शाहीन बाग प्रोटेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा - राइट टु प्रोटेस्ट का मतलब यह नहीं कि जब और जहां मन हुआ धरने पर बैठ जाएं

By: Pinki Sat, 13 Feb 2021 2:42:03

शाहीन बाग प्रोटेस्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा - राइट टु प्रोटेस्ट का मतलब यह नहीं कि जब और जहां मन हुआ धरने पर बैठ जाएं

नागरिक संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में हुए प्रदर्शन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अपने पुराने फैसले पर पुनर्विचार करने से इंकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को याचिका खारिज करते हुए कहा, 'विरोध करने का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता।' सुप्रीम कोर्ट ने ये साफ करते हुए कहा है कि शहीद बाग में एंटी-सीएए विरोध प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक स्थानों पर कब्जा स्वीकार्य नहीं है। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस कृष्ण मुरारी ने कहा कि विरोध का अधिकार, कभी भी और कहीं भी नहीं हो सकता।

कोर्ट ने कहा कि राइट टु प्रोटेस्ट का यह मतलब यह नहीं कि जब और जहां मन हुआ, प्रदर्शन करने बैठ जाएं। कुछ सहज विरोध हो सकता है, लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में दूसरों के अधिकारों को प्रभावित करने वाले सार्वजनिक स्थान पर लगातार कब्जा नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, अनिरुद्ध बोस और किरना मुरारी की पीठ ने कहा, 'हमने सिविल अपील में पुनर्विचार याचिका और रिकॉर्ड पर विचार किया है। हमने उसमें कोई गलती नहीं पाई है।'

पीठ ने शाहीन बाग निवासी कनीज फातिमा और अन्य द्वारा 7 अक्टूबर के कोर्ट के अंतिम फैसले की समीक्षा करने की याचिका खारिज करते हुए कहा, 'विरोध का अधिकार कभी भी और हर जगह नहीं हो सकता। कुछ सहज विरोध हो सकते हैं, लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में, दूसरों के अधिकारों के सार्वजनिक स्थान पर लगातार कब्जा नहीं किया जा सकता है।' शीर्ष अदालत, जिसने न्यायाधीशों के कक्ष में मामले पर विचार किया, ने मामले में खुली अदालत की सुनवाई की मांग को भी खारिज कर दिया।

याचिका में क्या कहा गया था?

अक्टूबर 2020 में शाहीन बाग आंदोलन को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर नवंबर 2020 से पुनर्विचार याचिका लंबित थी। ऐसे में एक और अर्जी लगाकर याचिकाकर्ताओं ने कहा कि चूंकि किसान आंदोलन के खिलाफ लगाई गई अर्जी और हमारी याचिका एक जैसी है, ऐसे में सार्वजनिक स्थानों पर विरोध करने के अधिकार की वैधता और सीमा पर कोर्ट के विचार अलग-अलग नहीं हो सकते। कोर्ट को इस पर विचार करना चाहिए। शाहीन बाग मामले में अदालत की ओर से की गई टिप्पणी नागरिकों के आंदोलन करने के अधिकार पर संशय पैदा करती है।

दिसंबर 19 से मार्च 20 तक शाहीन बाग में चला था प्रदर्शन

दिल्ली के शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ 14 दिसंबर 2019 से प्रदर्शन शुरू हुआ था, जो 3 महीने से ज्यादा चला। सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी को सीनियर वकील संजय हेगडे और साधना रामचंद्रन को जिम्मेदारी दी कि प्रदर्शनकारियों से बात कर कोई समाधान निकालें, लेकिन कई राउंड की चर्चा के बाद भी बात नहीं बन पाई थी। बाद में कोरोना के चलते लॉकडाउन होने पर 24 मार्च को प्रदर्शन बंद हो पाया था।

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