Chhath Puja 2020 Katha: छठ व्रत के प्रभाव से पांडवों को मिला जुए में हारा राजपाट, पढ़ें कथा

By: Priyanka Maheshwari Fri, 20 Nov 2020 09:49:45

Chhath Puja 2020 Katha: छठ व्रत के प्रभाव से पांडवों को मिला जुए में हारा राजपाट, पढ़ें कथा

छठ महापर्व (Chhath Mahaparva) का आज शुक्रवार को तीसरा दिन है। इसी क्रम में आज अस्ताचलगामी सूर्य को महापर्व का पहला अर्घ्य (First Arghya to Sun) अर्पित किया जाएगा। शनिवार सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य के साथ ही सूर्योपासना के इस महापर्व का समापन होगा। भक्त आज शाम को सूर्यदेव को पहला अर्घ्य 'संध्या अर्घ्य ' देंगे। इसके बाद विधिवत तरीके से पूजा अर्चना की जाती है। इसके बाद कथा का पाठ किया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सूर्य षष्ठी यानी कि छठ पूजा के तीसरे दिन शाम के वक्त सूर्यदेव अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं। इसीलिए संध्या अर्घ्य देने से प्रत्यूषा को अर्घ्य प्राप्त होता है। प्रत्यूषा को अर्घ्य देने से लाभ मिलता है। आइए जानते हैं छठ व्रत की पौराणिक कथा...

छठ व्रत की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय की बात है जब एक नगर में प्रियव्रत नाम के राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं।

नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ। संतान शोक में वह आत्म हत्या का मन बना लिया। लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं।

देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्टी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं। यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी। देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया।

राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्टी तिथि के दिन देवी षष्टी की पूरे विधि-विधान से पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा। छठ व्रत के संदर्भ में एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।

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कठिन तपस्या से कम नहीं है यह महापर्व

आपको बता दे, छठ पूजा के पावन पर्व पर भगवान सूर्यदेव को प्रथम अर्घ्य शुक्रवार की शाम 5:17 बजे दिया जाएगा। वहीं अरुणोदयकालीन अ‌र्घ्य शनिवार की सुबह 6:32 बजे दिया जाएगा। आज के दिन प्रसाद तैयार करने के बाद शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अ‌र्घ्य का सूप खूबसूरती के साथ सजाया जाता है। व्रती के साथ-साथ परिवार व पड़ोस के लोग भी अस्ताचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य देने के लिए घाट पर जाते हैं। सभी छठव्रती एक तय तालाब या नदी के किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से भगवान भास्कर को अ‌र्घ्य देकर दान करते हैं।

सूर्य उपासना का यह महापर्व कठिन तपस्या से कम नहीं है। अधिकतर महिलाएं ही यह व्रत रखती हैं। कुछ पुरुष भी व्रत करते हैं। 36 घंटे तक निर्जला व्रत करने वाली महिलाओं को परवैतिन भी कहा जाता है। इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना पड़ता है। भोजन के साथ साथ आरामदेह बिछावन का भी त्याग करना पड़ता है। फर्श पर एक चादर या कंबल बिछाकर रात काटनी होती है। बता दें कि छठ पर्व के दूसरे दिन यानी गुरुवार को जलार्पण के बाद छठव्रतियों ने गंगा घाटों पर रोटी व खीर से खरना का प्रसाद बना विधि-विधान से पूजा-अर्चना की।

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