
जयपुर। राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के बाद राज्य के विभिन्न बोर्डों व आयोगों में की गई राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर बहुप्रतीक्षित सवाल अब भी अनुत्तरित बना हुआ है — इन नेताओं को राज्य मंत्री का दर्जा कब मिलेगा? भाजपा प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ के हालिया बयान ने इस सवाल पर पूरी तरह पानी फेर दिया है।
प्रदेश के 6 प्रमुख बोर्डों और आयोगों — किसान आयोग के सीआर चौधरी, जीव-जंतु कल्याण बोर्ड के जसवंत बिश्नोई, सैनिक कल्याण बोर्ड के प्रेमसिंह बाजोर, अनुसूचित जाति आयोग के राजेन्द्र नायक, देवनारायण बोर्ड के ओमप्रकाश भड़ाना और माटी कला बोर्ड के प्रह्लाद टांक को अब तक राज्य मंत्री का दर्जा नहीं मिला है।
"न पद की लालसा, न दर्जे की दौड़": राठौड़ का संकेतात्मक जवाब
जब पत्रकारों ने भाजपा प्रदेशाध्यक्ष से सवाल किया कि इन नियुक्त नेताओं को अभी तक राज्य मंत्री का दर्जा क्यों नहीं दिया गया, और कब तक दिया जाएगा, तो मदन राठौड़ ने किसी ठोस समय-सीमा के बजाय भावनात्मक और वैचारिक जवाब देते हुए कहा: “भाजपा में नेता पद पाने या दर्जा लेने के लिए नहीं, त्याग और तपस्या से कार्य करने के लिए आते हैं। नियुक्तियां सेवा के भाव से की जाती हैं, न कि लाभ पाने की भावना से।”
राठौड़ के इस जवाब ने स्पष्ट कर दिया कि पार्टी इस मुद्दे को लेकर कोई शीघ्र निर्णय लेने के मूड में नहीं है, और जिन नेताओं को यह पद दिए गए हैं, उन्हें केवल पद से संतोष करना होगा, दर्जा मिलने की आशा फिलहाल अधर में है।
राजनीतिक नियुक्तियां, लेकिन राज्य मंत्री का दर्जा नहीं
गौरतलब है कि राजस्थान में परंपरा रही है कि बोर्डों और आयोगों में राजनीतिक नियुक्तियों के साथ राज्य मंत्री का दर्जा दिया जाता रहा है। इससे न केवल प्रतिष्ठा मिलती है, बल्कि प्रशासनिक और आर्थिक सुविधाएं भी जुड़ जाती हैं।
हालांकि इस बार भाजपा सरकार ने नियुक्तियां तो कर दीं, लेकिन दर्जा देने की अधिसूचना आज तक जारी नहीं हुई। इससे इन नेताओं की कार्यक्षमता और अधिकार भी सीमित हो जाते हैं।
नियुक्त नेताओं में बेचैनी, समर्थकों में नाराजगी
सूत्रों की मानें तो जिन नेताओं को नियुक्त किया गया है, उनमें भीतरी तौर पर असंतोष व्याप्त है, क्योंकि वे अपने-अपने समुदाय और क्षेत्र में बड़े प्रभावशाली चेहरे माने जाते हैं। उन्हें उम्मीद थी कि पद के साथ राज्य मंत्री का दर्जा भी स्वाभाविक रूप से मिलेगा, लेकिन राठौड़ के बयान ने उस आस को कमज़ोर कर दिया है।
सीआर चौधरी जैसे वरिष्ठ नेता हों या राजेन्द्र नायक, जिन्होंने अनुसूचित जाति वर्ग में भाजपा का आधार मजबूत करने में वर्षों काम किया है — सभी को अब सिर्फ प्रतीक्षा करनी होगी।
संदेश क्या गया? इंतजार लंबा हो सकता है
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मदन राठौड़ का यह बयान एक स्पष्ट संकेत है कि पार्टी आंतरिक संतुलन और पद वितरण को लेकर अभी असमंजस में है। सरकार शायद यह संदेश देना चाहती है कि सेवा का भाव ही सर्वोपरि है, लेकिन इसका राजनीतिक प्रभाव उलटा भी हो सकता है।
अब जबकि भाजपा प्रदेशाध्यक्ष खुद यह संकेत दे चुके हैं कि पद 'पाने' का उद्देश्य नहीं, सेवा ही प्राथमिकता है, तो यह तय है कि बोर्डों और आयोगों के नेताओं को राज्य मंत्री का दर्जा मिलने में और देरी हो सकती है। ऐसे में राजनीतिक नियुक्त नेताओं और उनके समर्थकों को भविष्य की नीति और राजनीतिक समीकरणों पर निर्भर रहना होगा।














