
भारत ने एक बार फिर अंतरिक्ष की दुनिया में ऐतिहासिक छलांग लगाई है। 40 वर्षों बाद किसी भारतीय ने अंतरिक्ष में कदम रखा है। भारतीय वायुसेना के पायलट शुभांशु शुक्ला ने अमेरिका की स्पेस कंपनी स्पेसएक्स और Axiom Space के मिशन Axiom-4 के तहत सफलतापूर्वक इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) में प्रवेश कर लिया है। वे भारत के पहले व्यक्ति बने हैं जिन्होंने आईएसएस में प्रवेश किया और राकेश शर्मा के बाद अंतरिक्ष में पहुंचने वाले भारत के दूसरे नागरिक बन गए हैं।
ISS पर पहुंचा भारत का यान, रचा गया इतिहासगुरुवार को शाम 28 घंटे की अंतरिक्ष यात्रा पूरी करने के बाद शुभांशु शुक्ला और उनकी अंतरराष्ट्रीय टीम ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में कदम रखा। वहां पहले से मौजूद 7 अंतरिक्ष यात्रियों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया। इनमें अमेरिका की नासा के तीन, जापान के एक और रूस के तीन अंतरिक्ष यात्री शामिल हैं।
ISS में प्रवेश करने वाले तीनों देशों—भारत, पोलैंड और हंगरी—के लिए यह एक ऐतिहासिक पल रहा, क्योंकि लगभग चार दशक बाद इन देशों ने मानव को फिर से अंतरिक्ष की दहलीज पर पहुंचाया है।
Axiom-4 मिशन: निजी साझेदारी से वैश्विक उपलब्धिAxiom-4 मिशन अमेरिका की निजी अंतरिक्ष कंपनी Axiom Space द्वारा संचालित किया गया है, जिसमें स्पेसएक्स ने तकनीकी सहयोग प्रदान किया। इस मिशन की कमान नासा की पूर्व अंतरिक्ष यात्री और अब Axiom में मानव उड़ान निदेशक बनीं पेगी व्हिटसन ने संभाली। उनके साथ भारत के शुभांशु शुक्ला, पोलैंड के स्लावोश उज़नांस्की-विशनेव्स्की और हंगरी के तिबोर कापू शामिल हैं। मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्री 14 दिन तक आईएसएस में वैज्ञानिक प्रयोगों में हिस्सा लेंगे।
भारत के लिए गर्व का क्षण39 वर्षीय शुभांशु शुक्ला ने अंतरिक्ष से एक भावुक संदेश भेजा। उन्होंने कहा कि माइक्रोग्रैविटी में खुद को ढालना शिशु की तरह जीना सीखने जैसा है। उन्होंने अंतरिक्ष में तैरने के अनुभव को अद्भुत बताया। उनकी इस उपलब्धि से भारत एक बार फिर वैश्विक अंतरिक्ष मंच पर प्रमुख भूमिका में आ गया है।
1984 में राकेश शर्मा ने भारत की ओर से सोवियत संघ के सल्युत-7 मिशन में हिस्सा लिया था। उन्होंने आठ दिन अंतरिक्ष में बिताए थे और उनकी ऐतिहासिक पंक्ति—“सारे जहां से अच्छा”—आज भी याद की जाती है।
अब शुभांशु शुक्ला की यह उपलब्धि भारतीय अंतरिक्ष अभियान के एक नए युग की शुरुआत करती है। ISRO की भविष्य की योजनाओं और गगनयान मिशन के संदर्भ में यह सफलता अत्यंत प्रेरणादायक मानी जा रही है।
भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि अंतरिक्ष की ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए केवल विज्ञान नहीं, बल्कि साहस, समर्पण और राष्ट्रीय गौरव की भावना भी चाहिए होती है। शुभांशु शुक्ला ने न सिर्फ भारत का झंडा एक बार फिर अंतरिक्ष में लहराया, बल्कि अगली पीढ़ी के युवाओं को यह संदेश दिया कि वे भी सितारों को छू सकते हैं।