शास्त्रों के इन नियमों के पालन से बनी रहेगी घर में बरकत

By: Ankur Thu, 09 Apr 2020 06:25:24

शास्त्रों के इन नियमों के पालन से बनी रहेगी घर में बरकत

हर व्यक्ति अपने जीवन में बरकत की कामना करता हैं। बरकत अर्थात अपनी जरूरतें पूर्ण होने के बाद भी किसी और की मदद की जा सकें। यह मुख्य रूप से धन और अन्न से जुड़ा हैं जिनकी मनुष्य को ज्यादा जरूरत पड़ती हैं। शास्त्रों में ऐसे कई नियम बताए गए हैं जिनका पालन आपके घर में बरकत बनाए रखें। इन नियमों की मदद से धन इतना हो कि आवश्यकताओं की पूर्ति के बावजूद आप किसी कि मदद कर सके और मां अन्नपूर्णा की कृपा सदा बनी रहें। तो आइये जानते हैं इन नियमों के बारे में।

क्रोध-कलह से बचें

घर में क्रोध, कलह और रोना-धोना आर्थिक समृद्धि व ऐश्वर्य का नाश कर देता है। इसलिए घर में कलह-क्लेश पैदा न होने दें। आपस में प्रेम और प्यार बनाएं रखने के लिए एक दूसरे की भावनाओं को समझें और परिवार के लोगों को सुनने और समझने की क्षमता बढ़ाएं। अपने विचारों के अनुसार घर चलाने का प्रयास न करें। सभी के विचारों का सम्मान करें। घर की स्त्री का सम्मान करें।

घर की सफाई

कभी भी ब्रह्ममुहूर्त या संध्याकाल को झाड़ू नहीं लगाना चाहिए। झाड़ूं को ऐसी जगह रखें जहां किसी अतिथि की नजर न पहुंचे। झाड़ू को पलंग के नीचे न रखें। घर को साफ सुधरा और सुंदर बनाकर रखें। घर के चारों कोने साफ हों, खासकर ईशान, उत्तर और वायव कोण को हमेशा खाली और साफ रखें।

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टपकता नल ठीक करवाएं

नल से पानी का टपकना आर्थिक क्षति का संकेत है। टपकते नल को जल्द से जल्द ठीक करवाएं। घर में किसी भी बर्तन से पानी रिस रहा हो तो उसे भी ठीक करवाएं। छत पर रखी पानी की टंकी से पानी बहता हो तो उसे भी ठीक करवाएं।

भोजन के नियम

भोजन करने के बाद थाली में ही हाथ न थोएं। थाली में कभी जूठन न छोड़े। भोजन करने के बाद थाली को कभी, किचन स्टेन, पलंग या टेबल के नीचे न रखें। उपर भी न रखें। रात्रि में भोजन के जूठे बर्तन घर में न रखें। रात में चावल, दही और सत्तू का सेवन करने से लक्ष्मी का निरादर होता है।

अग्निहोत्र कर्म करें

जिस तरह हम जरूतमंदों को अन्न जल देते है उसी तरह हमने जिस अग्नि और जल के माध्यम से यह अन्य बनाया है तो उसे भी अर्पित करें। इसे अग्निहोत्र कर्म कहते हैं। अग्निहोत्र कर्म दो तरह से होता है पहला यह कि हम जब भी भोजन खाएं उससे पहले उसे अग्नि को अर्पित करें। दूसरा तरीका है यज्ञ की वेदी बनाकर हवन किया जाता है।

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दान दें

प्रकृति का यह नियम है कि आप जितना देते हैं वह उसे दोगुना करके लौटा देती है। गरीब, जरूतमंद, पशु, पक्षी, अपंग, महिला, विद्यार्थी, संन्यासी, चिकित्सक और धर्म के रक्षक आदि को अन्न जल दें। इसे अतिथि यज्ञ कहते हैं, जिससे अन्य धन की प्रचूरता बनी रहती है। कर मदद तो मिलेगी मदद।

इन कर्मों से बचें

कहते हैं कि जहां मदिरा सेवन, स्त्री अपमान, तामसिक भोजन और अनैतिक कृत्यों को महत्व दिया जाता है उनका धन दवाखाने, जेलखाने और पागलखाने में ही खर्च होता रहता है। झूठ बोलते रहने से बरकत जाती रहती है। दक्षिण दिशा में पैर करके न सोएं इसे शहर कमजोर होगा।

संधिकाल में मौन रहें

संधिकाल में अनिष्ट शक्तियां प्रबल होने के कारण इस काल में निम्नलिखित बातें निषिद्ध बताई गई हैं- सोना, खाना, पीना, गालियां देना, झगड़े करना, अभद्र एवं असत्य बोलना, क्रोध करना, शाप देना, यात्रा के लिए निकलना, शपथ लेना, धन लेना या देना, रोना, वेद मंत्रों का पाठ, शुभ कार्य करना, चौखट पर खड़े होना।

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