अशोक गहलोत: जिसकी सियासी कमाल के आगे विरोधी भी होते हैं नतमस्‍तक, जानिए जीवन से जुड़ी कुछ खास राजनीतिक बातें

By: Pinki Fri, 14 Dec 2018 5:20:56

अशोक गहलोत: जिसकी सियासी कमाल के आगे विरोधी भी होते हैं नतमस्‍तक, जानिए जीवन से जुड़ी कुछ खास राजनीतिक बातें

अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री (CM of Rajasthan) बनने जा रहे हैं। यह जानकारी कांग्रेस ने पार्टी मुख्यालय में प्रेस कांफ्रेंस के जरिए दी। अशोक गहलोत, राजस्थान में कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाते हैं। जोधपुर की सरदारपुरा सीट से विधायक अशोक गहलोत लगातार चौथी बार विधायक चुने गए हैं। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को किनारे वाला बहुमत मिलने के बाद गहलोत का नाम सीएम पद की रेस में आया। इसके बाद उनका पलड़ा प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष सचिन पायलट की दावेदारी पर भारी पड़ा और ज्‍यादातर विधायक गहलोत के पाले में नजर आए।

24 घंटे अपने कार्यकर्ताओं के लिए उपलब्ध

3 मई 1951 को राजस्थान के जोधपुर में मशहूर जादूगर लक्ष्मण सिंह गहलोत के घर जन्मे अशोक पिछले चार दशक के करियर में कई मौकों पर राजनीतिक 'जादू' दिखाते रहे हैं। विज्ञान और कानून से ग्रेजुएशन के बाद अर्थशास्त्र से एमए की पढ़ाई करने वाले अशोक गहलोत की गिनती लो-प्रोफाइल नेताओं में होती है। तड़क-भड़क से दूर मगर राजनीतिक समर्थकों की फौज से हमेशा घिरे रहने वाले 67 वर्षीय अशोक गहलोत के बारे में कहा जाता है कि वह 24 घंटे अपने कार्यकर्ताओं के लिए उपलब्ध रहते हैं। फोन से भी उन तक पहुंचना आसान है। सादगी पसंद भी हैं। करीबी बताते हैं कि चुनाव प्रचार के दौरान अपनी गाड़ी में पारले-जी बिस्कुट रखते हैं तो कहीं भी सड़क पर उतरकर चाय-पानी करने के बहाने जनता की नब्ज भांपने की कला का बखूबी इस्तेमाल करने में माहिर हैं।

कांग्रेस की कई पीढ़ियों की सियासत के गवाह

27 नवंबर 1977 को सुनीता गहलोत से शादी रचाने के बाद गहलोत की दो संतान है। बेटे का नाम वैभव तो बेटी का नाम सोनिया है। अशोक गहलोत कांग्रेस के ऐसे नेता हैं, जो कांग्रेस की कई पीढ़ियों की सियासत के गवाह रहे हैं। उन्हें तीन-तीन प्रधानमंत्रियों के मंत्रिमंडल में काम करने का मौका मिल चुका है। इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और नरसिम्हा राव के मंत्रिमंडल में शामिल रहे।नेहरू परिवार और राहुल गांधी के भरोसेमंद नेताओं में शुमार अशोक गहलोत छात्र राजनीति से इस मुकाम तक पहुंचे हैं। कभी एनएसयूआई से राजनीति शुरू करने वाले अशोक गहलोत बाद में यूथ कांग्रेस और सेवा दल से होते हुए कांग्रेस की मुख्य धारा में पहुंचे। राजस्थान में महज 34 साल की उम्र में ही प्रदेश अध्यक्ष होने का भी तमगा उनके पास है।

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रणनीति ने बीजेपी का दम फुला दिया

पिछले एक साल में गहलोत का सितारा बुलंदी पर पहुंचा है। सबसे पहले उन्‍हें राहुल गांधी ने गुजरात का प्रभारी बनाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के गढ़ गुजरात में कांग्रेस लगभग दो दशक से सत्‍ता से बाहर है। लेकिन पिछले चुनाव में गहलोत ने मोर्चा संभाला। उनकी रणनीति ने बीजेपी का दम फुला दिया। पीएम मोदी को अपने सारे ब्र‍ह्मास्‍त्रों का इस्‍तेमाल कर जैसे तैसे गढ़ बचाया। कांग्रेस हार गई लेकिन राज्‍य में उसकी स्थिति और केंद्रीय आलाकमान की नजरों में गहलोत का कद बढ़ गया। इसके बाद तो गहलोत ने उन सभी जगहों पर कांग्रेस की ओर से मोर्चा थाम लिया और बीजेपी के हरेक वार का डटकर सामना किया।

साल 1973 से 1979 की अवधि के बीच राजस्‍थान NSUI के अध्‍यक्ष रहे


राजनीति में अशोक गहलोत ने कॉलेज के समय में कदम रखा। कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई के साथ जुड़े और साल 1973 से 1979 की अवधि के बीच राजस्‍थान NSUI के अध्‍यक्ष रहे, साल 1979 से 1982 के बीच जोधपुर शहर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्‍यक्ष रहे।
1977 में 26 साल की उम्र में उन्‍होंने सरदारपुरा से चुनाव लड़ने के लिए टिकट मांगी। उस समय कांग्रेस में संजय गांधी का दबदबा चलता था और उन्‍होंने ही गहलोत को उम्‍मीदवार बनाया। इस चुनाव के लिए उन्‍होंने बाइक बेची और उससे मिले पैसों से पूरा चुनाव लड़ा। एक करीबी दोस्‍त के सैलून को चुनाव कार्यालय बनाया। लेकिन विधायकी के लिए पहले टेस्‍ट में गहलोत नाकाम रहे। उन्‍होंने इस शिकस्‍त से हार नहीं मानी। तीन साल बाद 1980 में जोधपुर लोकसभा सीट से उन्‍हें टिकट मिला और वे सांसद बने। इसके बाद वे राजनीति की हरेक कसौटी पर खरे उतरते गए। गहलोत की पहचान गांधीवादी नेता के रूप में होती है। लेकिन अपने विरोधियों को निपटाना भी गहलोत की एक पहचान है।

विरोधियों की सभी बातें याद रखते हैं

राजनीति गलियारों के जानकार और गहलोत को करीब से जानने वालों का कहना है कि वे अपने विरोधियों की सभी बातें याद रखते हैं। वे कभी भी खुलकर नहीं बोलते हैं लेकिन चुपचाप अपना काम कर देते हैं। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्‍थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन के नेता किरोड़ी सिंह बैंसला ने एक बार उनके बारे में कहा था, 'गहलोत काफी सजग नेता हैं। इतने सजग कि उन्‍हें कोई दूध पिलाने की कोशिश करे तो वह उसका पहला घूंट किसी बिल्‍ली को पिलाए बिना खुद नहीं पिएंगे।'

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गहलोत की 'जादूगरी' के किस्‍से

- राजनीति गलियारों में गहलोत की 'जादूगरी' के कई किस्‍से चलते हैं। ऐसा ही एक किस्‍सा साल 2008 के विधानसभा चुनाव से जुड़ा है। उस चुनाव में कांग्रेस को 200 में से 96 सीटें मिली थी। ऐसे में गहलोत ने बसपा के छह विधायकों को कांग्रेस में मिला लिया। यह सब मायावती की अनुमति के बिना हुआ था। ऐसे में बसपा के स्‍थानीय नेतृत्‍व ने विधायकों को अयोग्‍य करार देने की अपील की। इस पर राजस्‍थान में यह कहा गया कि, 'जादूगर ने फिर दिखाया कमाल। राजस्‍थान से हाथी हुआ गायब।' इसके बाद बड़े आराम से पांच साल तक सरकार चलाई। हालांकि सरकार का कार्यकाल पूरा होने से ठीक पहले इन छहों विधायकों पर फैसला गहलोत के विरोध में आया लेकिन तब त‍क उनका काम हो चुका था।

- ऐसा ही कुछ मुख्‍यमंत्री की कुर्सी को लेकर भी हुआ। 1998 और 2008 में जब कांग्रेस जीती थी तो गहलोत के अलावा कमला बेनीवाल, मिर्धा परिवार, परसराम मदेरणा, शीशराम ओला, डॉ। चंद्रभान, नारायण सिंह और डॉ. हरि सिंह जैसे जाट नेता मुख्‍यमंत्री पद पर दावा ठोक रहे थे। लेकिन दिलचस्‍प बात देखिए गहलोत ने आलाकमान का दिल जीतते हुए कुछ नेताओं को मना लिया तो बाकी लोग चुनाव हार गए। सबसे हैरानी वाले नतीजे तो 2008 में आए जब मिर्धा परिवार, नारायण सिंह, डॉ. हरि सिंह और डॉ. चंद्रभान चुनाव हार गए जबकि शीशराम ओला केंद्र की राजनीति में चले गए तो कमला बेनीवाल राज्‍यपाल बनकर राज्‍य से बाहर चली गईं। ऐसे में गहलोत ही सीएम पद के लिए रह गए। गहलोत काफी लो प्रोफाइल रहते हैं लेकिन कड़े कदम उठाने से पीछे नहीं हटते। इसके कई उदाहरण हैं। जैसे- 2012 में आसाराम बापू को रेप के आरोप लगने पर गिरफ्तार करना हो या 2003 में विहिप के पूर्व तेजतर्रार नेता प्रवीण तोगडि़या को गिरफ्तार करवा दिया था।

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तीन अलग-अलग केंद्र सरकारों में मंत्री रहे

अशोक गहलोत कांग्रेस की तीन अलग-अलग केंद्र सरकारों में मंत्री रहे। वे इंदिरा के साथ ही राजीव गांधी की कैबिनेट के भी सदस्‍य थे। बाद में नरसिम्‍हाराव सरकार में भी वे मंत्री बने। हालांकि तांत्रिक चंद्रास्‍वामी से दूरी के चलते उन्‍हें नरसिम्‍हाराव सरकार से इस्‍तीफा देना पड़ा था। अब वे गांधी परिवार की तीसरी पीढ़ी यानी राहुल गांधी के साथ मिलकर सियासत के नए दांवपेंच चल रहे हैं।

गहलोत राजनीतिक विरोध के बावजूद भैरो सिंह शेखावत का खूब सम्‍मान करते हैं। शेखावत के निधन के बाद गहलोत हरेक बरसी पर उनको श्रद्धांजलि देने वाले सबसे पहले नेता होते हैं। कई बार तो बीजेपी नेताओं से पहले वे शेखावत को याद कर भगवा पार्टी को क्‍लीनबोल्‍ड कर देते हैं।

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40 वर्षों से भी ज्यादा समय से राजनीति में सक्रिय अशोक गहलोत तीसरी बार वह राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने जा रहे है। 2004-2008 तक कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव रहे। 2003 में अपनी सीट से विधानसभा चुनाव जीतने के बाद भी उन्हें विपक्ष में बैठना पड़ा था, क्योंकि वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बन गई थी।पहली बार 1 दिसंबर 1998 को मुख्यमंत्री बने। उस वक्त विधायक नहीं थे तो सीट खाली हुई और फिर सरदारपुर से उपचुनाव जीतकर विधायक बने। वह पहली बार आठ दिसंबर 2003 तक मुख्यमंत्री रहे। वसुंधरा राजे की बीजेपी सरकार का कार्यकाल पूरा होने के बाद फिर 2008 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने जीता तो दोबारा मुख्यमंत्री बने। इस बार 13 दिसंबर 2013 तक मुख्यमंत्री रहे। कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने जाने के कुछ महीने बाद इस साल अप्रैल में राहुल गांधी ने जब अपनी टीम बनाई तो उन्हें महासचिव बनाया।

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