रसोईघर में रखे बर्तन भी डालते है आपके जीवन पर प्रभाव, जानें इनसे जुड़े वास्तु टिप्स के बारे में
By: Ankur Mon, 04 Feb 2019 1:24:38
व्यक्ति के जीवन में वास्तु का बड़ा योगदान माना जाता है। क्योंकि वास्तु में उपस्थित दोष व्यक्ति के जीवन पर बुरा प्रभाव डालती है और सही वास्तु उसे सफलता दिलाने में मदद करती हैं। लेकिन क्या आप जानते है कि रसोईघर में रखे बर्तन भी व्यक्ति के जीवन में आने वाली बाधाओं का कारण बन सकते हैं। जी हाँ, आज हम आपको इन बर्तनों से जुड़े वास्तु टिप्स के बारे में बताने जा रहे हैं। ताकि आप इनमें उपस्थित वास्तु दोषों को दूर कर, अपने जीवन को चिंतामुक्त कर सकें। तो आइये जानते है बर्तनों से जुड़े इन वास्तु टिप्स के बारे में।
* जल रखने हेतु तांबे के बर्तनों का ही उपयोग करें, क्योंकि जल सर्वसमावेशक स्तर पर कार्य करता है। इसलिए तांबे का सत्त्व-रजोगुण जल में संक्रमित होता है।
* पीतल रजोगुणवर्धक है, इसलिए पीतल के बर्तन में अन्न पकाना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। इसलिए पूर्वकाल में रसोईघर में तथा पूजा के उपकरणों में भी तांबे-पीतल के बर्तनों का सर्वाधिक समावेश दिखाई देता था।
* आपको जानकर हैरानी होगी कि जिस एल्युमीनियम के बर्तन को हर रसोईघर में इस्तेमाल किया जाता है, वह सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रभाव डालता है। ऐसा कहा जाता है कि एल्युमीनियम धातु पर राहू का प्रभाव है। एल्यूमीनियम के बर्तनों में कभी दूध नहीं रखना चाहिए। क्योंकि चंद्रमा का ठंडा अमृत तुल्य प्रभाव एल्यूमीनियम के बर्तन की वजह से नष्ट हो जाता है। एल्युमीनियम के बर्तन में दाल या कोई भी पिली चीज पकानें से बृहस्पति की स्थिति कमजोर होनें लगती है। ऐसा होनें पर व्यक्ति को सामाजिक और आर्थिक रूप से नुकसान का सामना करना पड़ता है।
* मिट्टी प्राकृतिक होने के कारण उसमें ईश्वरीय घटक अधिक होते हैं। उसी प्रकार मिट्टी द्वारा उनका ग्रहण एवं प्रक्षेपण भी होता है; इसलिए मिट्टी से बने बर्तन में वातावरण में विद्यमान ईश्वरीय तरंगें ग्रहण होने के साथ-साथ घनीभूत भी होती हैं। इससे मिट्टी के बर्तन में रखे और पकाए गए अन्न में उस बर्तन में विद्यमान ईश्वरीय तत्त्व संक्रमित होता है।
* स्टील में कुछ मात्रा में लोहे जैसी अशुद्ध धातु होने के कारण इस प्रकार के बर्तन में पकाया अन्न देह में रज-तम का संक्रमण करता है। इसलिए अन्न पकाने हेतु इसके प्रयोग से देह को अन्न के पोषक घटकों का लाभ नहीं, हानि ही होती है तथा देह की प्रतिकारशक्ति घट जाती है। इससे देह पर वायुमंडल से विविध रोगों के आक्रमण होते हैं एवं ऐसे अन्न के कारण अनिष्ट शक्तियों को देह में हस्तक्षेप करने के लिए अवसर मिल जाता है।