कारगिल विजय दिवस : युद्ध में शहीद हुए सबसे कम उम्र के जांबाज योद्धा कैप्टन विजयंत थापर

26 जुलाई 1999 का ऐतिहासिक दिन जब कारगिल युद्ध में भारत को विजय हासिल हुई और तभी से यह दिन ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में हर साल मनाया जाता हैं। आज का दिन जहां कारगिल युद्ध में मिली जीत के जश्न के लिए जाना जाता हैं, वहीँ उस युद्ध में शहीद हुए जवानों की शहादत और वीरता के लिए भी माना जाता हैं। आज इस कड़ी में हम आपको एक ऐसे ही शहीद के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्हें ‘बॉर्न सोल्जर’ कहा जाता है। क्योंकि विजयंत थापर की फैमिली तीन पिढ़ियों से भारतीय सेना में शामिल होकर देश की सेवा कर रही थी। हम बात कर रहे हैं युद्ध में शहीद हुए सबसे कम उम्र के जांबाज योद्धा कैप्टन विजयंत थापर की।

विजयंत थापर के परदादा डॉ. कैप्टन कर्ता राम थापर, दादा जेएस थापर और पिता कर्नल वीएन थापर सभी सेना में थे। इस वजह से विजय थापर को बड़े होकर क्या बनना है, इस बता को लेकर उनके मन में कोई सवाल नहीं था।

जिस दिन पिता कर्नल वीएन थापर सेना से रिटायर हुए थे लगभग उसी दिन विजयंत थापर को राजपूतना राइफल्स 2 में कमीशन किया गया था। कारगिल युद्ध शुरू के दौरान विजयंत थापर की यूनिट की तैनाती जम्मू कश्मीर के कुपवाड़ा में थी। तभी ख़बर आई कि पाकिस्तानी घुसपैठियों ने द्रास और तोलोलिंग की चोटी पर कब्जा कर लिया है। जिसके बाद इन पहाड़ियों से घुसपैठियों को भगाने की ज़िम्मेदारी यूनिट 2 राजपूताना राइफल्स को सौंपी गई।

12 जून 1999 को विजयंत थापर की यूनिट ने तोलोलिंग की चोटी पर तिरंगा फहरा दिया। यह यूनिट 2 राजपूताना राइफल्स की पहली जीत थी। इसके बाद कैप्टन विजयंत थापर के सामने दूसरी चुनौती तब आई जब उनकोे रॉक कॉम्प्लेक्स में स्थित नॉल और ‘थ्री पिम्पल्स चोटी को खाली करवाने का जिम्मा दिया गया। ये चोटियां सामरिक दृष्टी से भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी। क्योंकि ये दोनों चोटियाँ तोलोलिंग और टाइगर हिल के बीच में थी। जिन पर पाकिस्तानी सैनिको ने कब्जा किया हुआ था।

तोलोलिंग और टाइगर हिल के बीच स्थित ये बेहद ही खतरनाक और सबसे मुश्किल चोटियां थी। चांदनी रात में विजयंत थापर की यूनिट ने नॉल चोटी पर फतेह करने के लिए निकल पड़ी। जिस रास्ते पहाड़ी पर चढ़ना था वो पूरी तरह से दुश्मन की फायरिंग रेंज में था। पाकिस्तानी सैनिक लगातार मशीनगनों से गोलीयां बरसा रहे थे। इस वजह से इन पहाड़ियों पर पहुंचते-पहुंचते कैप्टन विजयंत के यूनिट के कई साथी शहीद हो चुके थे। कैप्टन विजयंत अपने कई साथी खो चुके थे। उनकी यूनिट बिखर चुकी थी। इतना सबकुछ होने बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। विजयंत अपने बचे साथियों को लेकर एक सुरक्षित जगह पर पहुंचे। साथियों का हौसला बंधाते हुए कैप्टन विजयंत ने फिर से सबको इकट्ठा किया और पहाड़ी पर चढ़ना शुरू किया। ऊपर पहुंचकर यूनिट ने नॉल चोटी का एक छोटा हिस्सा भी अपने कब्ज़े में ले लिया।

उस जगह से सिर्फ 15 मीटर की दूरी पर नॉल चोटी पर बैठे पाकिस्तान सैनिक अंधा-धुध गोलीयां बरसा रहे थे। इस गोलीबारी में कंपनी के कमांडर मेजर पी. आचार्य शहीद हो गए थे। ये ख़बर कैप्टन विजयंत का मिली तो उनका खून खौल उठा। गोलियों की परवाह किए बिना कैप्टन विजयंत अपने साथी नायक तिलक सिंह के साथ उस नॉल पहाड़ी पर चढ़ने लगे। इस चढ़ाई के दौरान लगभग डेढ़ घंटे तक मशीनगनों से बरस रही गोलियों का सामना करते हुये कैप्टन विजयंत थापर आगे बढते रहे। साथ ही दुश्मनों को ढे़र करते हुये विजयंत थापर नॉल चोटी पर पहुंच गए और 28-29 जून की रात में कैप्टन विजयंत थापर ने नॉल पहाड़ी पर तिरंगा लहरा दिया।

नॉल चोटी जीतने के बाद भी कैप्टन विजयंत थापर नहीं रुके और आगे बढ़ते गए तभी दुर्भाग्यवश दुश्मन की मशीनगन से निकली एक गोली विजयंत के सिर पर लगी और वो अपने साथी नायक तिलक सिंह की गोद में गिर गये। कैप्टन विजयंत थापर शहीद हो चुके थे।

कारगिल की जंग में शामिल होने के वक्त विजयंत थापर सिर्फ 22 साल के थे। जब वे शहीद हुए तब उनको सेना में शामिल हुये सिर्फ 6 महीने ही हुए थे। भारत माँ के इस लाल को मरनोपरांत वीर चक्र से अलंकृत किया गया।