
आस्था और परंपरा का महापर्व छठ पूजा इस साल 25 अक्टूबर से शुरू हो रहा है। चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि परिवार के भीतर रिश्तों और परंपराओं को जोड़ने का माध्यम भी है। खासकर जब किसी घर में नई बहू आती है, तो उसका पहला छठ व्रत पूरे परिवार के लिए भावनात्मक रूप से बेहद महत्वपूर्ण बन जाता है।
पहली बार छठ—परिवार के लिए महत्व
परंपरा मानी जाती है कि एक बार घर में छठ पूजा की शुरुआत हो जाए तो यह हमेशा चलती रहती है। यदि किसी साल घर में कोई दुखद घटना घटती है तो व्रत एक वर्ष के लिए स्थगित हो सकता है, लेकिन अगले वर्ष इसे फिर से किया जाता है। बड़ी महिलाओं की असमर्थता के कारण घर की बहुएं इस जिम्मेदारी को आगे बढ़ाती हैं। यही वजह है कि नई बहू का पहला छठ परिवार के लिए भावनात्मक और सांस्कृतिक दृष्टि से विशेष होता है।
बहू के पहले छठ में परिवार की भूमिका
नई बहू के पहले छठ व्रत के लिए सबसे पहला सवाल होता है—व्रत कहां और कैसे किया जाए। मान्यताओं के अनुसार, यदि सास जीवित है तो बहू का पहला छठ ससुराल में सास की देखरेख में संपन्न होता है। इस प्रक्रिया में सास नई बहू को व्रत की परंपरा सौंपती हैं। वहीं जिन बहुओं की सास नहीं होती, वे अपना पहला छठ मायके में करती हैं। इस दौरान दोनों परिवारों की जिम्मेदारी मानी जाती है कि वे बहू के पहले छठ में पूरी मदद और सहयोग प्रदान करें।
पहले छठ की तैयारियों में मायके की भूमिका पूजा के आवश्यक सामान—सूप, बांस की टोकरी, लाल कपड़े से सजाए गए प्रसाद, ठेकुआ, फल, गुड़ आदि भेजने की होती है। वहीं ससुराल की तरफ से घर की सफाई, घाट की तैयारी और व्रती की हर तरह की सहायता सुनिश्चित की जाती है।
परिवार को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
- पहली बार या पहले से छठ व्रत कर चुकी बहू—दोनों के लिए परिवार का साथ देना अनिवार्य है।
- व्रती के लिए पूजा स्थल की सफाई और पवित्रता बनाए रखना परिवार की जिम्मेदारी होती है।
-चार दिन के व्रत के दौरान मांसाहार, प्याज और लहसुन का सेवन न करने की व्यवस्था पर ध्यान रखें।
- नई बहू के लिए प्रसाद बनाने में मदद करना और उपवास के दौरान आराम की सुविधा देना जरूरी है।
- मान्यता है कि पहले छठ में सास का आशीर्वाद, पति का सहयोग और पूरे परिवार की सहभागिता ही व्रत को सफल बनाती है।














