उत्तरप्रदेश: काशी में शवों की संख्या घटी, महा शमशान में पहले हर दिन 100 आते थे, अब 15 शव आ रहे
By: Pinki Fri, 10 Apr 2020 09:41:29
कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में हाहाकार मचा रखा है। कोरोना वायरस के संकट से निपटने के लिए भारत में 21 दिनों का लॉकडाउन लागू है। लॉकडाउन के तहत सरकार ने घरों में रहने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में इस दौरान काशी महाश्मशान पर चिताओं का जलना आधे से भी कम हो गया है। कोरोना महामारी ने लोगों को बीमार करके उनसे मृत्यु के बाद मिलने वाले चार कंधों और पूरे विधि-विधान से अंत्येष्टि का अधिकार पहले ही छीन लिया है। वहीं अब इस महामारी का असर काशी के महा श्मशान मणिकर्णिका घाट पर दिखने लगा है। दरअसल, लॉकडाउन के चलते रोजाना की तुलना में चिताओं की अंत्येष्टि यहां आधे से भी कम हो चुकी है। काशी के महा श्मशान में आम दिनों में पूर्वांचल, बिहार, झारखंड से रोज 80 से 100 शव दाह के लिए आते हैं। लॉकडाउन के बाद यह संख्या घटकर 15-20 रह गई है।
लोगों के कान में शिव खुद तारक मंत्र देते हैं
धर्म नगरी काशी के महाश्मशान के साथ मान्यता है कि यहां चिता की आग कभी ठंडी नहीं पड़ती और 24 घंटे जलती ही रहती है। साथ ही यह भी मान्यता है कि यहां मृत्यु को प्राप्त लोगों के कान में शिव खुद तारक मंत्र देते हैं, जिससे जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त मिल जाती है। इस मान्यता के कारण ही काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका पर आम दिनों में पैर रखने की भी जगह नहीं मिलती। लेकिन लॉकडाउन की वजह से यहां सन्नाटा पसरा हुआ है। दरअसल, बॉर्डर सील होने के कारण काशी को छोड़कर आसपास और दूर-दराज से चिताओं के आने का सिलसिला थम गया है। स्थानीय लोगों को महाश्मशान तक पहुंचने में दिक्कत नहीं हैं, लेकिन बाहर से आने वालों को बॉर्डर सील होने के चलते काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
साथ ही यहां शव की अंत्येष्टि के लिए लकड़ी से लेकर अन्य सामग्रियों का स्टॉक भी खत्म होने की कगार पर है। एक दुकानदार दिनेश यादव ने बताया कि पहले 60-100 शव रोजाना आम दिनों में आया करते थे, लेकिन अब 4-5 शव ही आ रहे हैं। उनके पास लकड़ी का स्टॉक भी सिर्फ लॉकडाउन की मियाद 14 अप्रैल तक ही है। हालात अगर ऐसे ही रहे तो आगे चिताएं भी नहीं जल पाएंगी और महाश्मशान की आग भी बुझने के कगार पर आ सकती है।