
गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति एक बार फिर सक्रिय हो गई है और उसने सरकार को दिए समझौते की समयसीमा को लेकर तगड़ा अल्टीमेटम दे डाला है। समिति के संयोजक विजय बैंसला ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'X' पर एक पोस्ट साझा करते हुए बताया कि 8 जून को सरकार और समिति के बीच हुए समझौते को अब तक 52 दिन पूरे हो चुके हैं। इस समझौते को लागू करने के लिए तय 60 दिनों की अवधि में अब सिर्फ 8 दिन शेष बचे हैं।
बैंसला ने स्पष्ट किया कि 8 अगस्त के बाद समिति, एमबीसी समाज के समक्ष समझौते की वर्तमान स्थिति को रखेगी और भविष्य की रणनीति पर विचार कर अंतिम निर्णय लेगी। उनका यह बयान साफ इशारा करता है कि अगर सरकार ने तय समयसीमा में वादों को पूरा नहीं किया, तो आंदोलन की वापसी संभव है।
असंतोष बढ़ता जा रहा है, लेकिन भरोसा अब भी है
विजय बैंसला ने इस बात को भी स्वीकारा कि समाज में नाराजगी लगातार बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि एमबीसी समाज से जुड़े मुद्दों का समाधान अब तक नहीं हो पाया है और सरकार द्वारा समझौते की निष्पक्ष पालन न किए जाने से असंतोष का स्तर गंभीर होता जा रहा है। हालांकि, बैंसला ने यह भी दोहराया कि उन्हें मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा पर पूरा भरोसा है और उम्मीद है कि वे समय रहते कदम उठाकर समझौते को जमीन पर उतारेंगे।
पीलूपुरा महापंचायत से बना था दबाव
बता दें कि इस साल 9 जून को भरतपुर के पीलूपुरा में गुर्जर समाज की महापंचायत आयोजित हुई थी, जिसमें प्रदेशभर से भारी भीड़ उमड़ी थी। उस दिन प्रशासन को हालात संभालने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। उसी शाम सरकार की ओर से एक प्रस्ताव सामने आया जिसे विजय बैंसला ने सभा में पढ़कर सुनाया। इसके बाद समाज ने आंदोलन को विराम देने का ऐलान किया।
आंदोलन की नींव 17 साल पुरानी
गुर्जर आरक्षण की लड़ाई कोई नई नहीं है। यह संघर्ष करीब 17 वर्षों से जारी है। वर्ष 2019 में समाज को 5% आरक्षण और पहले देवनारायण योजना जैसी योजनाओं का लाभ तो मिला, लेकिन इनका धरातल पर ठीक से क्रियान्वयन न होना अब चिंता का कारण बनता जा रहा है। छात्राओं को मिलने वाली छात्रवृत्ति और स्कूटी जैसी योजनाओं में देरी देखी जा रही है। वहीं, आंदोलन के दौरान दर्ज किए गए 74 मुकदमों को वापस लेने की मांग भी अब तक अनसुनी बनी हुई है।
आने वाले दिन तय करेंगे दिशा
अब सभी की नजरें 8 अगस्त पर टिकी हैं। अगर सरकार ने इस तारीख तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की, तो गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति एक बार फिर निर्णायक आंदोलन की राह पकड़ सकती है। बैंसला के नेतृत्व में समाज अब निर्णायक मोड़ पर खड़ा है और सभी की निगाहें सरकार की अगली चाल पर हैं।














