15 जुलाई को चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग, चंद्रमा की सतह पर लैंडिंग में लगेंगे 15 मिनट
By: Pinki Wed, 12 June 2019 3:38:03
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के वैज्ञानिक आखिरकार चांद पर भारत का दूसरा कदम रखने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। 15 जुलाई 2019 को सुबह 2 बजकर 51 मिनट पर चंद्रयान-2 को लॉन्च किया जाएगा। चांद पर जाने को तैयार भारत का स्पेस मिशन चंद्रयान-2 के लॉन्च का ऐलान बेंगलुरु में इसरो के चेयरमैन डॉ. के सिवान ने कर दिया। बुधवार को इसरो चेयरमैन डॉ. के सिवन ने बताया कि हमारे लिए इस मिशन का सबसे कठिन हिस्सा है चंद्रमा की सतह पर सफल और सुरक्षित लैंडिंग कराना। चंद्रयान-2 चंद्रमा की सतह से 30 किमी की ऊंचाई से नीचे आएगा। उसे चंद्रमा की सतह पर आने में करीब 15 मिनट लगेंगे। यह 15 मिनट इसरो के लिए बेहद कठिन होगा। क्योंकि इसरो पहली बार ऐसा मिशन करने जा रहा है। सिवान ने बेंगलुरु में इस मिशन से जुड़ी जानकारी के लिए वेबसाइट का लॉन्च भी किया।
इसरो चेयरमैन ने जानकारी दी कि चंद्रयान-2 को 15 जुलाई सुबह 2 बजकर 51 मिनट पर प्रक्षेपित किया जाएगा। इसमें तीन हिस्से होंगे- लैंडर, रोवर और ऑर्बिटर। रोवर एक रोबॉटिक आर्टिकल है जिसका वजन 27 किलो और लंबाई 1 मीटर है। लैंडर का वजन 1.4 टन और लंबाई 3.5 मीटर है। ऑर्बिटर का वजन 2.4 टन और लंबाई 2.5 मीटर है।
#WATCH Live from Bengaluru: ISRO Chairman addresses the media #Chandrayaan2 https://t.co/ruTEvtcxuu
— ANI (@ANI) June 12, 2019
मिशन कितने दिनों का
ऑर्बिटर- 1 साल, लैंडर (विक्रम)- 15 दिन, रोवर (प्रज्ञान)- 15 दिन
मिशन का कुल वजनः 3877 किलो
ऑर्बिटर- 2379 किलो, लैंडर (विक्रम)- 1471 किलो, रोवर (प्रज्ञान)- 27 किलो
यूं चांद उतरेगा का भारत का यान
सिवान ने बताया कि लैंडर को ऑर्बिटर के ऊपर रखा जाएगा। लैंडर, ऑर्बिटर और रोवर को एक साथ कंपोजिट बॉडी कहा गया है। इस कंपोजिट बॉडी को GSLV mk lll लॉन्च वीइकल के अंदर हीट शील्ड में रखा जाएगा। 15 जुलाई को लॉन्च के 15 मिनट बाद GSLV से कंपोजिट बॉडी को इजेक्ट कर दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि प्रोपल्शन सिस्टम के जलने से कंपोजिट बॉडी चांद की ओर बढ़ने लगेगी। कुछ दिन बाद एक रेट्रो बर्न होने से यह चांद की कक्षा में पहुंच जाएगी।
लॉन्च के बाद अगले 16 दिनों में चंद्रयान-2 पृथ्वी के चारों तरफ 5 बार ऑर्बिट बदलेगा। इसके बाद 6 सितंबर को चंद्रयान-2 की चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडिंग होगी। इसके बाद रोवर को लैंडर से बाहर निकलने 4 घंटे लगेंगे। इसके बाद, रोवर 1 सेंटीमीटर प्रति सेकंड की गति से करीब 15 से 20 दिनों तक चांद की सतह से डाटा जमा करके लैंडर के जरिए ऑर्बिटर तक पहुंचाता रहेगा। ऑर्बिटर फिर उस डाटा को इसरो भेजेगा। लैंडर जहां उतरेगा उसी जगह पर यह जांचेगा कि चांद पर भूकंप आते है या नहीं। वहां थर्मल और लूनर डेनसिटी कितनी है। रोवर चांद के सतह की रासायनिक जांच करेगा।
इसरो ने पहले नहीं की ऐसी फ्लाइट
इसरो चेयरमैन का कहना है कि इस मिशन का यह सबसे रोमांचक पल होगा क्योंकि इसरो ने इससे पहले इस तरह की फ्लाइट को कभी अंजाम नहीं दिया है। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ इसरो ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए रोमांच से भरा लम्हा होगा। चांद पर लैंड होने के बाद रोवर के लिए दरवाजे खुलेंगे और रोवर 1 सेंटीमीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से चांद की सतह पर पैर रखेगा। ऑर्बिटर इस दौरान चांद की कक्षा में घूमेगा, लैंडर अपनी जगह साउथ पोल पर ही रहेगा और रोवर चांद पर घूमेगा।
आने वाली पीढ़ियों को फायदा
डॉ सिवान ने बताया कि इसरो का मिशन स्पेस टेक्नॉलजी का इस्तेमाल लोगों की सुरक्षा और क्वॉलिटी ऑफ लाइफ को बेहतर बनाने के लिए करना है। उन्होंने बताया कि कैसे स्पेस टेक्नॉलजी ने चक्रवाती तूफान फोनी में या ब्रॉडबैंड सेवा दूरवर्ती इलाकों में पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। सिवान ने कहा कि अब वक्त है स्पेस साइंस पर ध्यान केंद्रित करने का। इसके तहत दूसरे ग्रहों को एक्सप्लोर करने के मिशन पूरे किए जाएंगे जिनका फायदा आगे की पीढ़ियों को मिलेगा।
इन 7 चुनौतियों का करना होगा चंद्रयान-2 को सामना
पहली : सटीक रास्ते पर ले जाना
लॉन्च के समय धरती से चांद की दूरी करीब 3 लाख 84 हजार 400 किमी होगी। इतने लंबे सफर के लिए सबसे जरूरी सही मार्ग (ट्रैजेक्टरी) का चुनाव करना। क्योंकि सही ट्रैजेक्टरी से चंद्रयान-2 को धरती, चांद और रास्ते में आने वाली अन्य वस्तुओं की ग्रैविटी, सौर विकिरण और चांद के घूमने की गति का कम असर पड़ेगा।
दूसरी : गहरे अंतरिक्ष में संचार
धरती से ज्यादा दूरी होने की वजह से रेडियो सिग्नल देरी से पहुंचेंगे। देरी से जवाब मिलेगा। साथ ही अंतरिक्ष में होने वाली आवाज भी संचार में बाधा पहुचांएंगे।
तीसरी : चांद की कक्षा में पहुंचना
चंद्रयान-2 को चांद की कक्षा में पहुंचाना आसान नहीं होगा। लगातार बदलते ऑर्बिटल मूवमेंट की वजह से चंद्रयान-2 को चांद की कक्षा में पहुंचाने के लिए अत्यधिक सटीकता की जरूरत होगी। इसमें काफी ईंधन खर्च होगा। सही कक्षा में पहुंचने पर ही तय जगह पर लैंडिंग हो पाएगी।
चौथी : चांद की कक्षा में घूमना
चंद्रयान-2 के लिए चांद के चारों तरफ चक्कर लगाना भी आसान नहीं होगा। इसका बड़ा कारण है चांद के चारों तरफ ग्रैविटी बराबर नहीं है। इससे चंद्रयान-2 के इलेक्ट्रॉनिक्स पर असर पड़ता है। इसलिए, चांद की ग्रैविटी और वातावरण की भी बारीकी से गणना करनी होगी।
पांचवीं : चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग
इसरो वैज्ञानिकों के मुताबिक चंद्रमा पर चंद्रयान-2 को रोवर और लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग सबसे बड़ी चुनौती है। चांद की कक्षा से दक्षिणी ध्रुव पर रोवर और लैंडर को आराम से उतारने के लिए प्रोपल्शन सिस्टम और ऑनबोर्ड कंप्यूटर का काम मुख्य होगा। ये सभी काम ऑटोमैटिकली होंगी।
छठीं : चंद्रमा की धूल
चांद की सतह पर ढेरों गड्ढे, पत्थर और धूल है। जैसे ही लैंडर चांद की सतह पर अपना प्रोपल्शन सिस्टम ऑन करेगा, वहां तेजी से धूल उड़ेगी। धूल उड़कर लैंडर के सोलर पैनल पर जमा हो सकती है, इससे पावर सप्लाई बाधित हो सकती है। ऑनबोर्ड कंप्यूटर के सेंसर्स पर असर पड़ सकता है।
सातवीं: बदलता तापमान
चांद का एक दिन या रात धरती के 14 दिन के बराबर होती है। इसकी वजह से चांद की सतह पर तापमान तेजी से बदलता है। इससे लैंडर और रोवर के काम में बाधा आएगी।