षटतिला एकादशी करवाती है मोक्ष की प्राप्ति, जानें इसकी पौराणिक व्रत कथा

By: Ankur Mon, 20 Jan 2020 07:20:57

षटतिला एकादशी करवाती है मोक्ष की प्राप्ति, जानें इसकी पौराणिक व्रत कथा

आज माघ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि हैं जिसे षटतिला एकादशी के रूप में जाना जाता हैं। आज के दिन किए गए व्रत का बहुत अधिक महत्व माना गया हैं जो कि दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर कर मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। आज के दिन व्रत और लोभ न करके तिलादि का दान करना चाहिए जिससे इसका अधिक लाभ मिलता हैं। आज हम आपको इस व्रत की पौराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं जो इसके महत्व को दर्शाती हैं। एक समय नारद जी ने भगवान श्री विष्णु से षटतिला एकादशी कथा के संबंध में प्रश्न किया था और भगवान ने जो षटतिला एकादशी का माहात्म्य नारदजी से कहा, वह सुनिए।

प्राचीन काल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत किया करती थी। एक समय वह एक मास तक व्रत करती रही। इससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया। यद्यपि वह अत्यंत बुद्धिमान थी तथापि उसने कभी देवताओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान नहीं किया था। इससे मैंने सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है, अब इसे विष्णुलोक तो मिल ही जाएगा परंतु इसने कभी अन्न का दान नहीं किया, इससे इसकी तृप्ति होना कठिन है।

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भगवान ने आगे कहा- ऐसा सोचकर मैं भिखारी के वेश में मृत्युलोक में उस ब्राह्मणी के पास गया और उससे भिक्षा मांगी। वह ब्राह्मणी बोली- महाराज किसलिए आए हो? मैंने कहा- मुझे भिक्षा चाहिए। इस पर उसने एक मिट्टी का ढेला मेरे भिक्षापात्र में डाल दिया। मैं उसे लेकर स्वर्ग में लौट आया। कुछ समय बाद ब्राह्मणी भी शरीर त्याग कर स्वर्ग में आ गई। उस ब्राह्मणी को मिट्टी का दान करने से स्वर्ग में सुंदर महल मिला, परंतु उसने अपने घर को अन्नादि सब सामग्रियों से शून्य पाया। घबरा कर वह मेरे पास आई और कहने लगी कि भगवन् मैंने अनेक व्रत आदि से आपकी पूजा की, परंतु फिर भी मेरा घर अन्नादि सब वस्तुओं से शून्य है। इसका क्या कारण है?

इस पर मैंने कहा- पहले तुम अपने घर जाओ। देवस्त्रियां आएंगी तुम्हें देखने के लिए। पहले उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुन लो, तब द्वार खोलना। मेरे ऐसे वचन सुनकर वह अपने घर गई। जब देवस्त्रियां आईं और द्वार खोलने को कहा तो ब्राह्मणी बोली- आप मुझे देखने आई हैं तो षटतिला एकादशी का माहात्म्य मुझसे कहो।

उनमें से एक देवस्त्री कहने लगी कि मैं कहती हूं। जब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना तब द्वार खोल दिया। देवांगनाओं ने उसको देखा कि न तो वह गांधर्वी है और न आसुरी है वरन पहले जैसी मानुषी है। उस ब्राह्मणी ने उनके कथनानुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया।

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