आखिर क्यों पड़ा अजमेर की इस मस्जिद का नाम 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा'?
By: Ankur Mon, 04 May 2020 4:27:39
देश में पर्यटन के लिहाज से कई हगहें प्रसिद्द हैं। इन्हीं जगहों में से एक हैं राजस्थान के अजमेर का 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' जो की कोई झोंपड़ा नहीं बल्कि एक मस्जिद हैं और इसका संबंध हिन्दू मंदिरों से भी हैं। इससे जुड़ी कई रोचक बातें हैं जो हैरान कर देती हैं। यह भारत की सबसे पुरानी मस्जिदों में से एक और अजमेर का सबसे पुराना स्मारक है। लेकिन क्या आप जानते हैं की इस मस्जिद का नाम 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' क्यों पड़ा। तो आइये आज हम बताते हैं आपको इसके बारे में।
'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' 1192 ईस्वी में अफगान सेनापति मोहम्मद गोरी के आदेश पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया था। असल में इस जगह पर एक बहुत बड़ा संस्कृत विद्यालय (स्कूल) और मंदिर थे, जिन्हें तोड़कर मस्जिद में बदल दिया गया था। अढ़ाई दिन के झोपड़े के मुख्य द्वार के बायीं ओर संगमरमर का बना एक शिलालेख भी है, जिसपर संस्कृत में उस विद्यालय का जिक्र किया गया है।
इस मस्जिद में कुल 70 स्तंभ हैं। असल में ये स्तंभ उन मंदिरों के हैं, जिन्हें धवस्त कर दिया गया था, लेकिन स्तंभों को वैसे ही रहने दिया गया था। इन स्तंभों की ऊंचाई करीब 25 फीट है और हर स्तंभ पर खूबसूरत नक्काशी की गई है। 90 के दशक में यहां कई प्राचीन मूर्तियां ऐसे ही बिखरी पड़ी थीं, जिन्हें बाद में संरक्षित किया गया।
अढ़ाई दिन के झोंपड़े का आधे से ज्यादा हिस्सा मंदिर का होने के कारण यह अंदर से मस्जिद न लगकर किसी मंदिर की तरह ही दिखाई देता है। हालांकि जो नई दीवारें बनवाई गईं, उनपर कुरान की आयतें जरूर लिखी गई हैं, जिससे ये पता चलता है कि यह एक मस्जिद है।
माना जाता है कि इस मस्जिद को बनने में ढाई दिन यानी मात्र 60 घंटे का समय लगा था, इसलिए इसे 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' कहा जाने लगा। हालांकि कुछ लोगों का यह भी मानना है कि यहां चलने वाले ढाई दिन के उर्स (मेला) के कारण इसका नाम 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' पड़ा था।