कोरोना वायरस / वे लोग जो शौच के बाद भी हाथ नहीं धोते

By: Priyanka Maheshwari Sat, 02 May 2020 4:44:30

कोरोना वायरस / वे लोग जो शौच के बाद भी हाथ नहीं धोते

दुनिया भर में कोरोना वायरस से अब तक 2 लाख, 32 हज़ार से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। साथ ही संक्रमण के मामले भी बढ़कर 32 लाख 56 हज़ार से ज़्यादा हो गए हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण के आँकड़ों की तुलना में मरने वालों की संख्या को देखा जाए तो ये बेहद कम हैं। हालांकि इन आंकड़ों पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता, लेकिन आंकड़ों की मानें तो संक्रमण होने पर मृत्यु की दर केवल एक से दो फ़ीसदी हो सकती है। कोरोना वायरस यानी 'कोविड 19' से बचने के लिए आप नियमित रूप से अपने हाथ साबुन और पानी से अच्छे से धोएं। मगर, आप ये जान कर हैरान रह जाएंगे कि दुनिया की आबादी का एक बड़ा हिस्सा नियमित रूप से हाथ साफ़ नहीं करता। यहां तक कि बहुत से लोग शौच के बाद भी हाथों को साबुन से नहीं धोते।

अमरीकी न्यूज़ चैनल फॉक्स न्यूज़ के एंकर पीट हेगसेथ अपने विवादों की वजह से ज़्यादा चर्चित रहे हैं। लेकिन, हेसगेथ ने पिछले साल ये कह कर हंगामा खड़ा कर दिया था कि, 'मुझे याद नहीं पड़ता कि पिछले दस सालों में मैंने कभी अपने हाथ धोए।' पीट हेसगेथ के इस बयान पर बहुत से लोगों ने नाक-भौं सिकोड़ी। किसी को घिन आई और बहुत से लोगों ने तो इस पर लेख भी लिख मारे कि एक दशक तक हाथ न धोने के बाद आपके हाथों में क्या क्या हो सकता है।

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लेकिन, ऐसा करने वाले पीट हेसगेथ अकेले सेलेब्रिटी नहीं। 2015 में अमरीकी अभिनेत्री जेनिफर लॉरेंस ने कह कर बवाल खड़ा कर दिया था कि वो बाथरूम जाने के बाद कभी भी अपने हाथ नहीं धोतीं। उसी साल, अमरीका की रिपब्लिकन पार्टी के उत्तरी कैरोलिना राज्य के एक सीनेटर ने कहा कि रेस्टोरेंट में काम करने वालों पर बार-बार हाथ धोने का दबाव बनाना नियमों का दुरुपयोग है।

हो सकता है कि दस साल तक हाथ न धोने वालों की तादाद कम ही हो। जो लोग शौच के बाद नियमित रूप से हाथ धोते हैं, उन्होंने देखा होगा कि उनके आस-पास बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जो शौच के बाद भी हाथ नहीं धोते। 2015 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया में क़रीब 26.2% लोग, मल त्याग के बाद साबुन से हाथ नहीं धोते।

लंदन स्कूल ऑफ़ हाइजीन ऐंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के विशेषज्ञ रॉबर्ट औंगर कहते हैं कि, 'शौच के बाद भी हाथ न धोना एक आम आदत है। आपको पता होना चाहिए कि हम लोग क़रीब पच्चीस बरस से लोगों को इसके लिए प्रेरित कर रहे हैं। लेकिन, अभी भी इस नियम का पालन करने वालों की तादाद बहुत कम है।'

लोगों के पास हाथ धोने की बुनियादी सुविधाएं नहीं

इसकी एक बड़ी वजह ये मानी जाती है कि दुनिया में बहुत से लोगों के पास हाथ धोने की बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं। जैसे कि साबुन और पानी। दुनिया के सबसे कम विकसित देशों में केवल 27 प्रतिशत लोगों के पास ये सुविधाएं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन और यूनिसेफ का अनुमान है कि दुनिया भर में क़रीब तीन अरब लोग ऐसे हैं, जिनके पास हाथ धोने के लिए साबुन और पानी की बुनियादी सुविधा नहीं है।

मगर, हाथ न धोने की गंदी आदत का ताल्लुक़ सिर्फ़ संसाधनों की उपलब्धता की कमी से नहीं है। जिन देशों में पानी और साबुन दोनों ही पर्याप्त से भी ज़्यादा मात्रा में उपलब्ध है। वहां भी आधे लोग ही टॉयलेट जाने के बाद उनका इस्तेमाल करते हैं।

ये आंकड़े तब और हैरान करते हैं, जब आपको ये पता चलता है कि मानवता के इतिहास में हाथ धोने की आदत का आविष्कार, इंसानों की जान बचाने का सबसे कारगर नुस्खा साबित हुआ है। आज दुनिया के कई देशों, जैसे कि ब्रिटेन में इंसानों की औसत उम्र अगर 80 बरस है। जबकि 1850 में ब्रिटेन के लोगों की औसत उम्र चालीस वर्ष हुआ करती थी। ये वही दौर था, जब हाथ धोने के फ़ायदों का सबसे पहले प्रचार शुरू हुआ था।

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नियमित हाथों को साफ़ करने से बिमारियों का खतरा कम

2006 में हुए एक अध्ययन के अनुसार, अगर आप नियमित रूप से अपने हाथों को अच्छे से साफ़ करते हैं, तो इससे आपको सांस की बीमारियां होने की आशंका 44% से घट कर केवल 6 फ़ीसद रह जाती है। कोविड-19 की महामारी के प्रकोप के बाद वैज्ञानिकों ने पाया है कि जिन देशों में हाथों को नियमित रूप से धोने की संस्कृति है, वहां पर इसका संक्रमण कम हुआ है।

आख़िर क्या कारण है कि हम में से कई लोग ऐसे हैं, जो हाथ साफ़ करने को लेकर इतने सजग रहते हैं कि इसके लिए ऊंची क़ीमत पर भी सैनिटाइज़र ख़रीदने का हौसला रखते हैं। वहीं, बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्हें साबुन से हाथ धोने तक में परेशानी है।

अति आत्मविश्वास हाथ न धोने की वजह

हाथ न धोने की आदत के पीछे एक वजह, लोगों का अति आत्मविश्वास भी होता है। बहुत से लोगों को ये लगता है कि उन्हें तो कुछ नहीं होगा। वो बीमार नहीं होंगे। संक्रमित नहीं होंगे। यहां तक कि मैना और चूहों में भी जोखिम लेने का अति आत्मविश्वास देखा गया है। इसी भरोसे की वजह से ही लोग धूम्रपान करते रहते हैं। या फिर क्रेडिट कार्ड से जम कर ख़रीदारी करते जाते हैं। 2009 में जब स्वाइन फ्लू का प्रकोप हुआ था, तो बहुत से बड़े विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों पर हुए एक सर्वे में पता चला कि उन छात्रों को ये भरोसा था कि उन्हें ये बीमारी नहीं होगी। इसीलिए वो हाथ नहीं धोते थे।

कोरोना के डर से लोग साफ़ सफाई रख रहे है ध्यान


कोरोना वायरस का प्रकोप फैलने के बाद, पिछले कुछ हफ़्तों में दुनिया भर में सफ़ाई को लेकर एक नई मुहीम चालू हो गई है। लोगों को हाथ धोने को लेकर जागरूक किया जा रहा हैं। इनमें सेलेब्रिटी से लेकर सरकारी और निजी संगठन तक शामिल रहे हैं। इंटरनेट पर ऐसे वीडियो और मीम की भरमार है। इसके बाद लोगों में हाथ धोने को लेकर जागरूकता बढ़ी है। लेकिन, ये कब तक क़ायम रहेगी। कहना मुश्किल है। रॉबर्टर औंगर कहते हैं कि, 'अभी तो लोग कोरोना वायरस के डर से साफ़ सफ़ाई रख रहे हैं। लेकिन, वो ऐसा कब तक करते रहेंगे, ये कह पाना मुश्किल है।' केवल समय ही ये बताएगा कि हम हाथों को नियमित रूप से धोने की इस आदत को आगे भी बनाए रखेंगे। लेकिन, अब कम से कम कोई सेलेब्रिटी इस बात का शोर तो नहीं मचाएगा कि वो हाथ नहीं धोता।

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