आज 8 मई हैं और आज का दिन वर्ल्ड थैलेसिमिया डे (World Thalassemia Day) के रूप में मनाया जाता हैं। थैलेसीमिया खून की कमी होने से जुड़ी एक बीमारी हैं जो कि अनुवांशिक होती हैं और बच्चों को उनके माता-पिता से मिलती हैं। इस बिमारी के दौरान शरीर की लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं। सामान्य तौर पर लाल रक्त कणों की औसतन आयु 120 दिन होती है जो इस बीमारी में घटकर करीब 10 से 25 दिन ही रह जाती है। इस वजह से शरीर में खून की कमी लगातार होती रहती हैं। ऐसे में जरूरी हैं कि माता-पिता को समय-समय पर खून की जांच कराई जाए। बच्चा होने के बाद उसका भी ब्लड टेस्ट करवाना चाहिए। साथ ही प्रेग्नेंसी के चार महीने के बाद भ्रूण की स्थिति की जांच करवानी चाहिए। डॉक्टर बताते हैं कि युवाओं को शादी से पहले ब्लड टेस्ट करवा लेना चाहिए। आज हम आपको थैलेसीमिया से जुड़े लक्षणों और उपचार के बारे में बताने जा रहे हैं।
थैलेसीमिया के लक्षण
- बच्चों के नाखून और जीभ में पीलेपन की शिकायत।
- बच्चों की ग्रोथ यानी विकास रुक जाना, कुपोषण।
- उनका वजन ना बढ़ना, कमजोरी जैसी शिकायतें।
- सांस लेने में तकलीफ, थकान रहना।
- पेट की सूजन, गाढ़ा मूत्र जैसी शिकायतें आदि।
थैलेसीमिया में सावधानियां
- इस बीमारी से बचने के लिए व्यक्ति को कम वसा वाली चीजें खानी चाहिए।
- हरी पत्तेदारी सब्जियां और आयरन युक्त फूड्स का सेवन करना चाहिए।
- नियमित योग और व्यायाम करने से भी इस बीमारी से बचाव होता है।
थैलेसीमिया का उपचार
- इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को सामान्य तौर पर विटामिन, आयरन, फूड सप्लीमेंट्स और संतुलित आहार लेने की सलाह दी जाती है।
- गंभीर हालात में खून बदलने की जरूरत पड़ने लगती है।
- बोन मैरो ट्रांसप्लांट की भी जरूरत पड़ सकती है।
- पित्ताशय की थैली को हटाने के लिए सर्जरी का सहारा लिया जाता है।