स्विट्जरलैंड : अनोखा रेस्त्रां जहां करीब सवा सौ साल से सिर्फ परोसा जा रहा है शाकाहारी व्यंजन

By: Priyanka Maheshwari Fri, 17 May 2019 11:03:37

स्विट्जरलैंड : अनोखा रेस्त्रां जहां करीब सवा सौ साल से सिर्फ परोसा जा रहा है शाकाहारी व्यंजन

स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख में स्थित हॉस हितल रेस्त्रां जिसकी स्थापना 1898 में हुई थी अपने आप में कुछ खास है। करीब सवा सौ साल पहले स्थापित हुए इस रेस्त्रां में केवल शाकाहारी और वेगन (मांसाहार और दूध की बनी चीजों को छोड़कर) व्यंजन परोसे जाते है। रेस्त्रां में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई समेत कई हस्तियां खाना खा चुकी हैं। यहां के खाने में भारतीय, एशियाई, भूमध्यसागरीय और स्थानीय स्विस चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। हॉस हितल की ज्यूरिख में आठ ब्रांच हैं। मुख्य होटल में कई मंजिलें हैं। पहली मंजिल पर आ ला कार्त रेस्त्रां हैं, जहां एक दीवार पर कई शेल्फ बने हुए हैं और उनमें खाने की किताबें रखी हुई हैं।

स्विट्जरलैंड में नॉन-वेज काफी पसंद किया जाता है। द कलिनरी हेरिटेज ऑफ स्विट्जरलैंड के लेखक पॉल इमहॉफ कहते हैं कि पूरे मध्य यूरोप के खाने में मांस एक अहम स्थान रखता है। इसे आमतौर पर लोगों की आय से जोड़कर देखा जाता है। मांस से इतर आलू, चीज और कंद का इस्तेमाल होता है, लेकिन बेहद कम। हितल वेज्जी को सम्मान इसलिए हासिल है क्योंकि रेस्त्रां में कभी भी नॉन-वेज परोसने को लेकर नहीं सोचा गया। 19वीं सदी के अंत में हितल वेज्जी की जब स्थापना हुई थी, तब जर्मनी से प्रभावित एक नॉन-वेज रेस्त्रां का बोलबाला था। उस दौरान स्विट्जरलैंड के रसूखदार शाकाहारी लोगों का मजाक उड़ाते थे।

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दिलचस्प है इस रेस्त्रां की स्थापना की कहानी

रेस्त्रां की स्थापना की कहानी बड़ी दिलचस्प है। इसकी स्थापना जर्मन टेलर एम्ब्रोसियस हितल ने की थी। उस वक्त 24 साल के हितल को डॉक्टर ने गंभीर आर्थराइटिस की शिकायत बताई थी। साथ ही कहा था कि जितनी जल्दी हो सके, नॉन-वेज छोड़ दो नहीं तो जल्दी मौत हो जाएगी। उस वक्त मांस रहित खाना आमतौर पर नहीं मिलता था। हितल को बड़ी मुश्किल से एक रेस्त्रां एब्सटिनेंस कैफे मिला, जो ज्यूरिख का अकेला शाकाहारी रेस्त्रां था।

एम्ब्रोसियस को इस रेस्त्रां के शाकाहारी व्यंजन भा गए और उनकी रिकवरी भी होने लगी। साथ ही एम्ब्रोसियस को वहां की कुक मार्था न्यूपेल से प्यार हो गया और शादी कर ली। 1904 में उन्होंने रेस्त्रां का नाम बदलकर हॉस हितल कर दिया।

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एम्ब्रोसियस के परपोते रॉल्फ बताते हैं, ‘‘मेरे परदादा लोगों से प्यार करते थे। लोग उनकी तरफ आकर्षित होते थे। उस वक्त तक शाकाहार लोगों के जीवन का हिस्सा नहीं बना था। रेस्त्रां अपने असली रूप में 1951 में आया। एम्ब्रोसियस की बहू मार्गरिथ एक आधिकारिक प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली में वर्ल्ड वेजिटेरियन कांग्रेस में आईं। उन्हें भारत के मसाले खासकर धनिया, हल्दी, इलायची और जीरा काफी पसंद आए। वे उन्हें स्विट्जरलैंड भी लेकर आईं और भारतीय अंदाज में खाना बनाना शुरू किया।’’

हॉस हितल में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई समेत कई भारतीय हस्तियां शिरकत कर चुकी हैं। स्विस एयर ने अपने शाकाहारी यात्रियों के खाने के लिए हॉस हितल से ही अनुबंध किया है।

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