त्रियुगीनारायण मंदिर : जहां हुई थी भगवान शिव और माँ पार्वती की शादी

By: Ankur Sat, 18 Aug 2018 1:14:09

त्रियुगीनारायण मंदिर : जहां हुई थी भगवान शिव और माँ पार्वती की शादी

सावन का महीना भगवान शिव को ही समर्पित हैं। क्योंकि इसी महीने में भगवान शिव की शादी हुई थी और यह महीना शिव को अतिप्रिय हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव की शादी कहा हुई थी। अगर नहीं, तो आइये आज हम बताते हैं आपको उस मंदिर के बारे में जहां भगवान शिव और माँ पार्वती शादी के पवित्र बंधन में बंधे थे। यह उत्तराखंड का त्रियुगीनारायण मंदिर है। जिसे बहुत ही पवित्र माना जाता हैं और इस मंदिर का विशेष पौराणिक महत्व हैं। तो आइये जानते है इस मंदिर के बारे में।

इस मंदिर के अंदर सदियों से अग्नि जल रही है। शिव-पार्वती जी ने इसी पवित्र अग्नि को साक्षी मानकर विवाह किया था। यह स्थान रुद्रप्रयाग जिले का एक भाग है। त्रियुगीनारायण मंदिर के बारे में ही कहा जाता है कि यह भगवान शिव जी और माता पार्वती का शुभ विवाह स्थल है। मंदिर के अंदर प्रज्वलित अग्नि कई युगों से जल रही है इसलिए इस स्थल का नाम त्रियुगी हो गया यानी अग्नि जो तीन युगों से जल रही है।

त्रियुगीनारायण हिमावत की राजधानी थी। यहां शिव पार्वती के विवाह में विष्णु ने पार्वती के भाई के रूप में सभी रीतियों का पालन किया था। जबकि ब्रह्मा इस विवाह में पुरोहित बने थे। उस समय सभी संत-मुनियों ने इस समारोह में भाग लिया था। विवाह स्थल के नियत स्थान को ब्रहम शिला कहा जाता है जो कि मंदिर के ठीक सामने स्थित है। इस मंदिर के महात्म्य का वर्णन स्थल पुराण में भी मिलता है।

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विवाह से पहले सभी देवताओं ने यहां स्नान भी किया और इसलिए यहां तीन कुंड बने हैं जिन्हें रुद्र कुंड, विष्णु कुंड और ब्रह्मा कुंड कहते हैं। इन तीनों कुंड में जल सरस्वती कुंड से आता है। सरस्वती कुंड का निर्माण विष्णु की नासिका से हुआ था और इसलिए ऐसी मान्यता है कि इन कुंड में स्नान से संतानहीनता से मुक्ति मिल जाती है।

जो भी श्रद्धालु इस पवित्र स्थान की यात्रा करते हैं वे यहां प्रज्वलित अखंड ज्योति की भभूत अपने साथ ले जाते हैं ताकि उनका वैवाहिक जीवन शिव और पार्वती के आशीष से हमेशा मंगलमय बना रहे।

वेदों में उल्लेख है कि यह त्रियुगीनारायण मंदिर त्रेतायुग से स्थापित है। जबकि केदारनाथ व बदरीनाथ द्वापरयुग में स्थापित हुए। यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर विष्णु भगवान ने वामन देवता का अवतार लिया था।

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