Bhai Dooj 2018: आखिर क्यों मनाई जाती है भाई दूज, जानिए तिलक का शुभ मुहूर्त, कथा और महत्‍व

By: Pinki Fri, 09 Nov 2018 08:29:38

Bhai Dooj 2018: आखिर क्यों मनाई जाती है भाई दूज, जानिए तिलक का शुभ मुहूर्त, कथा और महत्‍व

हिन्‍दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक शुक्‍ल पक्ष की द्वितीया को भैया दूज ( Bhai Dooj 2018 ) का त्‍योहार मनाया जाता है। यानी कि दीपावली के दो दिन बाद भैया दूज आता है। इस बार भाई दूज या यम द्व‍ितीया 9 नंबर को है। भाई दूज का त्यौहार रक्षाबंधन की तरह ही पावन माना जाता है। इस दिन हर बहन अपने भाई के तिलक लगाती हैं और उसकी अच्छे भविष्य की कामना करती हैं। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने भाइयों को घर पर आमंत्रित कर उन्‍हें तिलक लगाकर भोजन कराती हैं। वहीं, एक ही घर में रहने वाले भाई-बहन इस दिन साथ बैठकर खाना खाते हैं। यह त्यौहार भाई-बहन के रिश्ते की मजबूती और प्यार को दर्शाता हैं। इस रिश्ते में कई रिश्ते होते हैं जिसमें दोस्ती, ममता जैसी कई चीजें शामिल होती हैं। यह रिश्ता छेड़ना-चिढ़ाना, नोक-झोंक और रूठने-मनाने का रिश्ता हैं। मान्‍यता है कि भाई दूज के दिन अगर भाई-बहन यमुना किनारे बैठकर साथ में भोजन करें तो यह अत्‍यंत मंगलकारी और कल्‍याणकारी होता है। दीपावली (Deepawali or Diwali) के दो दिन बाद आने वाले इस त्‍योहार को यम द्वितीया (Yam Dwitiya) भी कहा जाता है। इस दिन मृत्‍यु के देवता यम की पूजा (Yam Puja) का भी विधान है।

भाई दूज की तिथि और शुभ मुहूर्त

द्वितीया तिथि प्रारंभ: 08 नवंबर 2018 को रात 09 बजकर 07 मिनट से।
द्वितीया तिथि समाप्‍त: 09 नवंबर 2018 को रात 09 बजकर 20 मिनट तक।
भाई दूज तिलक का मुहूर्त: 09 नवंबर 2019 को दोपहर 01 बजकर 16 मिनट से 03 बजकर 28 मिनट तक।

भैया दूज का महत्‍व

हिन्‍दू धर्म में भैया दूज का विशेष महत्‍व है। इस पर्व को 'यम द्वितीया' और 'भ्रातृ द्वितीया' भी कहा जाता है। रक्षाबंधन के बाद भैया दूज दूसरा ऐसा त्‍योहार है जिसे भाई-बहन बेहद उत्‍साह के साथ मनाते हैं। जहां, रक्षाबंधन में भाई अपनी बहन को सदैव उसकी रक्षा करने का वचन देते हैं वहीं भाई दूज के मौके पर बहन अपने भाई की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करती है। कई जगहों पर इस दिन बहनें अपने भाइयों को तेल लगाकर उन्‍हें स्‍नान भी कराती हैं। यमुना नदी में स्‍नान कराना अत्‍यंत शुभ माना जाता है। अगर यमुना में स्‍नान संभव न हो तो भैया दूज के दिन भाई को अपनी बहन के घर नहाना चाहिए। अगर बहन विवाहित है तो उसे अपने भाई को आमंत्रित कर उसे घर पर बुलाकर यथा सामर्थ्‍य भोजन कराना चाहिए। इस दिन भाइयों को चावल खिलाना अच्‍छा माना जाता है। अगर सगी बहन नहीं है तो ममेरी या चचेरी बहन के साथ भी इस त्‍योहार को मनाया जा सकता है। इस त्‍योहार का संदेश यही है कि भाई-बहन के बीच प्‍यार हमेशा बना रहना चाहिए। चाहे दोनों अपनी-अपनी जिंदगी में कितने ही व्‍यस्‍त क्‍यों न हों लेकिन एक-दूसरे के साथ कुछ पल तसल्‍ली के जरूर गुजारने चाहिए।

भैया दूज पर क्‍या करें?

- भैया दूज के दिन नहा-धोकर स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें। वैसे इस दिन बहनें नए कपड़े पहनती हैं।
- इसके बाद अक्षत (ध्‍यान रहे कि चावल खंड‍ित न हों), कुमकुम और रोली से आठ दल वाला कमल का फूल बनाएं।
- अब भाई की लंबी उम्र और कल्‍याण की कामना के साथ व्रत का संल्‍प लें।
- अब विधि-विधान के साथ यम की पूजा करें।
- यम की पूजा के बाद यमुना, चित्रगुप्‍त और यमदूतों की पूजा करें।
- अब भाई को तिलक लगाकर उनकी आरती उतारें।
- इस मौके पर भाई को यथाशक्ति अपनी बहन को उपहारा या भेंट देनी चाहिए।
- पूजा होने तक भाई-बहन दोनों को ही व्रत करना होता है।
- पूजा संपन्‍न होने के बाद भाई-बहन साथ में मिलकर भोजन करें।

क्‍यों मनाया जाता है भैया दूज?

पौराणिक कथा के अनुसार, सूर्य भगवान की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज और यमुना का जन्म हुआ था। यमुना अपने भाई यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालते रहे। फिर कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, उसे अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया।

यमराज ने सोचा, ''मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है।' बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना के आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन से वर मांगने के लिए कहा।

यमुना ने कहा, ''भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे।' यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर विद ली। तभी से भैया दूज की परंपरा शुरू हुई। ऐसी मान्यता है कि जो भाई इस दिन आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसी वजह से भैया दूज के दिन यमराज और यमुना का पूजन किया जाता है।

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