कोरोना वायरस की वैक्सीन को लेकर इस अमरिकी वैज्ञानिक ने बढ़ाई लोगों की चिंता, कही ये बात

दुनिया में अब तक 52 लाख 9 हजार 860 लोग संक्रमित हैं। 20 लाख 92 हजार 757 लोग ठीक हुए हैं। मौतों का आंकड़ा 3 लाख 34 हजार 878 हो गया। अमेरिका में गुरुवार को 25 हजार 294 नए मामले सामने आए और 1263 लोगों की मौत हो गई। देश में संक्रमितों की संख्या 16 लाख 20 हजार से ज्यादा हो गई है। यहां अब तक 96 हजार 355 मौतें हुई हैं। वहीं, 3 लाख 82 हजार 169 लोग ठीक हुए हैं। कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में कहर बरपा रखा है। कोरोना वायरस के वैक्सीन की खोज में करीब 100 से ज्यादा देश जुटे हुए हैं। इसमें से कई देशों में टेस्टिंग शुरुआती चरणों में है तो कई देशों में परीक्षण का अंतिम दौर चल रहा है। अप्रैल महीने में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी थी कि कोरोना वायरस के वैक्सीन को बाजार में आने में कम से कम 12 महीने लगेंगे।

वहीं, इस बीच ह्यूमन इम्यूनोडेफ़िशियेंसी वायरस (एचआईवी) पर शोध करने वाले अमरीका के एक नामी वैज्ञानिक विलियम हेसलटाइन ने कोरोना वैक्सीन को लेकर जो बात कही है उससे सभी लोगों की निराशा होने वाली है। उन्होंने कहा कि 'उन्हें नहीं लगता कि कोरोना वायरस की वैक्सीन जल्द आने वाली है।' विलियम हेसलटाइन से जब पूछा गया कि 'कोविड-19 का टीका कितनी जल्द विकसित होने की संभावना है?'

इसके जवाब में उन्होंने कहा कि 'वे इसका इंतज़ार नहीं करना चाहेंगे क्योंकि उन्हें नहीं लगता कि निकट भविष्य में यह संभव है।'

उन्होंने यह बात समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दिए एक इंटरव्यू के दौरान कही। उन्होंने कहा कि 'कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए ज़रूरी है कि मरीज़ों की बेहतर पड़ताल की जाए, उन्हें सही तरीक़े से ढूंढा जाए और जहाँ संक्रमण फैलता दिखे, वहीं उसे सख़्त आइसोलेशन के ज़रिए रोका जाए।'

अमरीका की सरकार को परामर्श देते हुए उन्होंने कहा है कि 'उन्हें टीके के इंतज़ार में नहीं बैठे रहना चाहिए। अगर शीर्ष नेता ये सोच रहे हैं कि टीका तैयार होने की घोषणा के आधार पर ही वे लॉकडाउन के प्रतिबंधों में छूट देने का निर्णय करेंगे, तो यह रणनीति सही नहीं है।'

अन्य किस्मों के कोरोना वायरस के लिए पहले जो वैक्सीन तैयार की गई हैं, वो नाक को संक्रमण से सुरक्षा देने में विफल रही है जहाँ से वायरस के शरीर में दाखिल होने की सबसे ज़्यादा आशंका रहती है।

हाथ धोते रहें, मास्क पहनें

विलियम हेसलटाइन ने यह भी कहा कि 'बिना किसी प्रभावी इलाज या फिर टीके के भी कोरोना वायरस को कंट्रोल किया जा सकता है। इसके लिए संक्रमण की सही पहचान ज़रूरी है। जो लोग संक्रमित हैं, उन्हें आइसोलेशन में रखना सबसे ज़्यादा कारगर है। बाक़ी लोग हाथ धोते रहें, मास्क पहनें और सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाली चीज़ों और जगहों को साफ़ रखें, तो भी इसमें काफ़ी कमी आ सकती है।'

विलियम हेसलटाइन मानते हैं कि चीन और कई अन्य एशियाई देशों ने इस वैकल्पिक रणनीति को बहुत प्रभावशाली तरीक़े से लागू किया है जबकि अमरीका में ऐसा नहीं देखा गया कि जो लोग वायरस से संक्रमित हो गए हों, उन्हें सख़्त आइसोलेशन में रखा गया हो।

उनके अनुसार चीन, दक्षिण कोरिया और ताइवान इस तरीके से कोरोना वायरस की संक्रमण दर को कम करने में सफल रहे हैं जबकि अमरीका, रूस और ब्राज़ील इसमें नाकाम रहे।

प्रोफ़ेसर विलियम ने कहा, 'जानवरों पर कोविड-19 के रिसर्च वैक्सीन आज़माने से अब तक यह तो पता चला है कि इनसे मरीज़ के शरीर में, खासतौर से फ़ेफड़ों में संक्रमण का असर कम होता देखा गया है।'

प्लाज़्मा थेरेपी पर भी कही ये बात

कुछ देशों में प्लाज़्मा थेरेपी का भी ट्रायल चल रहा है। इस थेरेपी में कोविड-19 (Covid-19) से ठीक हुए मरीजों के शरीर से एंटी-बॉडी लेकर संक्रमित मरीज़ों के शरीर में डाल दी जाती हैं। माना जा रहा है कि इससे मरीज़ों में कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता बढ़ जाती है।

कुछ दवा कंपनी अब इसी थेरेपी के मद्देनज़र बेहतर और रिफ़ाइंड सीरम तैयार कर रही हैं जिसके कोविड-19 के मरीज़ों में काम करने की संभावना है। प्रोफ़ेसर विलियम भी इस विधि के सफल होने की काफी संभावना मानते हैं।

उनका कहना है कि यह भविष्य में इसका पहला इलाज साबित हो सकता है क्योंकि ये एटी-बॉडी जिन्हें हाइपरइम्यून ग्लोब्यूलिन कहा जा रहा है, मानव शरीर के हर सेल में जाकर उसे वायरस को चित करने की क्षमता देती हैं।

अमेरिका में बच सकती थीं 54 हजार जानें

वहीं, कोलंबिया यूनिवर्सिटी की स्टडी रिपोर्ट दावा किया गया है कि अगर अमेरिका लॉकडाउन लगाने में दो हफ्ते की देरी न करते, तो वहां कोरोना से 83% कम मौतें होतीं। शोधकर्ताओं ने 3 मई तक के कोरोना मरीजों के आंकड़ों का अध्ययन किया। इसके अनुसार अगर सरकार ने 1 मार्च के पहले लॉकडाउन लगाया होता तो 11 हजार 253 मौतें होतीं, जबकि 65 हजार 307 मौतें हुईं। इसका मतलब यह है कि अगर दो हफ्ते पहले लॉकडाउन लगाया गया होता तो 54 हजार 54 लोगों की जानें बच सकती थीं।