रहस्यों से भरा है भारत की आखिरी सड़क वाला यह गाँव
By: Ankur Thu, 07 May 2020 4:40:37
भारत एक विशाल देश हैं जिसमें पर्यटन के लिहाज से कई जगहें हैं। लेकिन कुछ जगहें ऐसी हैं जो अपने पर्यटन से ज्यादा रहस्यों और रोचकता के लिए जानी जाती हैं। आज इस कड़ी में हम आपको एक ऐसी ही अनोखी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं जिसका संबंध रामायण काल से भी जुड़ा हुआ माना जाता हैं। हम बात कर रहे हैं भारत का अंतिम छोर कहे जाने वाले तमिलनाडु के पूर्वी तट पर रामेश्वरम द्वीप के किनारे पर स्थित धनुषकोडी के बारे में। यहीं पर एक ऐसी सड़क है, जिसे भारत की आखिरी सड़क कहा जाता है। ये वो जगह है, जहां से श्रीलंका साफ-साफ दिखाई देता है, लेकिन आज यह जगह बिल्कुल वीरान हो गई है और रहस्यों से भरी हुई है।
धनुषकोडी, भारत और श्रीलंका के बीच एकमात्र ऐसी स्थलीय सीमा है जो पाक जलसंधि में बालू के टीले पर मौजूद है। इसकी लंबाई महज 50 गज है और इसी वजह से इस जगह को दुनिया के लघुतम स्थानों में से एक माना जाता है। इस गांव को बेहद ही रहस्यमय माना जाता है। कई लोग तो इसे भुतहा भी मानते हैं। वैसे तो दिन के समय यहां लोग घूमने के लिए आते हैं, लेकिन रात होने से पहले उन्हें वापस भेज दिया जाता है। यहां रात के वक्त रूकना या घूमना बिल्कुल मना है। यहां से रामेश्वरम की दूरी करीब 15 किलोमीटर है और पूरा इलाका सुनसान है। जाहिर है ऐसे में किसी को भी डर लग सकता है।
ऐसा नहीं है कि यह गांव हमेशा से सुनसान रहा है। यहां पहले लोग रहते थे। उस समय धनुषकोडी में रेलवे स्टेशन से लेकर अस्पताल, चर्च, होटल और पोस्ट ऑफिस सब थे, लेकिन साल 1964 में आए भयानक चक्रवात मे सबकुछ खत्म हो गया। कहते हैं कि इस चक्रवात की वजह से 100 से अधिक यात्रियों के साथ एक रेलगाड़ी समुद्र में डूब गई थी। इसके बाद से ही यह इलाका वीरान हो गया।
कहते हैं कि धनुषकोडी ही वो जगह है, जहां से समुद्र के ऊपर रामसेतु का निर्माण शुरू किया गया था। मान्यता है कि इसी जगह पर भगवान राम ने हनुमान को एक पुल का निर्माण करने का आदेश दिया था, जिसपर से होकर वानर सेना लंका रावण की लंका नगरी में प्रवेश कर सके। इस गांव में भगवान राम से जुड़े कई मंदिर हैं। ऐसी मान्यता है कि विभीषण के कहने पर भगवान राम ने अपने धनुष के एक सिरे से सेतु (पुल) को तोड़ दिया था। इसी वजह से इसका नाम धनुषकोडी पड़ गया।
इस गांव से एक एतिहासिक घटना भी जुड़ी हुई है। दरअसल, वर्ष 1893 में स्वामी विवेकानंद जब अमेरिका में आयोजित धर्म संसद में भाग लेने गए थे, उसके बाद लौटने पर उन्होंने भारत में सबसे पहले धनुषकोडी में ही अपना कदम रखा था। वह श्रीलंका के कोलंबो से होकर यहां पहुंचे थे।