सभी मनोकामनाएं पूर्ण करता हैं योगिनी एकादशी व्रत, जानें पौराणिक कथा और पूजाविधि

By: Ankur Mundra Wed, 17 June 2020 10:44:31

सभी मनोकामनाएं पूर्ण करता हैं योगिनी एकादशी व्रत, जानें पौराणिक कथा और पूजाविधि

हिन्दू धर्म में एकादशी का बहुत महत्व माना जाता हैं जो कि हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष में आती हैं। आज 17 जून, 2020 को आषाढ़ मास के कृष्‍ण पक्ष की एकादशी हैं जिसे योगिनी एकादशी के रूप में जाना जाता हैं। इस व्रत से व्यक्ति के पापों का नाश होता हैं और सभी मनोकामनाओं की पूर्ती होती हैं। माना जाता है कि इस व्रत को करने से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर पुण्‍य मिलता है। आज इस कड़ी में हम आपको योगिनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा और पूजाविधि से जुड़ी जानकारी देने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

पौराणिक कथा

पद्मपुराण में योगिनी एकादशी की कथा इस प्रकार बताई गई है। धनाध्यक्ष कुबेर भगवान शिव के परम भक्त थे। हर दिन भगवान शिव की पूजा के लिए इन्होंने हेम नाम के माली को पुष्प चुनकर लाने का काम सौंपा था। एक दिन काम के वशीभूत होकर हेम अपनी पत्नी संग विहार करने लगता है और पुष्प समय से नहीं पहुंचा पाता। इससे क्रोधित होकर कुबेर महाराज सैनिकों को हेम माली के घर भेजते हैं।

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सैनिक लौटकर कुबेर को बताते हैं कि काम पीड़ित होकर हेम ने सेवा के नियमों का पालन नहीं किया तो कुबेर का क्रोध और बढ़ गया। राजा कुबेर ने हेम को शाप दिया कि वह कुष्ट रोग से पीड़ि‍त होकर पत्नी संग धरती पर चला जाए। कुबेर के शाप से हेम को अलकापुरी से पृथ्वी पर आना पड़ा। यहां एक बार ऋषि मार्कण्डेय ने हेम के दुख का कारण जानकर योगिनी एकादशी का व्रत करने की सलाह दी। इस व्रत से हेम शाप मुक्त हो गया और पत्नी के संग सुखपूर्वक रहने लगा।

व्रत की पूजाविधि

योगिनी एकादशी के दिन सुबह घर की साफ-सफाई करके स्‍नान करके स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें। उसके बाद भगवान श्रीहरि की मूर्ति स्‍थापित करें। फिर प्रभु को फूल, अक्षत, नारियल और तुलसी पत्ता अर्पित करें। फिर पीपल के पेड़ की भी पूजा करें। योगिनी एकादशी व्रत की कथा सुनें और अगले दिन परायण कर लें।

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इस मंत्र का करें जप

मम सकल पापक्षयपूर्वक कुष्ठादिरोग।
निवृत्तिकामनया योगिन्येकादशीव्रतमहं करिष्ये।।

सबसे पहले भगवान विष्‍णु को पंचामृत से स्‍नान कराएं। साथ में भगवान विष्‍णु के मंत्र का भी जप करते रहें। उसके बाद चरणामृत को व्रती अपने और परिवार के सदस्‍यों पर छिड़कें और उसे पिएं। मान्‍यता है कि इससे शरीर के रोग दूर होते हैं और पीड़ा खत्‍म होती है।

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