विभिन्न प्रकार के होते हैं श्राद्ध, जानें इससे जुड़ी जानकारी और नियम

By: Ankur Mundra Wed, 09 Sept 2020 07:31:35

विभिन्न प्रकार के होते हैं श्राद्ध, जानें इससे जुड़ी जानकारी और नियम

हिन्दू धर्म में श्राद्ध का बड़ा महत्व माना जाता हैं और इसका उल्लेख पुराणों में भी मिलता हैं। पुराणों में श्राद्ध के कई प्रकार भी उल्लेखित किए गए हैं। यमस्मृति में पांच प्रकार, भविष्य पुराण में बारह प्रकार और मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध उल्लेखित हैं। ऐसे में आज हम आपके लिए श्राद्ध के विभिन्न प्रकार लेकर आए हैं जिसमें इन उल्लेखित प्रकारों को समाहित किया गया हैं। तो आइये जानते हैं श्राद्ध के इन प्रकारों के बारे में।

नित्य

प्रतिदिन किए जाने वाले श्राद्ध को नित्य-श्राद्ध कहते हैं।

नैमित्तिक

जो श्राद्ध किसी एक व्यक्ति के निमित्त किया जाता है उसे नैमित्तिक-श्राद्ध कहते हैं। शास्त्रों में इसका उल्लेख एकोद्दिष्ट-श्राद्ध के नाम से भी मिलता है।

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काम्य

जो श्राद्ध किसी विशेष आकांक्षा या कामना की पूर्ति हेतु किया जाता है वह काम्य-श्राद्ध कहलाता है।

वृद्धि-श्राद्ध

किसी मांगलिक अवसर अथवा शुभ अवसर पर किए जाने वाला श्राद्ध वृद्धि-श्राद्ध कहलाता है।

पार्वण श्राद्ध

अमावस्या, पितृ पक्ष या तिथि पर किया जाने वाला श्राद्ध पार्वण-श्राद्ध कहलाता है। यह श्राद्ध माता-पिता दोनों की तीन-तीन पीढ़ियों के व्यक्तियों अथवा निकट के संबंधियों के निमित्त पिंड दान आदि द्वारा किया जाता है।

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श्राद्ध में इन नियमों का करें पालन

- पितरों के निमित्त सारी क्रियाएं गले में दाएं कंधे मे जनेउ डाल कर और दक्षिण की ओर मुख करके की जाती है।
- श्राद्ध का समय हमेशा जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लग जाए तब उचित होता है, अर्थात दोपहर के बाद ही शास्त्र सम्मत है। सुबह-सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है। ऐसे में पितर नाराज हो सकते हैं।
- श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर की रसोई में बनना चाहिए।
- उड़द की दाल, बडे, चावल, दूध, घी से बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जैसे तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी कच्चे केले की सब्जी ही भोजन में मान्य है।
- आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों को नहीं चढ़ती है।
- श्राद्ध के नाम पर सुबह-सुबह हलवा- पूरी बनाकर मन्दिर में और पंडित को देने से श्राद्ध का फर्ज पूरा नहीं होता है। ऐसे श्राद्धकर्ता को उसके पितृगण कोसते हैं क्योंकि उस थाली को पंडित भी नहीं खाता है बल्कि कूड़ेदान में फेंक देता है। जहां सूअर, आवारा कुत्ते आदि उसे खाते हैं।

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