चंद्रयान-2 की लौन्चिंग से पहले आइए जानते है चंद्रयान-1 की उपलब्धियों के बारे में...
By: Pinki Sun, 14 July 2019 08:56:52
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के चंद्रमा पर दूसरे मिशन चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के प्रक्षेपण के 20 घंटों की उलटी गिनती रविवार सुबह शुरू हो गई है। 15 जुलाई को तड़के 2 बजकर 51 मिनट पर आँध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अंतरिक्ष में छोड़ा जाएगा। पहली बार भारत चंद्रमा की सतह पर लैंडर और रोवर उतारेगा और इसके 6 सितंबर को चंद्रमा पर पहुंचने की उम्मीद है। इसरो ने बताया कि मिशन के लिए रिहर्सल शुक्रवार को पूरी हो गई है। इसरो ने चंद्रमा की सतह पर उतरने वाले लैंडर मॉड्यूल का नाम अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के नाम पर विक्रम रखा है। यह दो मिनट प्रति सेकेंड की गति से चंद्रमा की जमीन पर उतरेगा। प्रज्ञान नाम का रोवर लैंडर से अलग होकर 50 मीटर की दूरी तक चंद्रमा की सतह पर घूमकर तस्वीरें लेगा। इस मिशन के मुख्य उद्देश्य चंद्रमा पर पानी की मात्रा का अनुमान लगाना, उसके जमीन, उसमें मौजूद खनिजों,रसायनों और उनके वितरण का अध्ययन करना और चंद्रमा के बाहरी वातावरण की ताप-भौतिकी गुणों का विश्लेषण है। दरहसल, चंद्रमा पर भारत के पहले मिशन चंद्रयान-1 ने वहां पानी की मौजूदगी की पुष्टि की थी। इसे तैयार करने में करीब 11 साल लग गए। चंद्रयान-2 की प्लानिंग से ठीक पहले इसरो ने चंद्रयान-1 लॉन्च किया था। चंद्रयान-1 ने सफलता के झंडे लहराए। पूरी दुनिया के वैज्ञानिक समुदाय में भारती वैज्ञानिकों ने नाम ऊंचा किया। हमारा यह जानना जरूरी है कि देश के पहले चंद्र मिशन चंद्रयान-1 ने हमें क्या दिया...
चन्द्रयान-1 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के चंद्र अन्वेषण कार्यक्रम के अंतर्गत द्वारा चंद्रमा की तरफ कूच करने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष यान था। इस अभियान के अन्तर्गत एक मानवरहित यान को इसरो ने 22 अकटूबर 2008 को चंद्रमा पर भेजा था, जो 30 अगस्त 2009 तक चंद्रमा पर सक्रिय रहा था। यह यान ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन यान (पोलर सेटलाईट लांच वेहिकल, पी एस एल वी) के एक संशोधित संस्करण वाले राकेट की सहायता से सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से प्रक्षेपित किया गया। इसे चन्द्रमा तक पहुँचने में 5 दिन लगे पर चन्द्रमा की कक्षा में स्थापित करने में 15 दिनों का समय लग गया। चंद्रयान-1 का उद्देश्य चंद्रमा की सतह के विस्तृत नक्शे और पानी के अंश और हीलियम की तलाश करना था। चंद्रयान-1 ने चंद्रमा से 100 किमी ऊपर 525 किग्रा का एक उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया। यह उपग्रह अपने रिमोट सेंसिंग (दूर संवेदी) उपकरणों के जरिये चंद्रमा की ऊपरी सतह के चित्र भेजे।
- चांद पर पानी खोजा निकाला
2009 में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने दावा किया कि चांद पर पानी भारत की खोज है। चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता चंद्रयान-1 पर मौजूद भारत के अपने मून इंपैक्ट प्रोब (एमआईपी) ने लगाया। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के उपकरण ने भी चांद पर पानी होने की पुष्टि की है। चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी का पता भारत के अपने एमआईपी ने लगाया है। चंद्रयान-1 के प्रक्षेपण के करीब एक पखवाड़े बाद भारत का एमआईपी यान से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर उतरा था। उसने चंद्रमा की सतह पर पानी के कणों की मौजूदगी के पुख्ता संकेत दिए थे। चंद्रयान ने चांद पर पानी की मौजूदगी का पता लगाकर इस सदी की महत्वपूर्ण खोज की है। इसरो के अनुसार चांद पर पानी समुद्र, झरने, तालाब या बूंदों के रूप में नहीं बल्कि खनिज और चंट्टानों की सतह पर मौजूद है। चंद्रमा पर पानी की मौजूदगी पूर्व में लगाए गए अनुमानों से कहीं ज्यादा है।
- चांद के दोनों ध्रुवों के अंधेरे वाले हिस्से के साथ कुल 70 हजार से ज्यादा तस्वीरे भेजीं
चंद्रयान-1 ने चंद्रमा के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव के अंधेरे वाले हिस्सों की 360 डिग्री वाली तस्वीरे लीं। विभिन्न तरीकों से ली गईं तस्वीरों के ही जरिए चंद्रमा के वातावरण, विकिरण और परिस्थितियों का आकलन किया। चंद्रयान ने 2008 से 2009 के बीच चांद के 3000 चक्कर लगाए। इस दौरान उसने 70 हजार से अधिक तस्वीरें भेजी।
- आज भी चांद का चक्कर लगा रहा है चंद्रयान-1
22 अक्टूबर 2008 को चंद्रयान-1 चांद के लिए रवाना किया गया। 8 नवंबर 2008 को चंद्रयान चांद की कक्षा में पहुंचा। इसके बाद उसने 29 अगस्त 2009 तक चांद से संबंधित सैकड़ों फोटोग्राफ और डाटा दिया। 29 अगस्त 2009 को ही 11 महीने बाद उसका इसरो से संपर्क टूट गया। लेकिन 10 मार्च 2017 को नासा के जेट प्रोप्लशन लेबोरेट्री (जेपीएल) ने कहा कि चंद्रमा के 160 किमी ऊपर कोई वस्तु चक्कर लगा रही है। इसरो ने जब पता किया तो पता चला कि चंद्रमा के चारों तरफ उनका अपना चंद्रयान-1 ही है।