लॉकडाउन की कड़वी हकीकत / मुंबई से गोरखपुर साइकिल पर निकल पड़े मजदूर, कहा - अब यही अंतिम विकल्प

By: Pinki Fri, 24 Apr 2020 1:21:29

लॉकडाउन की कड़वी हकीकत / मुंबई से गोरखपुर साइकिल पर निकल पड़े मजदूर, कहा - अब यही अंतिम विकल्प

कोरोना वायरस (Coronavirus in India) का संक्रमण और न फैले इसलिए पूरे देश में 3 मई तक लॉकडाउन (Coronavirus Lockdown) घोषित है। सब बंद है, सड़कों पर गाड़ियों से लेकर सरकारी बसों तक और बाजार से लेकर उद्योग धंधे तक। देश में लगे लॉकडाउन की वजह से केंद्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकार भी प्रवासी मजदूरों से विनती कर रही है कि वे जहां पर है वही रुके रहे। इन प्रवासी मजदूरों के लिए रहने-खाने के इंतजाम भी सरकार द्वारा किया जा रहा है। इन तमाम प्रयासों के बावजूद प्रवासियों के अपने गांव-घर लौटने का सिलसिला थम नहीं रहा। कोई साधन नहीं मिल रहा तो अब श्रमिक साइकिल पर सवार होकर ही अपने घर लौटने लगे हैं।

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राशन की समस्या के चलते उठाया ये कदम

हाल ही में ताजा मामला देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से 20 श्रमिकों का जत्था साइकिल से ही 1700 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के लिए रवाना हुआ। इन मजदूरों ने राशन की समस्या के कारण इस तरह का निर्णय लेने का दावा किया।

सरकार से मदद न मिलने का लगाया आरोप

श्रमिकों ने सरकार पर मदद न करने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनके पास अब पैसे बचे नहीं थे, वहां काम चल नहीं रहा था। ऐसे में बचे पैसों से साइकिल खरीदकर घर लौटने के सिवाय उनके पास कोई और रास्ता नहीं बचा था।

मजदूरों ने बयां किया दर्द

मजदूरों ने अपनी मजबूरी बयान करते हुए कहा कि यदि वे घर नहीं गए तो यहां भूख से मर जाएंगे। ठाणे में राजमिस्त्री का कार्य करने वाले पिंटू ने कहा कि हम सबने मिलकर साइकिल खरीदने का फैसला किया, जिससे अपने घर पहुंच सकें।

वहीं, अखिल प्रजापति ने कहा कि राशन बचा नहीं है, आमदनी हो नहीं रही। ऐसे में साइकिल से घर जाने के सिवाय कोई और रास्ता बचा नहीं था। उन्होंने मकान मालिक पर भी किराए के लिए दबाव बनाने का आरोप लगाया।

ठाणे से इस समूह में शामिल होने वाले गणेश प्रसाद ने बताया कि वे छत बनाने और तिरपाल शीट बिछाने का काम करते हैं। हमारे पास अब घर जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। इसलिए हमने 1700 किलोमीटर की दूरी राजमार्ग से साइकिल के जरिए तय करने का निर्णय लिया। सभी दुकानें बंद चल रही हैं, ऐसे में नई साइकिल कैसे खरीदी? इस सवाल पर प्रवासी श्रमिकों ने अधिक जानकारी देने से इनकार कर दिया। प्रवासी श्रमिकों ने कहा कि किसी को हमारी हालत पर दया आ गई। उसने हमें साइकिल खरीदने में मदद की, जिससे हम अपने प्रियजनों तक पहुंच सकें।

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रेलवे ट्रैक पर निकल पड़ा परिवार

ऐसा ही एक और मामला हैदराबाद से भी सामने आया है यहां फंसे मजदूर रेलवे की पटरियों के सहारे पैदल ही 800 किलोमीटर के सफर पर निकल गए हैं। 7 दिन तक पैदल चलने के बाद एक मजदूर परिवार महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले में पहुंचा तो उनका हाल बेहाल था। इन्हें अभी और 400 किलोमीटर चलकर अपने घर पहुंचना था। ये मजदूर परिवार एक छोटे बच्चे के साथ पैदल ही मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में अपने घर के लिए निकला है, जिसकी दूरी हैदराबाद से करीब 800 किलोमीटर है।

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गौरतलब है कि तक लॉकडाउन की वजह से प्रवासी मजदूर अपने छोटे-छोट बच्चों के साथ मुंबई-आगरा, मुंबई-अहमदाबाद राजमार्ग पर चिलचिलाती धूप और गर्मी के बावजूद साइकिल से, पैदल चलकर हजारों किलोमीटर दूर स्थित अपने घर तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं।

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