कोविड-19 से ठीक हुए मरीजों की जांच में खुलासा, युवाओं से ज्यादा बुजुर्गों में 'एंटीबॉडी'
By: Ankur Fri, 17 Apr 2020 12:00:42
कोरोना महामारी के संक्रमण के मामले जिस तरह बढ़ रहे हैं, उसी तरह लोग इस बीमारी को हराकर ठीक भी हो रहे हैं। ऐसे में कोरोना पर लगातार कई रिसर्च की जा रही हैं ताकि इसके बारे में ज्यादा जानकारी हासिल की जा सकें। ऐसे में आज हम आपको एक रिसर्च से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं जो कि कोविड-19 से ठीक हुए मरीजों से जुड़ी हैं। इसके अनुसार कोरोना से ठीक हुए बुजुर्गों में युवाओं के मुकाबले वायरस निष्क्रिय करने वाली एंटीबॉडी ज्यादा तादाद में हैं। चीन के शंघाई में एक अस्पताल से फरवरी में डिस्चार्ज हुए हल्के संक्रमण वाले 175 लोगों की जांच में यह परिणाम सामने आया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अधेड़ उम्र से लेकर बुजुर्ग मरीजों के प्लाज्मा में न्यूट्रलाइजिंग और स्पाइक-बाइंडिंग एंटीबॉडी का स्तर तुलनात्मक रूप से ज्यादा था। 30 फीसदी युवाओं में तो उम्मीद के उलट एंटीबॉडी का स्तर मानक से कम पाया गया। दस में तो इनका स्तर इतना कम था कि यह पकड़ में ही नहीं आ पाईं। वहीं, सिर्फ दो मरीजों में एंटीबॉडी का स्तर अत्यधिक था।
संक्रमण के स्तर का नहीं लग पाया पता
वैज्ञानिकों को मरीजों के नमूनों से वायरल डीएनए का पता न लग पाने के कारण इनमें संक्रमण के स्तर की सही जानकारी नहीं मिल पाई। इसलिए यह बात भी स्पष्ट नहीं हो पाई कि क्या युवाओं में हल्के संक्रमण के कारण ही एंटीबॉडी कम बनी थीं।
ठीक होने में समान अवधि
शोध में हुए कई खुलासे से वैज्ञानिक भी चकित हैं। दरअसल, अधिक एंटीबॉडी होने के बाद भी बुजुर्ग जल्दी ठीक नहीं हो पाए। यानी बुजुर्ग और युवा मरीजों को ठीक होने में एक समान समय लगा। ठीक हुए इन लोगों की बीमारी की औसत अवधि 21 दिन, अस्पताल में भर्ती रहने का औसत समय 16 दिन और औसत आयु 50 साल थी।
बुजुर्गों में भी हो सकती है मजबूत प्रतिरक्षा
वैज्ञानिकों का कहना है कि बुजुर्गों में एंटीबॉडी का अधिक स्तर उनके मजबूत प्रतिरक्षा तंत्र के कारण भी हो सकता है। हालांकि, सिर्फ मजबूत एंटीबॉडी के कारण ही उनमें गंभीर संक्रमण से बचाव के पुख्ता प्रमाण नहीं मिले हैं क्योंकि दुनियाभर में तो यही पाया गया है कि कोरोना के प्रति बुजुर्ग ज्यादा कमजोर हैं।
दोबारा संक्रमित होने पर गहन शोध की दरकार
शोधकर्ताओं ने मरीजों में संक्रमण के 10-15 दिन में ही कोरोना वायरस के लिए बनने वाली न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी ढूंढ ली थी, जिनका स्तर बाद तक भी स्थिर ही रहा। युवा मरीजों में कम एंटीबॉडी के चलते उनके दोबारा संक्रमित होने की आशंका पर शोधकर्ताओं ने गहन अध्ययन की जरूरत बताई है।