पितरों के अलावा पितृपक्ष में करें इनका पूजन और कराएं भोजन, मिलेगा पूर्वजों का आशीर्वाद
By: Ankur Fri, 11 Sept 2020 06:58:41
पितृपक्ष में पितरों की संतृप्ति के लिए पिंडदान या तर्पण किया जाता हैं और उनका आशीर्वाद भी लिया जाता हैं। इन दिनों में पितरों का पूजन तो किया ही जाता हैं लेकिन इसी के साथ कई अन्य हैं जिनका पूजन करने और उन्हें भोजन कराने से भी पूर्वज प्रसन्न होता हैं और उनका आशीर्वाद मिलता हैं। शास्त्रों के अनुसार कुछ पितर तो चंद्रलोक में जाते हैं और कुछ जल के देवता वरुणदेव के आश्रय में। मान्यता है कि पशु-पक्षी भी इसी लोक में निवास करते हैं। वहीं कुछ वनस्पति में देवता विराजित होते हैं। इसके चलते पितृपक्ष में पशु-पक्षी और वनस्पति, यानी पेड़-पौधों की पूजा का भी विधान है। इनकी पूजा का फल सीधे पितरों को मिलता है।
पितृपक्ष में इनकी पूजा से प्रसन्न होंगे पितर
पितृपक्ष में कुछ विशेष पौधों की पूजा करने का विधान हैं। इन्हें पितर समान ही माना गया है। मान्यता है कि पितृपक्ष में पीपल की पूजा जरूर करनी चाहिए। इसमें श्रीहरि का निवास होता है। इसके अलावा इसे वृक्ष रूप में पितृदेव माना गया है। पितृपक्ष में बरगद के वृक्ष की भी पूजा करनी चाहिए। इसमें साक्षात शिव निवास करते हैं। अगर ऐसा लगता है कि पितरों की मुक्ति नहीं हुई है तो बरगद के नीचे बैठकर शिव जी की पूजा करनी चाहिए। इससे लाभ ही लाभ होता है।
इन पक्षियों में मानते हैं पितरों का वास
पितृपक्ष में पेड़-पौधों की पूजा के साथ ही पक्षियों को भी भोजन कराने के बारे में बताया गया है। इसमें सबसे पहले नाम आता है कौए का। मान्यता है कि क्षमतावान आत्माएं कौए की शरीर में प्रवेश करने का दम रखती हैं और वह पितृपक्ष में जब धरती पर आती हैं तो इसी रूप में विचरण करती हैं। इसलिए कौवे को पितृ समान माना गया है और इन्हें पितृपक्ष में भोजन कराया जाता है। कहते हैं कि ऐसा करने से भोजन सीधे पितरों को प्राप्त होता है। कौए के अलावा पितृपक्ष में देव आत्माएं हमेशा हंस में अपना आश्रय लेती हैं। जो आत्माएं अपने पूर्व जन्म में पुण्यकर्म करती हैं वहीं देव आत्माएं हंस बनती हैं। इसलिए हंसों को देवता समान माना गया है। मान्यता है कि पितृपक्ष में इन्हें भोजन कराने से पितर प्रसन्न होते हैं।
इन पशुओं को भोजन कराने से भी होते हैं लाभ
पितृपक्ष में कुत्ता, गाय और हाथी को भोजन कराने से भी पितर प्रसन्न होते हैं। मान्यता है कि कुत्ते यम के दूत होते हैं। कुत्ते मनुष्य की रक्षा भी करते हैं और आने वाले संकट को वह अपने ऊपर ले लेते हैं। इसलिए उन्हें पितरों के समान माना गया है। इसके अलावा पितृपक्ष में गाय की पूजा का भी विशेष विधान है। गाय में लाखों योनियों का वह पड़ाव है, जहां आत्मा विश्राम करके फिर से एक बार मनुष्य योनी में प्रवेश के लिए यात्रा शुरू करती है। पितृपक्ष में कुत्ते और गाय के अलावा हाथी को भी भोजन कराना चाहिए। हाथी गणेशजी का रूप माने गए हैं। साथ ही ये इंद्र का वाहन भी हैं। इसके अलावा हाथी को पूर्वजों का भी प्रतीक माना गया है। इसलिए पितृपक्ष में इन्हें भोजन कराने से पितरों की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
इन पौधों की पूजा से भी पितर होते हैं प्रसन्न
पीपल और बरगद के अलावा पितृपक्ष में बेल की भी पूजा करनी चाहिए। मान्यता है कि अगर पितृपक्ष में बेल का पौधा लगाया जाए तो इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। अमावस्या के दिन शिवजी को बेल पत्र और गंगाजल अर्पित करने से पितरों को मुक्ति मिलती है। पितृपक्ष में तुलसी, शमी, अशोक, और शमी का पौधा लगाना चाहिए। अगर पहले से ही ये पौधे लगा रखें हों तो इनकी नियमित रूप से पूजा करें। ताकि आपको पितरों का आशीर्वाद मिल सके।
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