
जयपुर से एक महत्वपूर्ण न्यायिक फैसले में राजस्थान हाईकोर्ट ने एमएनआईटी, सिंचाई विभाग और सरस डेयरी से जुड़ी लगभग 75 बीघा भूमि को सरकारी संपत्ति घोषित कर दिया है। अदालत ने साथ ही 70 साल पुराने जागीरदार द्वारा जारी किए गए पट्टों को भी अवैध करार देते हुए इस जमीन के अधिग्रहण के पुराने अवार्ड को रद्द कर दिया है। यह फैसला हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अशोक कुमार जैन की एकलपीठ ने राज्य सरकार और जेडीए द्वारा दायर 34 वर्ष पुरानी अपील को स्वीकार करते हुए सुनाया।
जागीर उन्मूलन के बावजूद जारी हुआ था पट्टा
इस मामले की पृष्ठभूमि में वर्ष 1952 का राजस्थान भूमि सुधार और जागीर उन्मूलन अधिनियम है, जिसके तहत राज्य के अधिकांश जागीरदारों की जमीनें राज्य सरकार के अधीन आ गई थीं। बावजूद इसके, वर्ष 1955 में एक जागीरदार ने त्रिलोकी नाथ साहनी नामक व्यक्ति को 188 बीघा 8 बिस्वा भूमि का पट्टा जारी कर दिया था। इसमें खसरा नंबर 21 और 22 शामिल थे। अदालत ने इस पट्टे को कानूनी रूप से अमान्य बताया क्योंकि वह उस समय की वैध कानूनी स्थिति के विपरीत था।
इस भूमि पर बाद में राज्य सरकार के अधिकारियों की लापरवाही के चलते अवाप्ति की अधिसूचना जारी हो गई, जिसका लाभ उठाकर साहनी ने मुआवजे की मांग कर दी। जब भूमि अधिग्रहण अधिकारी से उसे राहत नहीं मिली, तो मामला सिविल कोर्ट पहुंचा और एक रेफरेंस दायर किया गया जिसे वर्ष 1990 में स्वीकार कर लिया गया। राज्य सरकार ने इस आदेश को वर्ष 1991 में हाईकोर्ट में चुनौती दी।
इस लंबे कानूनी संघर्ष के दौरान मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2000 में इस प्रकरण को दोबारा सुनवाई के लिए राजस्थान हाईकोर्ट को भेज दिया था। अब, 25 वर्षों की कानूनी प्रक्रिया के बाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यह भूमि राज्य सरकार की है और साहनी को दिया गया पट्टा पूरी तरह से अवैध था।
राज्य सरकार को अपराधियों के खिलाफ मुकदमे की छूट
हाईकोर्ट ने इस फैसले में राज्य सरकार को यह स्वतंत्रता भी दी है कि वह इस मामले में जिम्मेदार लोगों के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज कर सकती है। इस निर्णय से यह भी स्पष्ट होता है कि यदि किसी प्रशासनिक भूल या कानूनी कमजोरी के चलते सरकारी भूमि का दुरुपयोग हुआ है, तो राज्य सरकार उसका न केवल पुनः अधिग्रहण कर सकती है, बल्कि संबंधित दोषियों पर कार्रवाई भी कर सकती है।
फैसले का व्यापक प्रभाव
यह फैसला उन सभी मामलों के लिए नजीर बन सकता है, जहां जागीर उन्मूलन अधिनियम के बावजूद पुराने जागीरदारों या उनके प्रतिनिधियों ने सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा या पट्टे जारी किए। साथ ही यह प्रशासनिक अमले को भी सचेत करता है कि भूमि अधिग्रहण संबंधी मामलों में पूरी जांच और वैधता सुनिश्चित किए बिना कोई अधिसूचना जारी न की जाए।














