of metals on egg count,reducing eggs count in women,post-menopausal bleeding risks,menopause education for indian women,women health and menopause awareness,risks of low egg count in women,post-menopausal bleeding dangers,menopause information for indian females,health risks related to menopause,egg count and women reproductive health,menopause symptoms and risks,indian women reproductive awareness,importance of menopause education,addressing post-menopausal bleeding

सिर्फ एक धब्‍बा भी हो सकता है खतरनाक

डॉक्टरों का कहना है कि 45 साल के बाद या इसके आसपास महिलाओं का महीना आना बंद होता है। फिर इसके कई महीनों बाद अचानक उन्‍हें फिर से ब्‍लीडिंग शुरू हो जाती है या वैजाइना से खून आता है तो ऐसी स्थिति में महिलाओं को लगता है कि ये सामान्‍य बात है, जबकि ऐसा नहीं है। मेनोपॉज होने के 6 महीने के बाद अगर खून का एक धब्‍बा भी आता है तो वह किसी गंभीर बीमारी का लक्षण होता है न कि पीरियड से संबंधित घटना। महिलाओं में अभी भी इसे लेकर बहुत कम जागरुकता है। इन मसलों को लेकर झिझक बहुत ज्‍यादा है। यहां त‍क कि कई बार देखा गया है कि महिलाएं ये बातें अपने जीवनसाथी से भी शेयर नहीं करतीं। जिसका परिणाम यह होता है कि महिलाएं बच्चेदानी के अंदर होने वाले एंडोमीट्रिएल कैंसर की एडवांस स्‍टेज में पहुंच जाती हैं।

अमेरिका के मिशिगन विश्वविद्यालय, ऐन आर्बर में एपिडेमियोलॉजी और पर्यावरणीय स्वास्थ्य विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर सुंग क्यून पार्क ने कहा है, "भारी धातुओं के संपर्क में आने से मध्य-आयु की महिलाओं में अंडाशय के जल्दी बूढ़ा होने से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं, जैसे कि गर्म चमक, हड्डियों का कमजोर होना और ऑस्टियोपोरोसिस, हृदय रोग का खतरा बढ़ना और दिमागी गिरावट का खतरा बढ़ सकता है।"

उन्होंने आगे कहा, "हमारे शोध में पाया गया है कि भारी धातुओं के संपर्क में आने से मध्य-आयु की महिलाओं में एंटी-मुलरियन हार्मोन (AMH) का स्तर कम हो जाता है। AMH हमें यह बताता है कि महिला के अंडाशय में कितने अंडे बचे हैं। यह अंडाशय के लिए एक तरह की जैविक घड़ी है, जो मध्य आयु और उसके बाद के जीवन में स्वास्थ्य जोखिमों का संकेत दे सकती है।"

शोधकर्ताओं ने 549 मध्य-आयु की महिलाओं पर अध्ययन किया, जो रजोनिवृत्ति की ओर बढ़ रही थीं और जिनके पेशाब के नमूनों में भारी धातुओं - आर्सेनिक, कैडमियम, पारा या सीसा - का पता चला था। उन्होंने महिलाओं के अंतिम मासिक धर्म से 10 साल पहले तक के AMH रक्त परीक्षणों के आंकड़ों का विश्लेषण किया।

उन्होंने पाया कि जिन महिलाओं के पेशाब में धातुओं का स्तर अधिक था, उनके AMH का स्तर भी कम पाया गया, जो अंडाशय में अंडों की संख्या कम होने का संकेत है।

पार्क ने कहा, आर्सेनिक और कैडमियम सहित धातुओं में एंडोक्राइन को बाधित करने वाले गुण होते हैं और ये अंडाशय के लिए हानिकारक हो सकते हैं। हमें कम डिम्बग्रंथि रिजर्व और बांझपन में रसायनों की भूमिका को पूरी तरह से समझने के लिए युवा आबादी का भी अध्ययन करने की आवश्यकता है।

menopause awareness in indian women,impact of metals on egg count,reducing eggs count in women,post-menopausal bleeding risks,menopause education for indian women,women health and menopause awareness,risks of low egg count in women,post-menopausal bleeding dangers,menopause information for indian females,health risks related to menopause,egg count and women reproductive health,menopause symptoms and risks,indian women reproductive awareness,importance of menopause education,addressing post-menopausal bleeding

भारत में 45 साल है मेनोपॉज की औसत उम्र

विश्‍व के अन्‍य देशों में महिलाओं में मेनोपोज़ की औसत उम्र 49-51 मानी गई है जबकि भारतीय महिलाओं में मेनोपोज़ 45-49 की उम्र को औसत माना गया है। भारत में पहले ही औसत उम्र बाकी सबसे कम है। वहीं कई बार देखा गया है कि 40 से पहले या इसके आसपास भी यहां की महिलाओं को मेनोपॉज हो जाता है। जैसे सभी महिलाओं की गर्भावस्‍था एक जैसी नहीं होती ऐसे ही रजोनिवृत्ति का समय भी एक जैसा नहीं होता। इसी तरह पीरियड का टाइम टेबल भी अलग-अलग होता है।

ये हो सकती हैं बीमारियां

—बच्चेदानी के अंदर एंडोमीट्रिएल कैंसर

—गर्भाशय या वेजाइना में कैंसर

—सर्वाइकल कैंसर

—जननांगों में सुखाव आना

—गर्भ लाइनिंग में सूजन

महिलाएं इन चीजों का रखें ध्‍यान

महिलाओं के लिए जरूरी है कि वे मेनोपॉज के बाद बीपी, थायरॉइड, शुगर, वजन, पैपस्मीयर, मैमोग्राफी आदि जांच कराती रहें। इसके साथ ही लगातार व्‍यायाम करें और खान-पान का विशेष ध्‍यान रखें। वहीं जो सबसे जरूरी है वह यह है कि अगर मासिक धर्म बंद होने के 6 महीने बाद भी कोई ब्‍लीडिंग हो, फिर वह 50 से 65 के बीच या चाहे किसी भी उम्र में हो, उसकी तत्‍काल जांच कराएं और लापरवाही न बरतें। इससे कई गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है।

Home | About | Contact | Disclaimer| Privacy Policy

| | |

Copyright © 2024 lifeberrys.com