नवरात्रि स्पेशल : मां कूष्मांडा को समर्पित हैं चौथा दिन, जानें माता का स्वरुप और पूजन विधि
By: Ankur Mundra Fri, 16 Apr 2021 08:51:54
नवरात्रि का पावन पर्व जारी हैं जिसका आज चौथा दिन हैं जो कि मां कूष्मांडा को समर्पित हैं। मां कूष्मांडा को तेज की देवी कहा जाता हैं जिनके तेज से सभी ओर प्रकाश फैलता हैं। अपनी मंद मुस्कुराहट और अपने उदर से ब्रह्मांड को उदयमान करती हैं। देवी का सच्चे मन से किया गया स्मरण माता को शीघ्र प्रसन्न करता हैं और जीवन के सभी दुखों का निवारण करता हैं। मां कूष्मांडा की उपासना सभी दुखों को दूर करने का काम करती हैं। आज इस कड़ी में हम आपको मां कूष्मांडा के स्वरुप और पूजन विधि की जानकारी देने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।
दूर हो जाते हैं सारे रोग-शोक
श्रीकूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। इनकी आराधना से मनुष्य त्रिविध ताप से मुक्त होता है। मां कूष्मांडा सदैव अपने भक्तों पर कृपा दृष्टि रखती है। इनकी पूजा आराधना से हृदय को शांति एवं लक्ष्मी की प्राप्ति होती हैं। इस दिन भक्त का मन ‘अनाहत’ चक्र में स्थित होता है, अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और शांत मन से कूष्मांडा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा करनी चाहिए। संस्कृत भाषा में कूष्मांडा कूम्हडे को कहा जाता है, कूम्हडे की बलि इन्हें प्रिय है, इस कारण भी इन्हें कूष्मांडा के नाम से जाना जाता है।
ऐसे करें देवी कूष्मांडा की पूजा-उपासना
जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा से देवी अराधना में समर्पित हैं उन्हें दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्मांडा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मन को ‘अनाहत’ में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कूष्मांडा सफलता प्रदान करती हैं जिससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और मां का अनुग्रह प्राप्त करता है। अतः इस दिन पवित्र मन से मां के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजन करना चाहिए। कूष्मांडा देवी की पूजा से भक्त के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं। मां की भक्ति से आयु, यश, बल और स्वास्थ्य की वृद्धि होती है। इनकी आठ भुजाएं हैं। इसीलिए इन्हें अष्टभुजा कहा जाता है। इनके सात हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण, कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है। कूष्मांडा देवी अल्पसेवा और अल्पभक्ति से ही प्रसन्न हो जाती हैं। यदि साधक सच्चे मन से इनका शरणागत बन जाये तो उसे अत्यन्त सुगमता से परम पद की प्राप्ति हो जाती है। देवी कुष्मांडा का वाहन सिंह है।
यह है पूजा की संपूर्ण पूजा विधि
दुर्गा पूजा के चौथे दिन देवी कूष्मांडा की पूजा का विधान उसी प्रकार है जिस प्रकार देवी ब्रह्मचारिणी और चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। इस दिन भी आप सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता की पूजा करें। फिर देवी की प्रतिमा के दोनों तरफ विराजमान देवी-देवताओं की पूजा करें। इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्मांडा की पूजा करें। पूजा की विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र ‘सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।’ का ध्यान करें। इसके बाद शप्तशती मंत्र, उपासना मंत्र, कवच और अंत में आरती करें। आरती करने के बाद देवी मां से क्षमा प्रार्थना करना न भूलें।
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