RBI के फैसले के बाद 1 जुलाई से बदल जाएगा SBI का ये नियम, 42 करोड़ ग्राहकों को होगा फायदा
By: Pinki Sat, 08 June 2019 10:16:27
अगर आप देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के 42 करोड़ ग्राहकों में से एक है तो यह खबर आपकी लिए जरुरी है। दरअसल, SBI ने 1 जुलाई से नियम में बदलाव करने का ऐलान किया है। तो आइये जानते है विस्तार से...
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की ओर से रेपो रेट में की गई कटौती का फायदा सबसे पहले फायदा एसबीआई (SBI) देने जा रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि अगले महीने से एसबीआई की होम लोन की ब्याज दर पूरी तरह रेपो रेट पर आधारित हो जाएगी। अगर इसे आसान भाषा में समझें तो रिजर्व बैंक जब-जब रेपो रेट में बदलाव करेगा उसी आधार पर एसबीआई की होम लोन की ब्याज दर भी तय होगी।
SBI ने मार्च 2019 में ही अपनी सेविंग्स डिपॉजिट और कर्ज दरों को RBI रेपो रेट से जोड़ने की घोषणा कर दी थी। इसीलिए RBI के ब्याज दरों (रेपो रेट) में की गई 0.25 फीसदी की कटौती का फायदा एसबीआई कस्टमर्स को तुरंत मिलेगा। 1 जुलाई से इसके जरिए लिंक सभी लोन 0.25 फीसदी तक सस्ते हो जाएंगे।
वर्तमान में आरबीआई के रेपो रेट के बदलाव के बाद भी एसबीआई अपने हिसाब से होम लोन पर ब्याज दरों में कटौती या बढ़ोतरी करता है।
हम आपको उदाहरण के जरिए समझाते है
दरहसल, आरबीआई ने बीते 6 महीने में लगातार तीन बार रेपो रेट में कटौती की है। दिसंबर से जून के बीच रेपो रेट में कुल 0.75 फीसदी की कटौती हो चुकी है। आगे ऐसी परिस्थितियों में एसबीआई का होम लोन भी लगातार सस्ता होगा। हालांकि, रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं होने की स्थिति में SBI होम लोन की ब्याज दरें भी स्थिर रहेंगी।
यहां बता दें कि रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति वर्ष में 6 बार यानी हर दूसरे महीने रेपो रेट की समीक्षा करता है। कहने का मतलब यह है कि अगर हर दूसरे महीने में रेपो रेट में बदलाव हुआ तो एसबीआई के होम लोन की ब्याज दरें भी उसी के मुताबिक घटेंगी या बढ़ेंगी।
एक्सटर्नल बेंचमार्किंग नियम के तहत यह पहल करने वाला एसबीआई देश का पहला बैंक है। आपको बता दें कि SBI 1 मई से लोन को लेकर बड़ा बदलाव कर चुका है। बैंक ने रेपो रेट को बैंक दरों से जोड़ दिया है। यह फैसला एक लाख रुपये से ज्यादा के लोन पर लागू है।
क्या है एक्सटर्नल बेंचमार्किंग
एक्सटर्नल बेंचमार्किंग नियम के तहत लोन्स में ‘फ्लोटिंग’ (परिवर्तनीय) ब्याज दरें रेपो रेट या गवर्मेंट सिक्योरिटी में निवेश पर यील्ड जैसे बाहरी मानकों से संबद्ध की जाएंगी। इसका फायदा यह होगा कि RBI द्वारा पॉलिसी रेट घटाते या बढ़ाते ही कस्टमर्स के लिए लोन भी तुंरत सस्ते या महंगे हो जाएंगे। फिलहाल बैंक अपने कर्ज पर दरों को प्रिंसिपल लेंडिंग रेट (PLR), बेंचमार्क प्रिन्सिपल लेंडिंग रेट (BPLR), बेस रेट और मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड बेस्ड लेंडिंग रेट (MCLR) जैसे आंतरिक मानकों के आधार पर तय करते हैं।
सभी SBI कस्टमर्स को फायदा नहीं-एसबीआई द्वारा की गई घोषणा के मुताबिक, आरबीआई द्वारा नीतिगत दरों में बदलाव का फायदा ग्राहकों को तुरंत देने के उद्देश्य से सेविंग डिपॉजिट और कम अवधि के कर्ज की ब्याज दर को रेपो रेट से जोड़ने का फैसला एक मई 2019 से लागू होगा। हालांकि इससे एसबीआई के सभी ग्राहकों को फायदा नहीं होगा। नया नियम सिर्फ उन्हीं खातों पर लागू होगा, जिनमें एक लाख रुपये से अधिक राशि हो।
क्या है रेपो रेट (Repo Rate) / रिवर्स रेपो रेट (Reverse Repo Rate)
जिस रेट पर आरबीआई कमर्शियल बैंकों और दूसरे बैंकों को लोन देता है, उसे रेपो रेट कहते हैं। रेपो रेट कम होने का मतलब यह है कि बैंक से मिलने वाले लोन सस्ते हो जाएंगे। रेपो रेट कम होने से होम लोन, व्हीकल लोन वगैरह सभी सस्ते हो जाते हैं।
जिस रेट पर बैंकों को उनकी ओर से आरबीआई में जमा धन पर ब्याज मिलता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। रिवर्स रेपो रेट बाजारों में नकदी को नियंत्रित करने में काम आती है। बहुत ज्यादा नकदी होने पर आरबीआई रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देती है।
क्या है एसएलआर (SLR)
जिस रेट पर बैंक अपना पैसा सरकार के पास रखते हैं, उसे एसएलआर कहते हैं। नकदी को नियंत्रित करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है। कमर्शियल बैंकों को एक खास रकम जमा करानी होती है, जिसका इस्तेमाल किसी इमरजेंसी लेन-देन को पूरा करने में किया जाता है।
क्या है सीआरआर (CRR)
बैंकिंग नियमों के तहत सभी बैंकों को अपनी कुल नकदी का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास जमा करना होता है, जिसे कैश रिजर्व रेशियो यानी सीआरआर कहते हैं।
क्या है एमएसएफ (MSF)
आरबीआई ने इसकी शुरुआत साल 2011 में की थी। एमएसएफ के तहत कमर्शियल बैंक एक रात के लिए अपने कुल जमा का 1 फीसदी तक लोन ले सकते हैं।